– दीपक मेवाती
मानव जीवन के हर काल में सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, आमजन को इन कुरीतियों के प्रति जागृत करने का बीड़ा जिस भी शख्स ने उठाया आज उनकी गिनती महान व्यक्तित्व के रूप में होती है| संत कबीर दास, संत रविदास, बिरसा मुंडा, शियाजी राव गायकवाड, ज्योति राव फूले, सावित्रीबाई फूले, बीबी फातिमा शेख, डॉ. भीमराव अंबेडकर, मान्यवर कांशीराम आदि ऐसे ही व्यक्ति हुए जिन्होंने समाज में शोषित, दलित, पीड़ित जनता की आवाज उठाई एवं स्वयं के जीवन को भी इनके उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। समय-समय पर देश के कोने-कोने में ऐसे अन्य व्यक्ति भी जन्म लेते रहे जिन्होंने भले ही समाज को जागृत करने की कोई नई बात नहीं बताई हो, केवल ऊपर वर्णित महान लोगों के विचारों का ही प्रचार प्रसार किया।
हरियाणा के झज्जर जिले के छोटे से गांव सिलाणा में 14 अप्रैल, 1922 को एक ऐसे ही महान व्यक्ति छज्जूलाल का जन्म हुआ। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन समाज की बुराइयों पर लिखते हुए आमजन के बीच बदलाव की बात करते हुए एवं अंबेडकरवाद का प्रचार-प्रसार करते हुए व्यतीत किया। छज्जूलाल जी के पिता का नाम महंत रिछपाल और माता का नाम दाखां देवी था। इनके पिता हिंदी, संस्कृत व उर्दू भाषाओं के भी अच्छे जानकार थे। समाज में इनके परिवार की गिनती शिक्षित परिवारों में होती थी। इनकी पत्नी का नाम नथिया देवी था। इनके चाचा मान्य धूलाराम उत्कृष्ट सारंगी वादक थे। महाशय जी कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। छज्जू लाल ने मास्टर प्यारेलाल के सहयोग से उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत और हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। महाशय जी ने 15 वर्ष की अल्पायु में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। इनकी कविताओं पर हरियाणा के एकमात्र राष्ट्र कवि महाशय दयाचंद मायना की शब्दावली का भी प्रभाव पड़ा। छज्जूलाल जी ने महाशय दयाचंद जी को अपना गुरु माना।
वह 1942 तक ब्रिटिश आर्मी में रहे हैं किंतु इनका ध्यान संगीत की तरफ था, इन्होंने आर्मी से त्यागपत्र देकर घर पर ही अपनी संगीत मंडली तैयार कर ली और निकृष्टतम जीवन जीने वाले समाज को जागृत करने के काम में लग गए। उन्होंने ऐसी लोक रागणियों की रचना की जो व्यवस्था परिवर्तन और समाज सुधार की बात करती हो। महाशय जी 1988 के दौरान आकाशवाणी रोहतक के ग्रुप ‘ए‘ के गायक रहे यहां पर उन्होंने लगातार 12 वर्ष गायन कार्य किया। महाशय जी का देहांत 16 दिसम्बर 2005 को हुआ। महाशय छज्जू लाल सिलाणा एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी लोक कवि थे। उन्होंने अपने जीवन काल में 21 किस्सों और एक सौ से अधिक फुटकल रागणियों की रचना की। इनके किस्सों में डॉ. भीमराव अम्बेडकर, वेदवती-रतन सिंह, धर्मपाल-शांति, राजा हरिश्चंद्र, ध्रुव भगत, नौटंकी, सरवर-नीर, बालावंती, विद्यावती, बणदेवी चंद्रकिरण, राजा कर्ण, रैदास भक्त शीला-हीरालाल जुलाहा, शहीद भूप सिंह, एकलव्य आदि किस्सों की रचना की। महाशय जी ने सामाजिक बुराइयों जैसे दहेज प्रथा, जनसंख्या, अशिक्षा, महिला-उत्पीड़न, जाति-प्रथा, नशाखोरी, भ्रूण हत्या आदि पर भी रागणियों की रचना की।
महाशय जी को जिस ऐतिहासिक किस्से के लिए याद किया जाता है वह डॉ. भीमराव अंबेडकर का किस्सा है। इस किस्से के द्वारा इन्होंने हरियाणा के उस जनमानस तक अपनी बात पहुंचाई जो देश-दुनिया की चकाचौंध से दूर था और जिसके पास जानकारी का एकमात्र साधन आपसी चर्चा और रागणियां ही थी। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने आजीवन संघर्ष किया जिस कारण ही करोड़ों भारतीयों के जीवन में खुशियाँ आई। महाशय जी ने बाबा साहेब के जन्म से लेकर उनके अंतिम क्षणों तक को काव्य बद्ध किया। बाबा साहेब के जीवन को इन्होंने 31 रागनियों में समाहित किया। इन रागणियों को ये समाज को जागृत करने के लिए गाया करते थे। वे रागनीयांबहुत अधिक ह्रदय स्पर्शी हैं, जिनमें बाबा साहेब के बचपन में जातिगत उत्पीड़न को दर्शाया गया है। जब इन रागणियों को सांग के माध्यम से दिखाया जाता है तब दर्शक की आंखों से आंसू बहने लगते हैं।
भीमराव के बचपन की घटना को महाशय जी लिखते हैं जब महारों के बच्चों को स्वयं नल खोल कर पानी पीने की इजाजत नहीं थी तो भीमराव अंबेडकर प्यास से व्याकुल हो उठते हैं, उसका चित्रण महाशय जी अपने शब्दों में करते हैं :-
बहोत दे लिए बोल मनै कौए पाणी ना प्याता
घणा हो लिया कायल इब ना और सह्या जाता।
म्हारै संग पशुवां ते बुरा व्यवहार गरीब की ना सुणता कौए पुकार
ढएं कितने अत्याचार सुणेगा कद म्हारी दाता।
विद्यालय में जिस समय भीमराव पढ़ते थे तो अध्यापक उनकी कॉपी नहीं जांचता था, अध्यापक भी उनसे जातिगत भेदभाव करता था। इस वाकये को सिलाणा जी लिखते हैं :-
हो मास्टर जी मेरी तख्ती जरूर देख ले
लिख राखे सै साफ सबक पढ़के भरपूर देख ले…..
एक बार भीमराव बाल कटाने नाई के पास जाता है तो नाई उसके बाल काटने से मना कर देता है और कहता है :-
एक बात पूछता हूं अरे ओ नादान अछूत
मेरे पास बाल कटाने आया कहां से ऊत
चला जा बदमाश बता क्यूं रोजी मारे नाई की
करें जात ते बाहर सजा मिले तेरे बाल कटाई की|
इस घटना में नाई भी इसीलिए बाल काटने से मना करता है क्योंकि उसे समाज की अन्य जातियों का डर है।
भीमराव अपने साथ घटित इस घटना को अपनी बहन तुलसी को बताते हैं :-
इस वर्ण व्यवस्था के चक्कर में मुलजिम बिना कसूर हुए
बेरा ना कद लिकड़ा ज्यागा सब तरिया मजबूर हुए|
एक बार भीम सार्वजनिक कुएं से स्वयं पानी खींचकर पी लेता है स्वर्ण हिंदू इससे नाराज होकर भीम को सजा देते हैं उसका चित्रण महाशय जी करते हैं:-
लिखी थी या मार भीम के भाग म्ह
भीड़ भरी थी घणी आग म्ह
ज्यूं कुम्हलावे जहर नाग म्ह ना गौण कुएं पै…..
करा ना बालक का भी ख्याल पीट-पीटकर करया बुरा हाल|
बाबा साहेब के जीवन के अंतिम दिनों की दो महत्पूर्ण घटनाओं का उन्होंने बड़े सुंदर ढंग से वर्णन किया है। 14 अक्तूबर 1956 को जब बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने नागपुर में बौद्ध धर्म स्वीकार किया। उस समय दलित जनता जिस प्रकार के जोश से लबालब होकर नागपुर की ओर बढ़ रही थी, उसका चित्रण महाशय जी करते हैं-
लाखों की तादाद चली बन भीमराव की अनुगामी
बुद्धम शरणम गच्छामि, धम्मम शरणम गच्छामि
संघम शरणम गच्छामि…..
जो बतलाया भीमराव ने सबने उसपे गौर किया
बुद्ध धर्म ग्रहण करेंगे संकल्प कठोर किया
कूच नागपुर की ओर किया निश्चय लेकर आयामी
बुद्धं शरणम्……
6 दिसम्बर 1956 जिस दिन महामानव भीमराव अम्बेडकर की मृत्यु हुई। उसदिन बाबा साहेब के निजि सचिव नानक चंद रत्तू जी रोते-रोते जो कुछ कहते हैं उसको सिलाणा जी लिखते हैं –
आशाओं के दीप जला, आज बाबा हमको छोड़ चले
दीन दुखी का करके भला, आज बाबा हमको छोड़ चले…
पीड़ित और पतित जनों के तुम ही एक सहारे थे
च्यारूं कूट म्ह मातम छा गया, दलितों के घने प्यारे थे
नम आखों से अश्रु ढला, आज बाबा हमको छोड़ चले|
इस प्रकार महाशय छज्जूलाल सिलाणा ने बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर के पूरे जीवन को हरियाणवी लोक साहित्य की विधा रागनी में काव्य बद्ध किया। जिससे आमजन को भी बाबा साहब के विचारों से रूबरू होने का अवसर प्राप्त हुआ। महाशयजी का हरियाणवी लोक साहित्य के लिए भी ये अतुलनीय योगदान है। अंत में कहा जा सकता है कि महाशय छज्जूलाल सिलाणा हरियाणवी लोक साहित्य में अम्बेडकरवाद के प्रवर्तक हैं।
संदर्भित पुस्तक:- महाशय छज्जूलाल सिलाणा ग्रन्थावली (2013), सं. डॉ. राजेन्द्र बड़गूजर,गौतम बुक सैंटर दिल्ली।
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