जाति आधारित जनगणना के आँकड़ों को फिर से दबाने की साजिश

1832

भारत के ओबीसी एवं एससी, एसटी के लिए एक बड़ी खबर राज्य-सभा से आई है। दस फरवरी को राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने सन 2011 की सामाजिक-आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना के कच्चे आँकड़े सामाजिक न्याय मंत्रालय को सौंपे हैं। ऐसा इन आंकड़ों के बेहतर वर्गीकरण एवं श्रेणीकरण के लिए किया गया है ताकि इन आंकड़ों को ठीक से समझा जा सके। इस दौरान दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से जाति की जनगणना के आंकड़ों जारी नहीं करने की बात भी कही गयी है।

गौरतलब है कि सामाजिक, आर्थिक एवं जाति आधारित जनगणना का यह काम तत्कालीन ‘ग्रामीण विकास मंत्रालय’ एवं ‘आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय’ द्वारा किया गया था। यह गणना ग्रामीण एवं शहरी दोनों इलाकों में की गयी थी। इस बड़ी कार्यवाही का उद्देश्य था कि भारत के करोड़ों ओबीसी, अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों की सामाजिक आर्थिक एवं जाति आधारित समस्याओं को उनके जनसंख्यात्मक आंकड़ों के आईने में समझा जाए। नित्यानंद राय ने राज्यसभा में बताया कि जनगणना के इन आंकड़ों में से ‘जाति’ के आंकड़ों को छोड़कर अन्य आंकड़ों को अंतिम रूप में लाकर उक्त दो मंत्रालयों द्वारा जारी कर दिया गया है। राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान राय ने लिखित रूप में यह जानकारी दी।

यहां Click कर Dalit Dastak पत्रिका की सदस्यता लें

भारत के करोड़ों बहुजनों के लिए यह एक बड़ी खबर है। भारत के इतिहास में पहली बार अंग्रेजों द्वारा सन 1871-72 में जाति आधारित जनगणना की गयी थी। इस जनगणना में चौंकाने वाले आँकड़े सामने आए थे। यह रिपोर्ट उस समय लंदन में ब्रिटिश सरकार के दोनों सदनों में पेश की गयी थी। उस समय ब्रिटिश सरकार ने भारत के अधिकांश प्रांतों के लिए ब्राह्मणों, क्षत्रियों, राजपूतों और कई अन्य जातियों की जनसंख्या की गिनती की थी।

तत्कालीन बंबई प्रांत में जनगणना राज्यों में 658,479 ब्राह्मण, 144,293 क्षत्रिय और राजपूत, 936,000 वैश्य और 10,856,000 शूद्र थे। ब्रिटिश सरकार द्वारा जारी मेमोरेंडम को इस टेबल के अनुसार समझा जाए तो समझ  में आता है कि तत्कालीन समाज में शूद्र 86 प्रतिशत, ब्राह्मण पाँच प्रतिशत, क्षत्रिय एक प्रतिशत और वैश्य सात प्रतिशत थे।

वर्ण कुल जनसंख्या कुल प्रतिशत
ब्राह्मण 6,58,479 5%
क्षत्रिय 1,44,293 1%
वैश्य 9,36,000 7%
शूद्र 1,08,56,000 86%
कुल जनसंख्या 1,25,94,772  

यहाँ यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उस समय के भारत में ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति जैसे शब्द नहीं थे। उस समय हिन्दू वर्ण व्यवस्था के हिसाब से चार वर्णों में रखकर जनगणना की गयी थी। इसलिए इस जनगणना में जिन्हे शूद्र कहा गया है उन्हे हम आज के संदर्भ में ओबीसी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोग मान सकते हैं।

हालांकि आजादी के बाद कई समाजशास्त्री एक अर्थशास्त्री मानते हैं कि अब ब्राह्मणों और क्षत्रियों की संख्या पहले की तुलना में कहीं ज्यादा घटी है। भारत के गरीब समाज में ओबीसी, एससी और एसटी में स्वाभाविक रूप से जनसंख्या वृद्धि की दर ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों से अधिक रही है। इसीलिए यह माना जाता है कि अब ब्राह्मणों की कुल जनसंख्या पूरे भारत की आबादी में तीन प्रतिशत से अधिक नहीं है। लेकिन भारत का दुर्भाग्य है कि इन तीन प्रतिशत ब्राह्मणों सहित शेष लगभग बारह प्रतिशत सवर्णों का शासन प्रशासन सहित उद्योग धंधों, व्यापार, निजी नौकरियों, मीडिया, आदि में के पास देश के सत्तर से नब्बे प्रतिशत तक अवसरों पर कब्जा बना हुआ है।

मान्यवर कांशीराम एवं बामसेफ़ के संस्थापकों में से एक श्री डी के खापरडे सहित कई दलित विचारक मानते आए हैं कि भारत मे बहुजनों अर्थात ओबीसी, एससी, एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यकों की कुल जनसंख्या 85 प्रतिशत से भी अधिक है। वहीं सवर्ण हिंदुओं की कुल जनसंख्या 15 प्रतिशत से भी कम है। इसीलिए बहुजन राजनीतिक कार्यकर्ता एवं विचारक हमेशा से 85 प्रतिशत बनाम 15 प्रतिशत के आँकड़े की चर्चा करते रहते हैं। ये कार्यकर्ता और विचारक मानते हैं कि भारत में बहुसंख्यकसमाज को उनकी संख्या के अनुपात में अधिकार न मिल सकें इसी उद्देश्य से जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों दबाया जाता है। सन 2011 की ‘सामाजिक आर्थिक एवं जातिगत जनगणना’ के आंकड़ों में से ‘जाति जनगणना’ के आंकड़ों को छुपा लेना इसी पुरानी तरकीब का नया उदाहरण है।

यहां Click कर बहुजन साहित्य आर्डर करें

आज बहुजन समाज को जरूरत है कि दुनिया के सभी मंचों से भारत के 85 प्रतिशत शोषित दमित बहुजनों के हक की आवाज उठाई जाए। अंग्रेजों के द्वारा की गयी जनगणना के बाद से बहुत लंबे समय तक इस तरह की जाति और वर्ण की जनगणना के आँकड़े नहीं आए हैं। इसी कारण भारत में न तो सामाजिक आर्थिक विकास की योजनाओं का बहुजनों के पक्ष में निर्माण हो पाता है और न ही बहुजन समाज की चुनावी राजनीति मजबूत हो पाती है। अगर बहुजन समाज से जुड़े जनसंख्या के आँकड़े सामने आते हैं तो निश्चित ही यह न केवल भारत के 85 प्रतिशत बहुजनों के हित में होगा बल्कि यह भारत देश के और भारत के लोकतंत्र के हित में भी होगा।

Click कर दलित दस्तक का YouTube चैनल सब्सक्राइब करें

सीधी सी बात है कि अगर किसी देश की 85 से 90 प्रतिशत जनसंख्या सशक्त और मजबूत होती है तो उस देश का सशक्तिकरण अपने आप हो जाता है। इसीलिए बहुजन कार्यकर्ता और विचारक बार-बार कहते हैं कि 85 से 90 प्रतिशत बहुजन जनता का कल्याण और सशक्तिकरण ही असली देशभक्ति और राष्ट्रवाद है। इसलिए हमें सच्चा देशभक्त और राष्ट्रवादी बनकर जाति और वर्ण आधारित जनगणना को समाने लाकर उसी के आधार पर सामाजिक विकास और राजनीतिक रणनीति बनाने के लिए काम करना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.