मैं सहमत हूं, कांग्रेस का शासन अच्छा नहीं था. उसके कुछ साल तो वाकई बुरे थे. पर उसके बाद का यह ‘संघ परिवारी राज’? यह तो बहुत बुरा, विनाशकारी होने की हद तक बुरा साबित हो रहा है! लोकतांत्रिक संरचनाएं चरमरा रही हैं. संवैधानिक संस्थाएं अपना स्वतंत्र वजूद खो रही हैं. विरोधियों, आलोचकों और असहमति की आवाजों को तरह-तरह से कुचला जा रहा है.
यह बात सही है कि सन् 1947 में जिस तरह स्वतंत्र भारत वजूद में आया, उसे हासिल करने में इस ‘भगवा परिवार के के पूर्वजों’ (जो सन् 1925 से लगातार सक्रिय रहे पर आजादी की लड़ाई में नहीं) का कोई योगदान नहीं था. इनके पूर्वजों में कुछ बेहद गणमान्यों ने ‘टू नेशन थिउरी’ का मोहम्मद अली जिन्ना से पहले ही प्रतिपादन कर दिया था.
इनका मातृसंगठन शुरू से ही कुछ अलग तरह का देश चाहता था. उन्हें मनु का देश और मनु का विधान पसंद था. वे मुल्क को अतीत के राजे-रजवाड़ों की हुकूमत की तरफ ले जाने चाहते थे. वे आधुनिक लोकतंत्र के विरुद्ध थे. यह महज संयोग नहीं कि स्वतंत्र भारत में बहुत सारे भूतपूर्व राजे महराजे जब राजनीति में उतरे तो जनसंघ या स्वतंत्र पार्टी जैसे संगठन उनके स्वाभाविक विकल्प बने. अनेक कांग्रेस में भी आये. पर मुल्क ने आजादी की लड़ाई के दौरान विकसित होते राजनीतिक मूल्यों की रोशनी में सन् 1950 में आंबेडकर के संविधान को अपनाया. इसने हमें संवैधानिक लोकतंत्र दिया. यह सही है कि इसके अमल में असंख्य गलतियां, शरारतें और साजिशें हुईं.
इन सब से सबक लेकर ही यह मुल्क बेहतर दिशा में आगे बढ़ सकता है. शहीद भगत सिंह और डॉ बी आर आंबेडकर के विचारों को मिलाकर ही यह दिशा तय हो सकती है. संघ परिवार की दिशा पहले संकीर्ण मनुवादी और पुनरुत्थानवादी थी, आज पूरी तरह विनाशकारी है. वह भारत नामक एक बनते हुए आधुनिक राष्ट्र राज्य की आधारशिला को ही धाराशाही करने पर तुली है.
उर्मिलेश

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