उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में थाना कोतवाली की पुलिस ने गांव अभिया खुर्द के निवासी दलित समाज के बाबूलाल कोरी को महज इसलिए गिरफ्तार कर हवालात में डाल दिया, क्योंकि उन्होंने अपनी पोती की शादी के कार्ड में बाबासाहेब की उन 22 प्रतिज्ञाओं को प्रिंट करवा दिया था, जिसे सन् 1956 में बाबासाहेब ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के बाद अपने अनुयायियों को बौद्ध धर्म की दीक्षा देते हुए दिलवाई थी।
शादी का यह कार्ड स्थानीय लोगों के बीच भी बांटा गया, जिस पर स्थानीय हिंदुओं ने आपत्ति जताई और इसकी शिकायत जिले के स्थानीय कोतवाली देहात, दोमुंहा थाने में कर दी गई। और गजब यह हुआ कि स्थानीय थाना प्रभारी देवेन्द्र सिंह ने बिना यह देखे कि यह मामला कानून तोड़ने का है या नहीं, करीब 70 साल के बाबूलाल को पोती कि विदाई के तीसरे दिन ही गिरफ्तार कर लिया। शादी 20 मई को थी, 21 मई को पोती की डोली उठी और उन्हें 24 मई को गिरफ्तार कर लिया गया, जहां उन्हें 28 मई तक हवालात में रखा गया।
इस मामले को लेकर दलित दस्तक ने कोतवाली देहात के देवेन्द्र सिंह से बात की जिनका कहना था कि स्थानीय लोगों ने शिकायत की थी। शादी के कार्ड में 22 प्रतिज्ञाओं के साथ कुछ ऐसी बातें भी छपवाई गई थी, जो 22 प्रतिज्ञाओं में नहीं थी। लेकिन जब आप शादी के कार्ड को देखने पर साफ पता चलता है कि उस कार्ड पर ऐसा कुछ नहीं है जो 22 प्रतिज्ञाओं से अलग हो। यानी कि पुलिस प्रशासन यहां भी गलतबयानी कर रहा है।
हालांकि भले ही बाबूलाल की रिहाई हो गई हो लेकिन जिस तरह असंवैधानिक तरीके से बाबूलाल की गिरफ्तारी हुई उसने यूपी पुलिस की दलित समाज के व्यक्ति के साथ की गई ज्यादती को ही सामने ला दिया है। सवाल यह भी है कि क्या सुल्तानपुर की पुलिस और यूपी शासन भारतीय संविधान से ऊपर है? और बाबा साहेब द्वारा दी गई प्रतिज्ञा को दोहराना और उसे शादी के कार्ड पर प्रिंट करना आखिर गैरकानूनी कैसे है? क्या यदि आज बाबासाहेब होते तो योगी सरकार उन्हें भी 22 प्रतिज्ञाओं के लिए जेल भेज देती? अगर नहीं, तो फिर बाबू लाल को जेल भेजना कितना सही था। सुल्तानपुर की पुलिस को इसका जवाब देना होगा।

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