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जब सारी दुनिया के कार्पोरेट अपने-अपने विज्ञापनों और मुनाफे, कार्पोरेटे मीडिया अपने विशालकाय कैमरों और खेल का लुत्फ उठा रहे खेल-प्रेमी जश्न में डूबे हुए हों, तो उनसे ये कहना की आप जो यह भव्य स्टेडियम देख रहे है, जो आलीशान अतिथि गृह देख रहे हैं, जो चकाचौंध कर देने वाली सड़के-पुल, होटल, हवाई अड्डों और रोशनी देख रहे हैं, उस सब को तैयार करने में भारत, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के लाखों मजदूर कई वर्षों तक रात-दिन अमानवीय परिस्थियों ( 40 से 50 डिग्री तापमान) में खटते रहे हैं, इसमें 7 हजार मजदूरों की काम के दौरान मौत हो गई और उनकी लाशें ही वापस उनके घर आईं।
इन मजदूरों से 50 डिग्री तक के तापमान में 12 घंटे तक काम कराया जाता था। कई की हार्ट अटैक से मौत हो गई। इस मजदूरों पर कतर के श्रम कानून भी लागू नहीं होते थे। मारे गए मजदूरों को कोई मुआवजा तक नहीं दिया जाता।
ये वे मजदूर थे, जो अपने बाल-बच्चों, मां-बाप और भाई-बंधु को छोड़कर वर्षों के लिए खाड़ी देशों में थोड़ी सी बेहतर जिंदगी और अपनों के लिए थोड़े से बेहतर भविष्य की तलाश गए थे, इनमें से 7 हजार मजदूरों की लाशें ही परिवार वालों के वापस आईं।
खूब जश्न मनाईए, खूब खुशी झूमिए, कतर को इस आयोजन के लिए शाबासी दीजिए और जीतने वाली टीमों को बधाईयां दीजिए, पर हो सके तो उन्हें भी एक बार याद कर लीजिए जो कई वर्षों तक रात-दिन खटते रहे और उनमें 7 हजार के हिस्से मौत आई।
फीफा वर्ल्डकप’ पर मजदूरों के खून के छींटे हैं। एक आंकड़ा देखिये-
भारत, 2,711
नेपाल, 1,641
बांग्लादेश, 1,018
पाकिस्तान, 824
ऐसे में गोरख पांडेय की कविता स्वर्ग से विदाई याद आती है-
भाइयो और बहनो!
अब यह आलीशान इमारत
बन कर तैयार हो गई है
अब आप यहाँ से जा सकते हैं
अपनी भरपूर ताक़त लगाकर
आपने ज़मीन काटी
गहरी नींव डाली
मिट्टी के नीचे दब भी गए आपके कई साथी
मगर आपने हिम्मत से काम लिया
पत्थर और इरादे से
संकल्प और लोहे से
बालू, कल्पना और सीमेंट से
ईंट दर ईंट आपने
अटूट बुलंदी की दीवारें खड़ी कीं
छत ऐसी कि हाथ बढ़ाकर
आसमान छुआ जा सके
बादलों से बात की जा सके
खिड़कियाँ
क्षितिज की थाह लेने वाली आँखों जैसी
दरवाज़े-शानदार स्वागत!
अपने घुटनों बाजुओं और
बरौनियों के बल पर
सैकड़ों साल टिकी रहने वाली
यह जीती-जागती इमारत तैयार की
अब आपने हरा भरा लॉन
फूलों का बग़ीचा
झरना और ताल भी बना दिया है
कमरे-कमरे में ग़लीचा
और क़दम-क़दम पर
रंग-बिरंगी रोशनी फैला दी है
गर्मी में ठंडक और ठंड में
गुनगुनी गर्मी का इंतज़ाम कर दिया है
संगीत और नृत्य के साज-सामान
सही जगह पर रख दिए हैं
अलगनियाँ प्यालियाँ
गिलास और बोतलें
सजा दी हैं
कम शब्दों में कहें तो
सुख-सुविधा और आज़ादी का
एक सुरक्षित इलाक़ा
एक झिलमिलाता स्वर्ग
रच दिया है
इस मेहनत और इस लगन के लिए
आपको बहुत धन्यवाद
अब आप यहाँ से जा सकते हैं
यह मत पूछिए कि कहाँ जाएँ
जहाँ चाहें वहाँ जाएँ
फ़िलहाल, उधर अँधेरे में
कटी ज़मीन पर जो झोपड़े डाल रक्खे हैं
उन्हें भी ख़ाली कर दें
फिर जहाँ चाहें वहाँ जाएँ
आप आज़ाद हैं
हमारी ज़िम्मेवारी ख़त्म हुई
अब एक मिनट के लिए भी
आपका यहाँ ठहरना ठीक नहीं
महामहिम आने वाले हैं
विदेशी मेहमानों के साथ
आने वाली हैं अप्सराएँ
और अफ़सरान
पश्चिमी धुनों पर शुरू होने वाला है
उन्मादक नृत्य
जाम छलकने वाला है
भला यहाँ आपकी क्या ज़रूरत हो सकती है
और वे आपको देखकर क्या सोचेंगे
गंदे कपड़े धूल में सने शरीर
ठीक से बोलने, हाथ हिलाने
और सिर झुकाने का भी शऊर नहीं
उनकी रुचि और उम्मीद को कितना धक्का लगेगा
और हमारी कितनी तौहीन होगी
मान लिया कि इमारत की
यह शानदार बुलंदी हासिल करने में
आपने हड्डियाँ गला दीं
ख़ून-पसीना एक कर दिया
लेकिन इसके एवज़ में मज़ूरी दी जा चुकी है
मुँह मीठा करा दिया है
धन्यवाद भी दे चुके हैं
अब आपको क्या चाहिए?
आप यहाँ से टल नहीं रहे हैं
आपके चेहरे के भाव भी बदल रहे हैं
शायद अपनी इस विशाल और ख़ूबसूरत रचना से
आपको मोह हो गया है
इसे छोड़कर जाने में दुख हो रहा है
ऐसा हो सकता है
मगर इसका मतलब यह तो नहीं
कि आप जो कुछ भी अपने हाथों से बनाएँगे
वह सब आपका हो जाएगा
इस तरह तो यह सारी दुनिया आपकी होती
फिर हम मालिक लोग कहाँ जाते
याद रखिए
मालिक मालिक होता है
मज़दूर मज़दूर
आपको काम करना है
हमें उसका फल भोगना है
आपको स्वर्ग बनाना है
हमें उसमें विहार करना है
अगर ऐसा सोचते हैं
कि आपको अपने काम का
पूरा फल मिलना चाहिए
तो हो सकता है
कि पिछले जन्मों के आपके काम
अभावों के नरक में ले जा रहे हों
( यह पोस्ट तैयार करने में नागिरक अखबार और मनीष आजाद की पोस्ट से मदद ली गई है)
आंकड़ों के स्रोत-
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लेखक स्वतंत्र पत्रकार और बहुजन विचारक हैं। हिन्दी साहित्य में पीएचडी हैं। तात्कालिक मुद्दों पर धारदार और तथ्यपरक लेखनी करते हैं। दास पब्लिकेशन से प्रकाशित महत्वपूर्ण पुस्तक सामाजिक क्रांति की योद्धाः सावित्री बाई फुले के लेखक हैं।