भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद अपने तेलंगाना दौरे के दूसरे दिन तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव यानी केसीआर से मिले। इससे पहले चंद्रशेखर आजाद केसीआर की बेटी कविता राव से भी मिल चुके हैं। इस दौरान चंद्रशेखर लगातार केसीआर सरकार की तारीफें करते दिखे। चंद्रशेखर ने अपने बयान में कहा था कि उन्हें कविता दीदी ने खाने पर बुलाया था। लेकिन साफ है कि जब दो राजनीतिक लोग साथ बैठते हैं तो बात राजनीति की भी होती है।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि केसीआर द्वारा चंद्रशेखर आजाद को इतनी तव्वजो देने की वजह आखिर है क्या? क्या कहीं केसीआर तेलंगाना के पूर्व आईपीएस अधिकारी और फिलहाल तेलंगाना में बसपा की कमान संभाल रहे आर.एस. प्रवीण कुमार से डर गए हैं। और इसी वजह से दलितों के बीच उभरते नेता चंद्रशेखर आजाद को अपने साथ लाकर दलितों को संदेश देना चाह रहे हैं?
अगर ऐसा है तो यह विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े तेलंगाना में बसपा की बड़ी राजनीतिक जीत है। और केसीआर ने बसपा को ताकतवर मानकर राजनीतिक तौर पर सेल्फ गोल कर लिया है।
तेलंगाना में 17 प्रतिशत दलित वोट है जो एक बड़ा फैक्टर है। तेलंगाना में किसी पार्टी की सरकार बनाने में उसकी बड़ी भूमिका होगी। इसे बसपा के पक्ष में लाने के लिए आर.एस प्रवीण लगातार बहुजन राज्याधिकार यात्रा पर चल रहे हैं, इसके जरिये बसपा तेजी से लोगों के बीच पहुंच रही है। तो वहीं इसमें एससी-एसटी सोशल वेलफेयर स्कूल के सेक्रेटी रहने के दौरान आर. एस. प्रवीण ने जिन लाखों बच्चों की जिंदगी बदली थी, उनका और उनके परिवार का समर्थन भी उन्हें खूब मिल रहा है। कुछ मिलाकर तेलंगाना चुनाव में बहुजन समाज पार्टी अपनी मजबूत उपस्थिति से सबको चौंका सकती है।केसीआर इसी से डरे हुए हैं। यही वजह है कि वह भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर को अपने साथ लाए हैं।
तो वहीं अपने दो दिनों के तेलंगाना दौरे के दौरान चंद्रशेखर आजाद ने जिस तरह केसीआर के पक्ष में बयान दिया है, उससे साफ दिख रहा है कि भीम आर्मी प्रमुख केसीआर को अपना समर्थन देने को तैयार है। लेकिन यहां सवाल यह भी है कि राजनीति में समझौते ऐसे ही नहीं होते, बात अपने-अपने फायदे की भी होती है। तो केसीआर के साथ और आर.एस. प्रवीण के खिलाफ खड़े होने में आजाद समाज पार्टी और चंद्रशेखर आजाद का फायदा क्या है?
जहां तक चंद्रशेखर आजाद की राजनीति की बात है तो अब तक आजाद समाज पार्टी कोई खास कमाल नहीं दिखा पाई है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से गठबंधन नहीं होने पर चंद्रशेखर का मायूस होने के वीडियो ने उल्टा उनकी छवि को कमजोर ही किया। कुल मिलाकर उनका कोई भी राजनीतिक फैसला ऐसा नहीं रहा है, जिससे लगे कि पार्टी राजनीतिक तौर पर परिपक्व हो रही है। अब तेलंगाना जाकर चंद्रशेखर ने एक और राजनीतिक अपरिपक्वता का परिचय दिया है। क्योंकि तेलंगाना में बहुजन समाज पार्टी के प्रमुख रिटायर्ड आई.पी.एस अधिकारी आर.एस. प्रवीण हैं।
आर.एस प्रवीण लंबे समय तक तेलंगाना सोशल वेलफेयर एंड रेजिडेंशियन इंस्टीट्यूट के सेक्रेट्री रहे हैं। इस दौरान उन्होंने लाखों एससी-एसटी बच्चों की जिंदगी बदल दी थी। इस नाते देश भर के अंबेडकरवादियों के बीच वह खासे लोकप्रिय हैं। ऐसे में चंद्रशेखर आजाद का केसीआर के साथ आने पर देश भर के अंबेडकरवादी सवाल उठा रहे हैं। तो क्या यह राजनीतिक तौर पर चंद्रशेखर के लिए एक और गलत फैसला है। अगर हां, तो चंद्रशेखर आजाद ने कहीं सेल्फ गोल तो नहीं कर लिया।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।