क्या आप जानते है? इक्कीसवीं सदी आपके लिए दासता की बेड़ियां निर्मित कर रही हैं. क्योंकि…
राजतन्त्रः किसी भी समाज को गुलाम अर्थात दास बनाता है. और पूंजीवाद राजतन्त्र का पोषाक होता है.
गणतन्त्रः समाज को स्वतन्त्र रखता है और पूंजीवाद गणतन्त्र का शोषक होता है.
बीसवीं सदी के मध्य में ही बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने बहुजन समाज को, हजारों साल से चली आ रही मानवता विनाशक नीति ‘‘राजतन्त्र’’ के दल-दल से दलितों को निकाल कर, तथागतबुद्ध की सरण में ले जाकर ‘‘जियो और जीने दो’’ की नीति के तहत स्वतन्त्रत जीने का अवसर दिया. बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने दलितों और वंचितों के उत्थान के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. बाबासाहेब ने विदेशों में शिक्षा ग्रहण करके बड़ी लगन मेहनत से दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान देकर भारत को गौरवान्वित किया. भारत का संविधान बनना 10,000 साल की सभ्यता में सबसे बड़ी ऐतिहासिक घटना है.
बाबासाहेब ने देश दुनिया के साथ-साथ अपना सारा जीवन उन लोगों को उठाने के लिए लगाया जो इस देश में गरीब, मजबूर, सर्वहारा, शोषित, गुलाम तथा दलित थे. जिनका समाज में मान-सम्मान नहीं होता था. जिन्होंने अपने ही देश में अपना अस्तित्व खो दिया, अपनी पहचान खो दी और अपने ही देश में गुलाम हो गए. लेकिन बहुजन समाज के दिखावटी बौद्ध, बौद्धाचार्य, नेता, अधिकारी, कर्मचारी तथा समाजिक संस्थायें गणतन्त्र (बुद्ध-अम्बेडकर) की चादर ओड़कर पूंजीवादियों की चमचागिरी करने में लगे हुए है. क्योंकि राजतन्त्र अर्थात ‘‘ब्राह्मणवाद’’ और गणतन्त्र अर्थात बुद्ध-अम्बेडकरवाद के माध्यम से यही नेता-धर्म-गुरू अर्थात अधिकारीगण तथा यह समाजसुधार के ठेकेदार व सामाजिक संस्थाएं, मंचों पर ब्रह्मणवाद का विरोध और बुद्ध-अम्बेडकर वाद के प्रशंसक बन कर हमको धोखा दे रहे हैं. परन्तु स्वयं ब्राह्मणवाद व्यवस्था को छोड़ते नहीं है. राजतन्त्र के चार मूल स्तम्भ-साम, दाम, दण्ड, भेद किसी को भी समझाकर, लालच देकर, दण्डित कर, विभाजित कर कायिक-वाचिक-मानसिक स्तर पर भ्रमित करना. उर्पयुक्त चारों नीतियों से सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, न्यायिक स्तर पर गुलामी का जीवन जीने को मजबूर कर देना.
गणतन्त्र के चार मूल स्तम्भ-
समता- किसी (जाति-वर्ग-स्त्री-पुरूष-रंग-भेद) से भी कायिक वाचिक मानसिक स्तर पर समानता का व्यवहार करना.
स्वतन्त्रता- किसी को भी कायिक-वाचिक-मानसिक तौर पर आजादी से जीवन यापन करने देना. किसी प्रकार बंधन, भेदभाव, अन्याय, अत्याचार से मुक्त होकर जीने देना.
बन्धुता- किसी को भी कायिक-वाचिक-मानसिक स्तर पर भाई-चारे का व्यवहार करना, क्योंकि देश के अन्दर हर धर्म, हर जाति के अन्दर भाई चारा ही समता मूलक आदर्श समाज बनाएगा. और देश समृद्धिशाली एवं प्रबुद्ध भारत बनेगा.
न्याय- भारत के दार्शनिक एवं विचारक बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि दुनियां में न्याय कैसा होना चाहिए? जो न्याय अदालत, सुप्रीम व हाईकोर्ट में होता है वो न्याय नहीं है. ऐसी सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था और राजकीय व्यवस्था का निर्माण करना जहां पर असमानता और भेदभाव न हो, ऐसा न्याय होना चाहिए.
बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर ने लोकतान्त्रिक भारत का संविधान बनाया. बाबासाहेब ने 25 नवंबर 1949 को कहा कि जाति देश विरोधी भी है. जब तक भारत में जाति रहेगी तब तक भारत एक राष्ट्र नहीं बन सकता है जबकि लोग गांधी को राष्ट्र पिता कहते हैं. इसलिए बाबासाहेब ने संदेश दिया अगर भारत को सही मायने में राष्ट्र बनाना है तो भारत को बन्धुता की जरूरत है. बाबासाहेब ने प्रखरता से बोला कि हमारा संविधान समता, स्वतन्त्रता, बन्धुता, न्याय की बात करता है लेकिन हमारा समाज इन सिद्धांतों को नकारता है. उन्होंने कहा कि हमारा संविधान इस देश के लिए सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक समानता की बात करता है लेकिन वास्तविकता में भारतीय समाज उसका पालन नहीं कर रहा है. हमारी सामाजिक व्यवस्था इन सिद्धान्तों को नकारती है क्यों? जाति के वजह से.
भारत को मजबूत राष्ट्र और प्रबुद्ध भारत बनाना है तो भारत में जाति बीज का समूल नाश करने के लिए बुद्ध धम्म दीक्षा लेकर अपने पूर्वजों के धम्म में वापस आना पड़ेगा. तभी जाति, धर्म और मानसिक गुलामी से मुक्त होकर दलित भारत में मान-सम्मान, सुख-शांति का जीवनयापन कर सकेंगे और बाबासाहेब के बौद्धमय भारत बनाने का सपना साकार होगा. बुद्ध दुनिया के पहले महामानव दार्शनिक एवं धम्म आविष्कारक हैं, जिन्होंने महिलाओं को पुरूषों के बराबर दर्जा दिया. ऐसी मानवतावादी, वैज्ञानिक, शील, समाधि, प्रज्ञा, मैत्री, शान्ति का बुद्ध धम्म दुनिया के लगभग 130 देशों मे फैल चुका है. जबकि भारत तथागत बुद्ध-डॉ.अम्बेडकर की जन्मभूमि होने के बावजूद भी और बुद्ध-अम्बेडकर वाद से कोसों दूर है.
लेखक रिटायर्ड अधिशासी अभियन्ता हैं.

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