भारत में जातीय अत्याचार की खबरें आम हैं। जाति के कारण देश के किसी न किसी हिस्से में हर रोज जोर जुल्म होता है। हम आप इसे सुनते हैं और आगे बढ़ जाते हैं। इसी बीच कोई बड़ी घटना होती है, हो-हल्ला होता है और जाति के विनाश की बातें होती है और फिर किसी अगली बड़ी घटना तक जाति उन्मूलन का आंदोलन थम जाता है। लेकिन जाति का कीड़ा भारत के बीमार समाज के अंदर कितना गहरे तक धंसा है, यह कांग्रेस नेता और पंजाब के लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू के एक बयान से समझा जा सकता है।
कांग्रेस के इस सांसद ने पंजाब में अकाली दल और बसपा गठबंधन के बाद ऐसी बात कही, जिसने पंजाब और दुनिया भर में मौजूद दलित समाज के लोगों को ठेस पहुंचाई। दरअसल अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी के बीच आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर गठबंधन हुआ है। सीटों के बंटवारे में आनंदपुर साहिब और श्री चमकौर साहिब की सीट बसपा को मिली है। ये दोनों क्षेत्र सिख धर्म के लिए काफी पवित्र माने जाते हैं।
कांग्रेस सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने कहा था कि दोनों दलों के बीच सीटों पर समझौते में श्री आनंदपुर साहिब और श्री चमकौर साहिब की पवित्र सीटें शिरोमणि अकाली दल ने बहुजन समाज पार्टी को दे दी हैं। उनके इस बयान पर पंजाब में बवाल मच गया था। बसपा ने विरोध करते हुए एससी-एसटी एक्ट में मामला दर्ज कराया, मानहानि का मुकदमा भी दर्ज हुआ।
मामला राज्य अनुसूचित जाति आयोग पहुंचा तो सांसद रवनीत सिंह बिट्टू को तलब किया गया। बिट्टू ने सोमवार 21 जून को आयोग के सामने हाजिर होकर अपना पक्ष रखा और कहा कि उनका मकसद दलित समाज के प्रति कोई गलत भावना वाला बयान देने का नहीं था और यदि उनके बयान से किसी को ठेस पहुंची है, तो वह बिना शर्त माफी मांगते हैं। यानी सरकारी तौर पर मामला रफा-दफा हो गया।
हालांकि सरकारी तौर पर मामला भले थम गया हो सवाल यह रह जाता है कि क्या दलितों के साथ सीधे उत्पीड़न को ही दलित उत्पीड़न माना जाना चाहिए। क्या बिट्टू जैसे बीमार सोच वाले लोगों के इस तरह के बयान दलित समाज के मान-सम्मान को चोट नहीं पहुंचाते हैं?? क्या कोई विशेष स्थान भी दलितों के लिए अछूत होना चाहिए?? अगर बिट्टू जैसे तमाम लोगों को ऐसा लगता है तो फिर बेहतर होगा कि भारत सरकार देश भर के दलितों के लिए उनकी जनसंख्या के हिसाब से देश का एक हिस्सा काट कर उन्हें अलग कर दे और अपने पवित्र स्थान अपने पास रखें।
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