महिषासुर ऐसे व्यक्तित्व का नाम है, जो सहज ही अपनी ओर लोगों को खींच लेता है. उन्हीं के नाम पर मैसूर नाम पड़ा है. यद्यपि कि हिंदू मिथक उन्हें दैत्य के रूप में चित्रित करते हैं, चामुंड़ी द्वारा उनकी हत्या को जायज ठहराते हैं,...
मामाजी वो कौन था ?
गांव का था।
दाल,चावल, आंटा,सब्जी, तेल मसाला और रूपए भी मामीजी ने क्यों दिए ?
नेग दिए हैं भांजे ।
नेग क्यों ?
तुम्हारे भाई की शादी है ।
भाई की शादी मे भीखारी को इतना नेग ?
तुम नहीं समझोगे शहर मे रहते हो भांजे...
''इस द्वार क्यों न जाऊं, उस द्वार क्यों न जाऊं
घर पा गया तुम्हारा मैं घर बदल-बदल के
हर घाट जल पिया है, गागर बदल बदल के''
तब फ्लाईओवरों की दिल्ली अपनी प्रक्रिया में थी. साल 2008 था शायद, जब राजधानी के व्यस्त ट्रैफिक में फंसी एक...
समाज और देश
धीरे-धीरे बदल ही रहा था
कि अचानक मनु के रखवाले
देश के रहनुमा बन गए!
और देश फिर से गुलाम हो गया।
छिनने लगी आजादी
पहले खाने की,
फिर पहनने ओढ़ने की,
फिर शिक्षा की,
फिर धर्म की,
फिर कर्म की,
फिर मूर्ति की,
फिर रंग की
देश मे असमानता, जातिवाद, आडम्बर,
अवैज्ञानिकता, रूढ़िवाद, हिंसा,...
बह रहा शोणित है तेरा
फिर भी तू क्यों मौन है
पूछ अपने आप से
मानव है तू या कौन है
जाति की जठराग्नि में
हिन्दुत्व के अभिमान में
हवन होते हैं दलित
जीते हैं वो अपमान में
संविधान का नहीं
उनको कोई अब डर रहा
मनुवाद के दावानल में
रोहित सरोज है मर रहा
और...
शब्द
किस तरह होते हैं
अर्थ परिवर्तन का
शिकार?
अतीत से वर्तमान तक
इसके अनेक उदाहरण हैं
जैसे दस्यु और दास
जो आदिकाल में
दो जातियां थी
कालान्तर में उसका अर्थ
लुटेरे और गुलाम
हो गया।
इसी प्रकार
पिछले कुछ वर्षों में
विकास का भी अर्थ
बदला है।
विकास अब पर्याय
हो गया है
मुस्लिम और दलितों में
भय और उत्पीड़न का।
क्योंकि
पिछले कुछ...
हम बड़े अजीब लोग हैं
हम अधुनातन और पुरातन एक साथ हैं!
हम नयी टेक्नोलॉजी के टीवी को
घर में लाने में
परहेज कभी नहीं करते
लेकिन नयी सोच को
घर में आने से
हमेशा रोकते रहते हैं
विज्ञान के हर नये अविष्कार को
अपनाने की
हमें बड़ी तत्परता रहती है
लेकिन अवैज्ञानिक रिवाजों
हम फिर...
पूरी पृथ्वी को बांधते हैं किसान के पांव
हरियाली से
पहाड़िया चढ़ते हैं उतरते हैं घाटियां
एक एक कोना भर देते हैं मिट्टी का
अन्न से
बीजों को जगाते हैं नींद से
सबका पेट भरने के लिए
मगर सोए रह जाते हैं बीज
उनकी आंखों के
कि उनके सपनों को पोसने वाला कोई...
ये तोड़-फोड़ की राजनीति
ये नफरत की राजनीति
तुम पर शोभा नहीं देती
तुमने तो ठप्पा लगाया है-
राष्ट्रवाद का
फिर ये घिनौने, घटिया, ओछे काम क्यों?
माना तुम सत्ता में आ गये
हमेशा तो नहीं रहोगे
कल कोई और आएगा
फिर वो तोड़ेगा-फोड़ेगा
तुम्हारी बनाई मूर्तियां
या तुम्हारी पसंद की मूर्तियां
इस तरह तो
राष्ट्र का...
जिस जाति अथवा समाज का साहित्य नहीं होता, वह जाति मृत समान ही होती है. वैसे भी हमारे देश में पहले से ही दलितों का लिखा कोई साहित्य नहीं है. वर्ण-व्यवस्था के अनुसार भारत के दलितों को पढ़ने-लिखने का कोई अधिकार ही नहीं था....