आज के समय में भारतीय राजनीति की बात करें तो देश समाज का विकास नहीं वल्कि उसे नष्ट करने के लिए दीमक के समान अंदर ही अंदर खोखला किये जा रहा है. आने वाला समय देश व समाज के लिए घातक होता जा रहा है. सवर्ण-अवर्ण के बीच खाई बढ़ती जा रही है. वह चाहे पढ़े-लिखे हों या मजदूर किसान ही क्यों न हो इसका प्रमुख कारण यह है कि अब वंचित वर्ग जो (दलित अति दलित यह नाम दिया हुआ है सवर्णों का) पढ़-लिख गया है. अपने अधिकारों के प्रति सजग प्रहरी की तरह तैनात है. जहां अपरजाति के लोगों की मनमानी नहीं चल पा रही है वे बौखला गए हैं. अपना सनातनी धर्म व रामराज्य को स्थापित करने के लिए जहाँ कोई अवर्ण, सवर्ण के कार्य को न धारण करे यथा सम्बुक ऋषि. वे जैसा चाहतें हैं वैसा ही चलता रहे परन्तु अब ऐसा होना संभव नहीं है क्योंकि मैं ऊपर ही लिख चूका हूँ कि वंचित वर्ग के लोग शिक्षित और पढ़े-लिखे लोग है.
राजनीति में उनका भी अपना आस्तित्व है तभी तो उत्तर प्रदेश जैसे बड़े जनसंख्या वाले प्रदेश में वचितों की सरकार चार बार रह चुकी है और पांचवीं बार की तैयारी है. जो उन लोगों के आँख की किरकिरी बनीं हुई है और आये दिन उसकी छबि को खराब करने में लगे हुए हैं, नाना प्रकार के हथकंडे अपनाएं जा रहे हैं. गाली-गलौज का माहौल पिछले कुछ हफ़्तों से बना हुआ है जो परिचायक है मानसिक संतुलन के खो देने का. राजनीतिक स्तर के निम्न होनें और देश के विकास का स्तर दिन प्रतिदिन कम होते जाना आने वाले समय के लिए शुभ संकेत नहीं है. व्यक्ति राजनैतिक असंतोष का शिकार हो चुका है. वर्तमान समय के राजनीति धुरी की बात करें तो इसकी दो धुरियां है. एक गाय जो निरपराध पशु अपने भाग को पल-पल कोसती रहती है, उसे तो यह भी नही मालूम की उसका पति, बेटा बाप, भाई कौन है पल-पल में उसके नाते रिश्ते अपनों से बदलते रहते हैं पर तथाकथित एक वर्ग विशेष के लोग हैं जो उसे अपनी माँ की हैशियत से देखते हैं. वे लोग बधाई के पात्र हैं जो पशु को भी सम्मान की दृष्टी से देखते हैं. पर तभी तक जब तक कि उसे राजनीतिक हाशिये पर न लिया जाय. जो राजनीति का दूध दुह रहा है वह उसे पालता नहीं और जो उसे पालने वाला है. मारे डर के नहीं पालता क्योंकि उसे डर है अपने जीवन के आस्तित्व को लेकर कब कोई बहसी बन बैठे और ऊना तथा मंदसौर कांड हो जाये. बीते दिनों की बात करें तो गुजरात में अनुसूचित जाति के युवकों को खम्भे से बांधकर बेरहमी से इसलिए मारा गया कि वे मरी गाय की खाल को निकाल रहे थे इसमें उन युवकों ने कौन सा पाप किया उसकी खाल से शुद्ध चमड़े का कौन सा जूता या बेल्ट अपने लिए बनाते. उन विचारों को तो पलास्टिक या फ़ोम के ही जूते मयस्सर होंगे रेडचिफ बूट के महंगे जूते देखना ही उनके लिए बड़ी बात है.
हमारे लालूप्रसाद यादव जी ने एक प्रश्न किया है कि जो लोग महंगा-महंगा जुतवा पहनता है ऊ काहे का बना होता है? हर हाल में यह जायज है जबाब दो. तब तो आप बाज़ार जाते हैं तो रेडचीफ़ और बूट का जूता मंगाते हैं. इतने बड़े गौमाता के भक्त हैं तो मत पहनिए चमड़े का जूता और बेल्ट, प्लास्टिक का प्रयोग करें. आप नहीं पहन सकते. इन्हें तो केवल-केवल मजदूर वर्ग ही पहनता है. वहीँ मंदसौर (मध्यप्रदेश) की घटना इससे भी कहीं ज्यादा निंदनीय है जहां मुस्लिम महिलाओं को इसलिए मारा-पिटा गया कि वे अपने निवाले के लिए मांस लेकर आ रहीं थीं. मज़े की बात यह है कि वह मांस जांच में गाय का न होकर वल्कि भैंस का पाया गया. कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के औद्योगिक नगर क्षेत्र नोएडा में एक व्यक्ति का कत्ल भी इसी के चलते कर दिया गया था. अब इसे अंधेर नगरी चौपट राजा नहीं तो और क्या कहें. जनता जहां स्वंय ही क़ानून और न्यायालय बनी हुई है. आख़िर काज़ी और पुलिस का कार्य जनता को किसने दिया. ऐसा ही चलता रहा तो वे दिन दूर नहीं जब यहाँ के दूधमुंहे बच्चे भी क्रांति के लिए मैदान में आ डटेंगे.
दूसरी धूरी वंचित वर्ग का विशाल तबका है जिस पर राजनीति की रोटी सेकी जा रही है. सभी पार्टियाँ उनकी सभी समस्याओं को जड़ से उखाड़ फ़ेंकना चाहती हैं लेकिन जातिवाद को कोई नहीं. जब तक देश में जातिवाद रहेगा तब समस्यायें जाने का नाम नहीं लेंगी. जातिवाद के नाम पर देश के कोने-कोने में आयें दिन लोग प्रतिदिन 18 व्यक्ति/मिनट प्रताड़ित होते रहते हैं. मजदूर किसान से लेकर छात्र और सरकारी मुलाज़िम तक सभी पीड़ित है. कोई मजदूरी में तो कोई शिक्षा में तो कोई चरित्रपंजिका में जाति के दंश को झेल रहा है और चुप हैं. अब तो हमारे राजनेता भी सुरक्षित नहीं वे भीं आम जनसमान्य की तरह अश्लील गालियों व् टिप्पड़ी के द्वारा लांक्षित किये जा रहें हैं उनकी अस्मत पर सवाल उठाये जा रहे हैं.उनका भी जीवन सुरक्षित नहीं है.
अम्बेडकरवादियों की विदेशी धरोहर( अम्बेडकर भवन) को ख़रीदा जा रहा है. अपने ही देश में जहां उनका कर्म क्षेत्र रहा है को मध्यरात्रि में उनके ईश्वर सदृश्य बाबा साहब के भवन (कर्मस्थान) को गिरा कर इतिहास को धूमिल किया जा रहा है. और यह अम्बेडकर के साथ हो रहा अन्याय वंचित वर्ग के सहन से बाहर है, वे एक पैगम्बर ही हैं जो उनकें मंडप की वेदी पर आ विराजें है जिनके सम्मुख नवदम्पति मरने जीने की कस्में उनकों साक्षी मानकर लेता है क्या वह कभी बर्दास्त करेगा. ये कैसा दलित प्रेम है. घर का चिराग बुझा कर शमशान मे आग जलाई जा रही है. यह वंचित वर्ग के लिए कोई पुण्य काम न करते हुए वल्कि अन्तरराष्ट्रीयता को भुनाया जा रहा है.
कोई उनके साथ चाय, तो कोई पांति में बैठकर खाना खा रहा है. अपने होर्डिंगों बैनर आदि पर फोटो अम्बेडकर की लगाते हैं. उनकी पहली प्रतिज्ञा की रीढ़ मारकर ही उनके सम्मुख लिखते है जय भोले जय श्रीराम आदि-आदि, लेकिन किसी ने शिक्षित करो, संगठित रहो, संघर्ष करो, लिखना उचित नहीं समझा. बाबा साहेब सदैव व्यक्तिवादी राजनीति को समाज के लिए कोड़ ही समझा परन्तु आज ख़ुद ही वे उसी के शिकार हो गएँ हैं. इससे बड़ी बिडम्बना और क्या हो सकती है. हाय तोबा हाय तोबा मची है अम्बेडकर के नाम की लूट लो….. देश की 70% पार्टियाँ अम्बेडकराईज्ड हो गयी हैं लेकिन सिद्धान्तः शून्य को इंगित कर रही हैं. इस अम्बेडकरपने से हमारे वंचित भाईयों के जीवन में कोई परिवर्तन नहीं होने वाला मेरे अपने विचार के अनुसार अधोलिखित में से कोई एक कार्य वंचितों के लिये कर दिया जाय तो यह बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकेगाः-
1- सम्पूर्ण देश में सवर्ण-अवर्ण के बीच रोटी-बेटी का सम्बन्ध.
2- उन्हें उनका 1932 पूना-पैक्ट का अधिकार सम्प्रदायिक आवार्ड जिसे गाँधी जी के द्वारा छीन कर आरक्षण का तुच्छ टुकड़ा उनके सामने फेंक दिया गया था.
3- या सम्पूर्ण समाज को जातिविहीन कर समान पढ़ने-लिखने का अधिकार “ सबको शिक्षा एक समान, राष्ट्रपति का बेटा हो मजदूर किसान”.
इस आधार पर किसी को विश्वास हो या न हो पर हमें पूरा विश्वास है कि वंचितों के जीवन में अभूत-पूर्व परिवर्तन किया जा सकेगा. वे देश समाज के लिए विकास की एक नयीं किरण लेकर आएंगे. उन लोगों के मुंह पर यह करारा तमाचा होगा जो यह कहते हैं कि दलित आरक्षण के बल पर पढ़-लिख कर आगे बढ़ते हैं.
उपरोक्त मांगों के आधार पर न यहां दोगली राजनीति होगी और न हि कहीं कोई दलित प्रताड़ित किया जायेगा और नहीं किसी की चरित्रपंजिका से खिलवाड़ होगा. उनका अपना जीवन अपने हाँथ होगा वे जैसा चाहेंगें वैसा जीवन जियेंगे. अपने देश की संसद के समय में भी प्रयाप्त बचत किया जा सकेगा जिस पर लाखो/मिनट खर्च किये जाते है केवल बहस के लिए. दलित समस्या की बहस को छोडकर देश के विकास की बात की जाएगी. वंचित वर्ग अपना विकास ख़ुद-ब-ख़ुद करेगा सबसे बड़ी बात तो यह है.कि वह किसी का मोहताज़ नहीं होगा. और फिर से वह अपने सिन्धुघाटी जैसी सर्वोच्च सभ्यता का विकास कर सकेगा अपने इतिहास को दोहरा सकेगा.
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वंचित समाज के उज्जवल भविष्य को बहुत ही तार्किक बातों के साथ रखा गया है व वर्तमान में घटित घटनाओं की जो चर्चा लेखन में की गयी है, वह सर्वथा सत्य है