जेल में जातिवाद को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। आरोप है कि जेल में कुछ खास जातियों से झाड़ू लगाने और सफाई जैसे छोटे काम करवाए जाते हैं। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मामले का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सहित 11 राज्यों को नोटिस भेज कर जवाब मांगा है। जिन राज्यों को नोटिस भेजा गया है, उसमें उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, ओडिशा, झारखंड, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना शामिल हैं।
महाराष्ट्र के कल्याण में रहने वाली सुकन्या शांता ने इस बारे में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने कैदियों से जातिवाद करने वाली जेल नियमावलियों को रद्द करने की मांग की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि बंदियों को काम के बंटवारे और उन्हें रखने की जगह में जातिवाद होता है। याचिका दायर करने वाली सुकन्या शांता के वकील एस मुरलीधर ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि कई राज्यों की जेल नियमावलियों में काम का बंटवारा भेदभाव पूर्ण ढंग से होता है। यहां जाति से तय होता है कि किस बंदी को कहां रखा जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में यह मामला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच के सामने आया है। हालांकि कोर्ट के सामने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ऐसी बातों से इंकार किया। लेकिन याचिका कर्ता ने बंगाल, मध्यप्रदेश और केरल का उदाहरण देते हुए अपनी बात साबित की।
याचिकाकर्ता का कहना है कि बंगाल की नियमावली में जाति के अनुसार काम का बंटवारा किया जाता है। यहां खाना बनाने का काम प्रभावशाली जातियां करती है, जबकि झाड़ू लगाने का काम कुछ खास जातियों को दिया जाता है। जाहिर है याचिकाकर्ता का इशारा कमजोर जातियों से है।
बंगाल के नियम 793 का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता का कहना था कि नाई ए श्रेणी के होने चाहिए और झाड़ू लगाने का काम मेहतर, हरि, चंडाल जैसी जातियों को देना चाहिए। वहीं मध्य प्रदेश में नियम 36 कहता है कि मेहतर की छोटे पात्र को बड़े ड्रम में खाली करे और उसे साफ करे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सुनने के बाद 11 राज्यों सहित केंद्र से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। हालांकि इस तरह के आरोप कोई नए नहीं है। और अक्सर जेलों से जातिवाद की खबरें आती रहती है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जेल में दलित समाज के दो विचाराधीन कैदियों को मार कर लटका दिया गया था। इस संदेहास्पद मामले में जांच होने के बाद जांच अधिकारी ने उन्हें जबरन फांसी पर लटकाए जाने की रिपोर्ट दी, बावजूद इसके इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई की खबर नहीं है। इसी बीच जेलों में जातिवाद की खबर ने एक बार फिर से जेल के अंदर जातिवाद की परत खोल कर रख दी है। देखना होगा सुप्रीम कोर्ट इस मामले को कितनी गंभीरता से लेता है।
सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं। पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ स्वतंत्र लेखन करते हैं। दिल्ली में विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं।