नई दिल्ली- शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन और अपनी बेबाकी के चलते चर्चा में बने रहने वाले वसीम रिजवी ने धर्म परिवर्तन कर लिया है। जी हां, वसीम रिजवी ने इस्लाम धर्म छोड़कर सनातन धर्म अपना लिया है। सनातन धर्म अपनाते ही उन्होंने अपना नाम बदलकर जितेंद्र नारायण सिंह त्यागी रख लिया है।
खबर है कि सोमवार की सुबह गाजियाबाद के डासना मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती ने उनकी घर वापसी करवाई। जिसके बाद उनका नामकरण भी किया गया।
सनातन धर्म को बताया सबसे अच्छा…
धर्मपरिवर्तन के बाद रिजवी उर्फ़ जितेन्द्र नारायण सिंह त्यागी ने कहा- “धर्मपरिवर्तन की यहां कोई बात नहीं है, जब मुझे इस्लाम से निकाल दिया गया, तो ये मेरी मर्जी है कि मैं किस धर्म को स्वीकार करूं। सनातन धर्म दुनिया का सबसे पहला मजहब है और जितनी उसमें अच्छाईयां पाई जाती हैं वो किसी और धर्म में नहीं है। इस्लाम को हम धर्म समझते ही नहीं है”।
उन्होंने ये भी कहा कि “मुझे इस्लाम से बाहर कर दिया गया है, मेरे सिर पर हर शुक्रवार को इनाम बढ़ा दिया जाता है, ऐसे में मैं सनातन धर्म अपना रहा हूं।“
अपनी वसीयत में लिखी अंतिम इच्छा
हिंदू धर्म अपनाने से कुछ दिनों पहले रिजवी ने अपनी वसीयत लिखी थी, जिसमें उन्होंने अपने अंतिम संस्कार से जुड़ी इच्छा के बारे बताया था। उन्होंने बताया था कि उनके मरने के बाद उन्हें दफनाया नहीं जाए, बल्कि हिंदू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया जाए और उनकी चिता को अग्नि कोई और नहीं बल्कि यति नरसिम्हानंद दें।
जब सुप्रीम कोर्ट ने लगाया जुर्माना
बताते चले कि वसीम रिजवी ने कुरान की कथित रूप से ‘विवादित 26 आयतों’ को हटाने और एक नया कुरान लिखने की बात भी कह चुके हैं, जिससे बड़ा विवाद खड़ा हो गया था। इन आयातों को हटाने के लिए रिजवी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दाखिल की थी जिसे कोर्ट ने ख़ारिज करते हुए उन पर 50 हजार रूपये का जुर्माना लगाया था।
किताब से मिली धर्मगुरुओं की नाराजगी!
इससे पहले रिजवी ने एक किताब ‘मोहम्मद’ लिखी थी। जिसे लेकर काफी सियासी हलचल बनी रही, इतना ही नहीं, इस किताब को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने नाराजगी जताते हुए कहा था कि इस किताब के जरिए रिजवी ने पैगंबर की शान में गुस्ताखी की है। इसी के बाद रिजवी ने कभी भी अपनी हत्या होने को लेकर बयान जारी किया था।

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।