छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की मुहिम आखिरकार रंग लाई है. संगठित आदिवासियों के भाजपा सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने के फैसले से घबराई रमन सिंह सरकार ने आखिरकार भू-राजस्व संशोधन विधेयक को वापस लेने का फैसला लिया है. इस संशोधन विधेयक के जरिए राज्य सरकार ने आदिवासियों की जमीन विकास कार्यों के लिए अधिग्रहित और खरीद फरोख्त करने का फैसला लिया था. जिसके बाद आदिवासी समाज ने इसे भारतीय संविधान का उल्लंघन करार देते हुए विरोध शुरू कर दिया था.
इस बिल में संसोधन को लेकर राज्य के आदिवासी मंत्रियों समेत प्रदेश के कई कद्दावर मंत्रियों ने आदिवासी समाज को समझाने की कोशिश की, लेकिन सर्व आदिवासी समुदाय ने राज्य सरकार के तमाम दावों को खारिज कर आंदोलन का रुख अख्तियार करने का फैसला कर लिया था.
राज्य में इस संशोधन के भारी विरोध के बीच आखिरकार मजबूरी में छत्तीसगढ़ सरकार ने गुरुवार 11 जनवरी को कैबिनेट की बैठक बुलाकर इसे वापस ले लिया. भू- राजस्व संहिता संशोधन विधेयक में आदिवासियों की जमीन लिये जाने का कानून पिछले शीतकालीन सत्र में पारित किया गया था. इसके बाद से ही आदिवासी समुदाय लगातार इस कानून का विरोध कर रहा था.
आदिवासी समाज के साथ-साथ मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भी सरकार के खिलाफ लामबंद हो गई थी, तो वहीं बीजेपी के कई नेता भी इस बिल का लगातार विरोध कर रहे थे. कांग्रेस ने तो इसे आदिवासियों के लिए काला कानून तक करार दे दिया था. छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में ही चुनाव होने हैं, ऐसे में राज्य की बीजेपी सरकार कोई भी जोखिम लेने को तैयार नहीं है. तो वहीं सरकार के पास आदिवासियों की एकजुटता के आगे झुकने के अलावा कोई और विकल्प भी नहीं था.
इस बिल की वापसी से प्रदेश में आदिवासी समाज ने जहां एक बार फिर अपनी ताकत का अहसास करा दिया है तो यह भी साफ संदेश दे दिया है कि आदिवासी समाज के खिलाफ जाकर कोई भी राजनीतिक दल छत्तीसगढ़ की राजनीति में सफल नहीं हो सकती.
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