हिंसा, नफ़रत, भय और उपहास पर आधारित भी क्या कोई धर्म हो सकता है? जी हां! उसका नाम है हिन्दू, वैदिक, सनातनी, मनुवादी आदि. रुकिए! जनाब ये सब एक ही धर्म के नाम हैं, जी कुछ और भी हो सकते हैं. मगर इनके त्यौहार में नाचने, मुस्कुराने, हंसने या गले मिलने सबके पीछे कोई गहरी साज़िश ही रही है.
आज देश के कई हिस्सों में औरतों की चोटी काटने की घटनाएं सामने में आ रही हैं. इसी बीच एक महिला को डायन कह कर मार दिया गया. ये सब घटनाएं गरीब, दलित-आदिवासी बस्तीयों/गांवों में ही क्यों होती हैं? ये सवाल आपके मन क्यों नहीं आता? समाधान के लिए सवाल जरुरी है.
वास्तव में यह सब बहुत सोचा-समझा षडयंत्र है. ये साज़िश सीधे आपके दिमाग को कंट्रोल करने की है. आपके हाथ-पैर बांधने की जरुरत नहीं पड़ती. आपके दिमाग को दुश्मन अपनी मर्ज़ी से चलता है. ये वही हो रहा है.
सोचिए अब होगा क्या? लोग अपनी लड़कियों को घर तक सीमित कर देंगे. सीधे असर लड़कियों की शिक्षा पर असर पड़ेगा. अनपढ़ता की वजह से लोग पहले ही अपनी लड़कियों को गांव से बाहर भेजने को तैयार नहीं होते. अब अगर कुछ जागरूकता आयी थी तो ये षड़यंत्र रच दिया गया.
ये साज़िशें कोई अधार्मिक अर्थात नास्तिक लोग नहीं रचते अपितु तिकलधारी, चोटीधारी, जनेऊधारी, नीकारधारी रचते हैं ताकि दलित-आदिवासी कभी शिक्षित हो ही न पाए. देखिएगा इस घटना के बाद हज़ारों बेटियों का स्कूल/कॉलेज छुड़वा दिया जाएगा.
याद करो! जिन दिनों बच्चों को अपने एग्जाम की तैयारी करनी होती है उन्हीं दिनों तिकल-चोटी व जनेऊधारी पंडित शादी की तारीखें निकालता है. दलितों के लिए कुछ अलग देवता भी गढ़े गए हैं जैसे गोगा, बालक नाथ आदि. उनके बड़े-बड़े मेले भी उन्हीं दिनों में लगते हैं. यह सब मनु के कहने के अनुसार हो रहा है कि दलित-आदिवासी शिक्षा से दूर रहे.
कहते हैं कि मन्त्रमुग्ध करके कोई चोटी काट ले जाता है. ऐसे लोगों को सरहद पर भेजिए. जहां चीन शंकर के हिमालय की चोटियों पर काट रहा है. बकवास है, कुलबुलाहट है, नहीं सहन कर पा रहे कि कल जो चारपाई पर नहीं बैठते अब वो अधिकारी की कुर्सी पर बैठकर शासन का हिस्सा बनने जा रहे हैं.
इसमें कुछ गुमराह दलित औरतें और महन्त-नुमा लोग भी शामिल हैं. वास्तव में ये मज़ारों और पंडितों के एजेंट हैं जिन्हें नहीं पता कि वो क्या कर रहे हैं. ये स्वयं चोटी काटते हैं और भीड़ में शोर मचा देते हैं. इसके लिए इन्हे कुछ पैसे या दूसरे लालच मिलते होंगे. ऐसा करके ये बाकि मासूम लोगों को फांस लेते हैं.
आप स्वयं सोचिए! आपने कब तक हिन्दू-धर्म को पालना है? धर्म लिखते हुए भी अपने आप पर गुस्सा आता है कि किस प्रकार की नीच, साज़िशी व हिंसक सोच को मैं धर्म कहने को मज़बूर हूं. इन तमाम साज़िशों को समझते हुए अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचिए.
यह लेख दर्शन ‘रत्न’ रावण ने लिखा है.
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