तमिलनाडु के कुंभकोणम में दलित क्रिश्चियन्स के खिलाफ चर्च के भीतर लंबे समय से चल रहे भेदभाव का मामला सामने आया है। कुंभकोणम के दलित क्रिश्चियन्स ने अपने डायोसीस क्षेत्र में एक दलित बिशप बनाए जाने की मांग की है। इलाके के आठ दलित क्रिश्चियन समूहों ने छह फरवरी को एक पैदल मार्च निकाला और बिशप सहित डायोसियस के अन्य अधिकारियों को अपनी मांग एवं ज्ञापन सौंपा।
गौरतलब है कि कुंभकोणम के वर्तमान बिशप ‘एन्टोनीसामी’ शीघ्र ही रिटायर होने जा रहे हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए स्थानीय दलित क्रिश्चियन्स चाहते हैं कि अगला बिशप किसी दलित क्रिश्चियन को बनाया जाए। ये लोग ऐसा इसलिए चाहते हैं कि उन्होंने स्थानीय चर्च में एवं चर्च से जुड़ी गतिविधियों में दलित क्रिश्चियन्स के खिलाफ भेदभाव अनुभव किया है।
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं दलित क्रिश्चियन कुदंथाई अरासन ने बताया कि हम लोगों के साथ सामान्य समाज में ही नहीं बल्कि क्रिश्चियन समाज में भी कई दशकों से भेदभाव हो रहा है। और इस तरह का भेदभाव केवल तमिलनाडु में ही नहीं होता है बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी हो रहा है। अरासन ने यह भी बताया कि कुंभकोणम डायोसीस 1 सितम्बर 1899 को स्थापित किया गया था, तब से लेकर आज तक बीते 121 सालों में आज तक किसी दलित क्रिश्चियन को बिशप नहीं बनाया गया। कुंभकोणम ही नहीं बल्कि पूरे तमिलनाडु में किसी भी डायोसीसएक भी दलित बिशप नहीं है। इस बात से स्थानीय दलित लोगों में आक्रोश है।
यहाँ यह समझना जरुरी है कि भारत में दलितों के खिलाफ भेदभाव एवं अत्याचार भारत में सभी धर्मों में होता है। बाबा साहब डॉ आंबेडकर ने जोर देते हुए कहा था कि ब्राह्मण धर्म की जाति व्यवस्था एक बीमारी है। यह बीमारी भारत में आये अन्य धर्मों में भी फ़ैल गयी है। भारत में ईसाईयों और मुसलमानों में भी अपने धार्मिक समुदायों के दलितों के खिलाफ भेदभाव किया जाता है। यह भारत के सामाजिक स्थायित्व और लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक बात है।
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