हाल ही मे नेशनल कमिशन फॉर शैडयूल्ड caste ने ओएनजीसी की अंतरिम सीएमडी अल्का मित्तल को समन भेजा है। ओएनजीसी की सीएमडी अल्का मित्तल को यह समन एससी-एसटी अधिकारियों के कॉर्पोरेट प्रमोशन में नियमों के उल्लंघन के मामले में मिला है।
ONGC यानि ऑइल अँड नैचुरल गॅस कार्पोरेशन लिमिटेड…. भारत सरकार की सार्वजनिक क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनी है। ओएनजीसी में लगभग 28000 (अठाइस हजार) कर्मचारी काम करते हैं जिसमें लगभग साढ़े सात हजार एससी-एसटी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं। आरोप है कि कॉरपोरेट प्रमोशन में इनके साथ भेदभाव किया जाता है। यही मामला एससी-एसटी आयोग पहुंचा है। जहां चार फरवरी को आयोग ने ओएनजीसी के अधिकारियों को तलब किया था। इससे जुड़ी एक खबर petrowatch.com नाम की वेबसाइट पर सामने आ चुकी है।
आयोग ने ओएनजीसी से जो सवाल किए हैं उससे मामले की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस बारे में दलित दस्तक ने ओएनजीसी के कुछ रिटायर्ड कर्मचारियों से बात की, जिन्होंने ओएनजीसी के भीतर जातिवाद की कलई खोलकर रख दी।
ओएनजीसी की Recruitment & Promotion Policy आखिरी बार सन 1997 और 2004 में revise की गयी थी। उसके बाद ओएनजीसी की ऑफिसर्स एसोसिएशन के साथ मैनेजमेंट ने कोई MOU यानी मेमोरेंडम ऑफ अंडर स्टैंडिंग नहीं किया। ओएनजीसी मैनेजमेंट कभी भी तकरीबन 7500 कर्मचारियों का नेतृत्व करने वाले एससी-एसटी असोसिएशन के साथ Recruitment & Promotion Policy के विषय में कोई मशविरा या बातचीत नहीं करता। यह सीधे उनके कैरियर ग्रोथ को affect करता है।
हद तो तब हुआ, जब मैनेजमेंट ने ONGC की Corporate Promotion policy को साल 2014 और फिर 2015 में अपनी मर्जी से बदल डाला। आरोप है कि मैनेजमेंट ने जानबूझ कर ऐसे बदलाव किए जिससे ज़्यादातर जनरल कैटेगरी के जूनियर अधिकारियों को पदोन्नति दी गयी और ज़्यादातर एससी एसटी जो उनसे कई वर्ष सीनियर और काबिल थे उन्हे पीछे छोड़ दिया गया।
इसका नतीजा ये हुआ की हज़ारों की संख्या में सीनियर और काबिल एससी एसटी अधिकारी पीछे रह गए। न सिर्फ पीछे रह गए, बल्कि टॉप मैनेजमेंट में एससी-एसटी की हिस्सेदारी लगभग नहीं के बराबर है। यह सब तब है, जबकि ONGC एक सार्वजनिक क्षेत्र की सरकारी कंपनी है और यहां ओएनजीसी गाइडलाइंस के साथ ही भर्ती और पदोन्नति की प्रक्रिया में डीओपीटी और डीपीई के नियम भी लागू होते हैं। लेकिन ओएनजीसी मैनेजमेंट अपनी मर्जी से नियमों में बदलाव करके सारे सरकारी नियमों को लगातार ताक पर रख रही है। ओएनजीसी के भीतर जातिवाद का आलम यह है कि दलित एवं आदिवासी समाज के जिन अनुभवी और योग्य अधिकारियों को प्रोमोशन तक नहीं दिया जा रहा है, वे अनसूचित जाति एवं जनजाति के अधिकारी भारत के टॉप आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी और अन्य टॉप के संस्थानो से ऑल इंडिया प्रतियोगी परीक्षा से चुनकर ओएनजीसी में आए हैं। इनकी जगह ज्यादातर सवर्ण समाज के जूनियर अधिकारी आगे बढ़ रहे हैं।
यहां ध्यान देना होगा कि ओएनजीसी में काम करन वाले अनसुचित जाति और जनजाति के अधिकारी कोई पदोन्नति में आरक्षण की मांग नहीं कर रहे हैं। उनकी आपत्ति यह है कि ओएनजीसी का मैनेजमेंट उन्हें दरकिनार कर के उनसे चार-पाँच साल जूनियर जनरल कैटेगरी के अधिकारियों को साल दर साल ज्यादा प्रमोशन दे रही है। ये दिन दहाड़े नियमों का उल्लंधन है, चोरी है और जाति पर आधारित भेदभाव है।
दरअसल ओएनजीसी के भीतर एससी-एसटी कर्मचारियों के साथ पहले भी भेदभाव का आरोप लगता रहा है। लेकिन प्रोमोशन को लेकर नियम 2014-2015 में तब बदले गए जब एससी-एसटी की (SPECIAL RECRUITMENT DRIVE) वाली बैच प्रमोशन के लिए eligible हुयी। अगर नियमों का ठीक से पालन होता तो ज़्यादातर एससी-एसटी अधिकारी ओएनजीसी के टॉप पोस्ट पर होते। आरोप है कि उन्हे रोकने के लिए सारा गोलमाल चल रहा है। और यदि दिखावे के लिए कुछ अधिकारियों को प्रोमोशन दिया भी जाता है तो उन्हे जान बूझकर कम महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया जाता है।
ओएनजीसी के एससी-एसटी एसोसिएशन ने इस मामले में दखल करते हुए ओएनजीसी मैनेजमेंट के साथ उठाया, लेकिन मैनेजमेंट ने उनकी बातों को अनदेखा कर दिया। जिसके बाद एसोसिएशन ने इस मामले को नेशनल कमिशन फॉर शैडयूल्ड caste और शैडयूल्ड tribe के सामने उठाया, जिन्होंने मामले की गंभीरता को देखते हुए ओएनजीसी के CMD को समन भेजकर जवाब तलब किया है। साथ ही ओएनजीसी से नियुक्तियों और प्रमोशन से संबंधित डाटा मांगा है।
यहां एक सवाल यह भी उठता है कि क्या ONGC या उसकी सहयोगी कंपनी में कोई एससी-एसटी बोर्ड ऑफ़ डाइरेक्टर पद पर है? जवाब है, बिलकुल नहीं। बोर्ड की तो छोड़िए, कुल 91 एक्सिक्यूटिव डाइरेक्टर में से सिर्फ एक ST, 6 SC और एक OBC है। लगभग यही स्थिति ग्रुप जनरल मैनेजर यानि E-8 और E-9 लेवेल पर है। आप ONGC की आधिकारिक वेबसाइट पर जाइए और साल दर साल ONGC के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की लिस्ट देखिये। आपको सिर्फ और सिर्फ शर्मा, द्विवेदी, मिश्रा इत्यादि दिखेंगे।
हालिया आंकड़ा देखिए। कुछ महीने पहले ONGC के CMD और डाइरेक्टर (Finance) थे, सुभाष कुमार शर्मा, जबकि ओएनजीसी विदेश लिमिटेड के डाइरेक्टर (Finance) थे विवेकानद शर्मा एवं ओएनजीसी के डाइरेक्टर ऑनशोर हैं अनुराग शर्मा। प्रोजेक्ट हेड की जिम्मेदारियां भी इसी एक खास वर्ग ने पकड़ रखी है। अब हम आपको इससे भी मजेदार बात बताते हैं, ओएनजीसी के ज़्यादातर बोर्ड मेम्बर्स साल दर साल कथित ऊंची जाति से रहे हैं जबकि ओएनजीसी का तेल और गैस उत्पादन साल दर साल तेजी से गिर रहा है। क्या भारत में मेरिट की यही परिभाषा है?
ओएनजीसी ने सारे सरकारी नियमों को ताक पर रख कर हज़ारों अनुभवी और काबिल एससीटी एसटी अधिकारियों को प्रमोशन और महत्वपूर्ण पदों से साल दर साल दूर रखा है। क्या इक्कीसवी सदी में जातिवाद का ये नया कॉर्पोरेट मॉडल है। कुल मिलाकर इस मामले के अनुसूचित जाति आयोग में पहुंचने पर ओएनजीसी के एससी-एसटी कर्मचारियों में न्याय की उम्मीद जगी है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।