गुजरात के मेहसाणा जिले में बीते रविवार (14 मई) को एक धार्मिक आयोजित था। इसमें शामिल दलित समाज के लोगों का आरोप है कि वहां उनसे जातिगत भेदभाव किया गया। अनुसूचित जाति के लोगों का कहना है कि धार्मिक आयोजन में दावत के दौरान उन्हें पाटीदार समाज के लोगों ने अलग बैठाकर खाना खिलाया।
इस मामले में भटरिया गांव के दलित समाज के लोगों का कहना है कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव के अवसर पर पाटीदार समाज ने रात्रिभोज का आयोजन किया दलित समाज के लोगों को सबके साथ नहीं खिलाकर, उनके लिए मंदिर से कुछ दूरी पर गांव के एक स्कूल में खाने की व्यवस्था की गई थी। दलित समाज के लोगों का कहना है कि इससे उन्हें अपमान महसूस हुआ और उन्होंने खाने से मना कर दिया। यहीं नहीं इस गांव की मुखिया विजयाबेन परमार जो कि दलित समाज से हैं, उन्होंने भी आरोप लगाया कि ग्राम पंचायत का प्रधान होने के बावजूद उन्हें दावत के दौरान अन्य ग्रामीणों से अलग बैठने के लिए कहा गया। उन्होंने कहा कि हम इस अपमान को बर्दास्त नहीं करेंगे। इस घटना के बाद दलित समाज के लोगों ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर इस भेदभाव के दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करने की मांग की है।
हालांकि मामला तूल पकड़ने के बाद अब पाटीदार समाज के लोग इन आरोपों को गलत बताते हुए लीपापोती कर रहे हैं और मामले में सुलह की कोशिशें तेज हो गई है। हालांकि इस घटना ने दलितों के साथ होने वाले भेदभाव के कई अन्य मामलों को भी उजागर कर दिया है। कुछ स्थानीय दलितों, जिनमें कांतिभाई नादिया शामिल हैं, उनका आरोप है कि भटरिया गांव में दलितों के साथ अछूतों की तरह व्यवहार होता है। हमारे समाज की महिला सदस्यों को आंगनबाड़ी केंद्रों में खाना बनाने की अनुमति नहीं है। कुछ मामलों में तो नाई भी बाल काटने से इंकार कर देते हैं। उन्होंने कहा कि आखिर हमें इस तरह के अन्याय और अपमान को कब तक सहना पड़ेगा।
साफ है कि देश के तमाम हिस्सों में जिस तरह दलितों के साथ भेदभाव की खबरें हर रोज सामने आती हैं, वह भारत के गांव-गांव में मनुवदियों के दिमाग में भरे हुए जातीय सड़ांध की पोल खोलता है।