ओपीनियन

बाबासाहेब अम्बेडकर: एक सच्चे राष्ट्रवादी

यह समाज के लिए ही नहीं बल्कि राष्ट्र के लिए भी गर्व की बात है कि बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर एक प्रबुद्ध विचारक, न्याय के पक्षधर और स्पष्टवादी व्यक्ति थे. प्रत्येक व्यक्ति का कोई न कोई प्रेरणा-सूत्र होता है. बाबासाहेब ने कबीर, फुले और...

डॉ. अम्‍बेडकर का जीवन दर्शन

जिन लोगों ने नवभारत की तकदीर लिखी, उन लोगों में डॉ. अम्‍बेडकर खास सख्‍शियत हैं. उन्‍होंने अपने कार्य से समाज, अर्थ और राजनीति ही नहीं बल्कि धर्म के क्षेत्र में भी अद्वितीय स्‍थापनाएं दी. आज बाबासाहेब डॉ. अम्‍बेडकर एक प्रमुख प्रेरक शक्ति हैं, जिनसे...

नोटबंदी बनाम वोटों की गोलबंदी

उत्तर प्रदेश में 2017 में होने वाला विधानसभा का आम चुनाव श्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा के लिए कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 8 नवम्बर-2016 को सम्पूर्ण देश को आर्थिक आपातकाल के दावानल में झोंक दिया....

परिनिर्वाण दिवस विशेषः आज भी अधूरे हैं बाबासाहेब की मृत्यु से जुड़े सवाल

डॉ. भीमराव अम्बेडकर आज इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनको मानने और जानने वालों की तादाद बहुत तेजी से बढ़ रही है. आज हालात ये है कि लोग गांधी और अम्बेडकर की तुलना ही नहीं करते बल्कि यह जानने की कोशिश भी करते...

नोटबंदीः बिना एनेस्थीसिया ही कर दिया ऑपरेशन

हम सब जानते है कि 6 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल जारी रहा था. वह आपातकाल तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कहने पर उस समय के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय...

प्रबुद्ध भारत बनाने के लिए करना होगा जाति का नाश

क्या आप जानते है? इक्कीसवीं सदी आपके लिए दासता की बेड़ियां निर्मित कर रही हैं.  क्योंकि... राजतन्त्रः किसी भी समाज को गुलाम अर्थात दास बनाता है. और पूंजीवाद राजतन्त्र का पोषाक होता है. गणतन्त्रः समाज को स्वतन्त्र रखता है और पूंजीवाद गणतन्त्र का शोषक होता है. बीसवीं सदी...

डॉ. अम्बेडकर और पिछड़ी जातियां

डॉ. अम्बेडकर को प्रायः दलितों के उद्धारक के रूप में पहचाना जाता है जबकि वे सभी पददलित वर्गों दलितों और पिछड़ों के अधिकारों के लिए लड़े थे. परन्तु वर्ण व्यवस्था के कारण पिछड़ी जातियां जो कि शूद्र हैं अपने आप को अछूतों (दलितों) से...

संविधान दिवस विशेषः भारत का भविष्य बना था संविधान

भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 में स्वीकार किया गया. संविधान के मायने क्या होते हैं, शायद उस समय भारत के लोगों को यह पता नहीं था. लेकिन दुनिया में संविधान का महत्व स्थापित हो चुका था. अमेरिका में 1779 में संविधान बन चुका...

भारतीय मीडिया और दलित-आदिवासी प्रश्न

जब हम मीडिया में दलित मुद्दों की बात करते हैं तोसबसे पहला सवाल यही आता है कि मीडिया में दलित समाज से जुड़ा हुआ मुद्दा सामाजिक मुद्दा और देश का मुद्दा क्यों नहीं बन पाता? जबकि वंचित तबके की संख्या देश में सबसे ज्यादा...

अनुसूचित जाति का अर्थ तो हमको पता है, लेकिन अनुसूचित का मतलब जानते है क्या?

आज हमारे समाज में हर तरफ आरक्षण को केवल आर्थिक उन्नति के नज़रिये से देखा जा रहा है. जबकि भारतीय संविधान में आरक्षण का उद्देश्य समाज में हर वर्ग को बराबरी का प्रतिनिधित्व देने के लिए किया गया था परंतु समझने वाली बात ये...
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विवादों में जगनमोहन रेड्डी, 500 करोड़ के भव्य महल पर उठे सवाल

जगन मोहन रेड्डी का भव्य महल, जिसे एक पूरे पहाड़ को समतल कर बनाया गया, राजनीतिक विलासिता और सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग का एक...

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