आज कुछ अजीब सा हुआ. कुछ अजीब सा शब्द सुना. जिसने वह एक लाइन बोली थी. उसमे एक शब्द दलित था. उसकी जुबान से जैसे ही दलित शब्द निकला मेरा कान खड़ा हो गया और पूरी लाइन को बड़े गौर से सुना. अजीब इसलिए बोल रहा हूं कि यह लाइन ही कुछ ऐसी थी कि एक बारगी लगा कि बाबा साहब डॉ. भीम राव अम्बेडकर का सपना पूरा होने के करीब है. अगर बाबा साहब की आत्मा ने उस व्यक्ति की लाइन सुनी होगी, तो वास्तव में तृप्त हो गई होगी और ऊपर वाले को धन्यवाद दिया होगा कि मेरा बहुजन समाज अब अपने पैरो पर खड़ा हो गया है. बल्कि खड़ा होकर चलने भी लगा है. मेरे समाज की गति भले ही धीमी है, लेकिन वह लगातार आगे बढ़ता जा रहा है.
अब आप भी कन्फ्यूजन में होंगे कि आखिर ऐसा क्या हो गया, जो शायद बड़े बदलाव की दस्तक दे रहा है. दरअसल, मैं आज ऑफिस में बैठा हुआ था. करीब 3 बजे सूचना आई कि कुछ बाइक सवार हमलावरों ने गोली मार कर चाचा भतीजे को घायल कर दिया है. चाचा को सीने में गोली लगी है और उसकी हालात गंभीर है. मैंने अपने बीट रिपोर्टर से कुछ जानकारी ली और न्यूज़ आने का इंतज़ार करने लगा. शाम करीब 6 बजे बीट रिपोर्टर ने न्यूज़ भेजी.
मेरे बगल में बैठे साथी ने न्यूज़ की हेडिंग पढ़ी. न्यूज़ की हेडिंग थी ””””दलित भाइयों ने सवर्ण चाचा भतीजे को गोली मारी, चाचा की हालत गंभीर””””. हेडिंग पढ़ कर उन्हें बड़ा बुरा लगा. उन्होंने जोर से हेडिंग पढ़ा कि दलित भाइयों ने सवर्ण चाचा भतीजे को गोली मारी, चाचा की हालत गंभीर””””. इस लाइन को सुनते ही ब्यूरो ने भी इस न्यूज़ को देखनी शुरू की. उन्होंने कहा, मेरे यहां संपादकीय भी छपा था कि दलित क्यों पिटते हैं. तो मेरे बगल वाले साथी ने कहा, यहां दलित भाइयो ने गोली मारी है. आश्चर्य वाली बात ये है. दलितों की पिटाई तो आम बात है और सदियो से होता आ रहा है, लेकिन यहां तो दलितों ने ही पीटा है. तो ब्यूरो ने कहा, हां, कुछ दिन पहले एक और खबर छपी थी कि दलितों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा.
दलितों ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा शब्द जैसे ही सुना मैं तो तेज से हंस पड़ा. वैसे भी मेरी आवाज थोड़ी तेज है. मेरी दूसरी तरफ बैठे दूसरे साथी ने (जो जाति से ठाकुर हैं) कहा कि देखो आज तुम्हे यह सुनकर कितना खुशी मिली. दिल खोल कर हंस रहे हो कि दलित ने सवर्ण की पिटाई की.
मैंने कहा, नहीं भाई साहब. मेरी हंसने की वजह ये नहीं है कि दलित ने सवर्ण की पिटाई की. बल्कि मेरे हंसने का कारण उस बीट रिपोर्टर की सोच है. वह भी सवर्ण है, उसके दिमाग में यह बात आती होगी कि जब दलित मार खाते हैं तो चिल्लाते हैं और अखबार में छपता है कि दलित को मार दिया. इस दलित शब्द का पूरा फायदा उठाते हैं और हमारे खिलाफ एससी/एसटी का मुकदमा भी ठोंक देते हैं. तो यह भी बात लोगों को पता चलनी चाहिए कि अब मार खाने वाला दलित ने आज एक सवर्ण के घर में घुस कर गोली मारी है. अब इस दलित को कानून और ये नेता लोग क्या सजा देंगे. क्या ये नेता लोग उस पीड़ित सवर्ण के घर आकर सांत्वना देंगे या आर्थिक मदद की घोषणा करेंगे या फिर धरना देंगे. इस तरह के ख्यालात आने पर ही उसने ऐसी हेडिंग लिखी है. बहरहाल, मैंने उस न्यूज को दुबारा लिखकर भेज दिया.
इस खबर में कहीं भी मैंने दलित शब्द का उल्लेख नहीं किया, लेकिन हर लाइन में एक बार यह लाइन जरूर आ जा रही थी की दलित भाइयों ने सवर्ण चाचा भतीजे को गोली मारी, चाचा की हालत गंभीर””””. यह लाइन और दलित शब्द ने आत्मिक सुख दिया. ऐसा एहसास हुआ कि मेरे साथ बैठे सभी सवर्ण साथियों को यह जानकर दुःख हो रहा है कि अब हमारे ऐसे दिन आ गए कि मेरे ही पैरों की जूती मेरे सिर पर लग रही है. इन एहसासो के साथ ही अंतर्मन में लज्जित हो रहे होंगे और मुझे कोस रहे होंगे. ऐसा लगा कि वास्तव में बहुजन समाज आगे बढ़ रहा है. तरक्की कर रहा है.
जो सपने बाबा साहब ने देखे और उसे पाने के लिए संविधान के जरिये रास्ते बताये, उस पर हमारा बहुजन समाज चल पड़ा है. मान्यवर कांशीराम जी साहब ने देश भर के बहुजन समाज में जो राजनितिक चेतना जगाई, उसे अब समझने लगा है. हमारा दलित बहुजन समाज जान चुका है कि हम ही यहां के असली राजा हैं और आज हमारी ही बिल्ली, हमें ही म्याऊं बोल रही है. यह समझ बसपा सुप्रीमो मायावती जी के त्याग ने तेजी से विकसित किया है. यही वजह है कि जहां देश भर से दबा कुचला बहुजन समाज को रोज सवर्णों की मार खाने की खबर आती है तो देश के किसी कोने से 10 में से एक खबर यह भी आती है कि दलितों ने सवर्णों की पिटाई की. जिनमें ज्यादार खबरें सवर्ण पत्रकार और लोग छुपा लेते हैं ताकि दलितों को पता न चले कि ठाकुर साहब या पंडित जी की पिटाई दलित ने की है.
यदि यह बात बहुजन समाज को पता चलती है, तो वह हमारा मजाक उड़ाएगा. सामने उसकी हंसने की हिम्मत तो नहीं है, लेकिन अकेले में तो जरूर हंसता होगा. अगर बात सिर्फ शर्मिंदगी तक की सिमट जाए अच्छी बात होती, लेकिन इसकी जानकारी होने पर बहुजनो की हिम्मत बढ़ेगी. उनकी एकता बढ़ेगी.
सवर्णों के इतना कुछ छुपाने के बावजूद बहुजन समाज जाग्रत हो रहा है, तो यह हमारे महापुरुषों और मायावती जी जैसे दलित नेताओं की बदौलत. यह बदलाव बहुजन समाज को सुखद सन्देश दे रहा है कि आने वाले समय में बहुजन समाज ही सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के सपने को साकार कर सकता है, क्योंकि बहुजन समाज ही महात्मा गौतम बुद्ध के सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय के बौद्ध धर्म में विश्वास रखता है. यही एक मार्ग है, जिसपर चलकर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है.

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।