दलितों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं देश के अनेक हिस्सों में रोज-ब-रोज घटित हो रही हैं। अभी हाल ही राजस्थान के पाली में दलित युवक जितेंद्र मेघवाल की हत्या केवल इस वजह से कर दी गयी कि सामंतों को उसका पहनना-ओढ़ना और मुंछ से ऐतराज था। अब एक दूसरी घटना मध्य प्रदेश के सिहोरा से आयी है, जिसमें बीते 17 मार्च की रात को होलिका दहन की आग में एक दलित व्यक्ति को झोंक दिया गया। उसका कसूर केवल इतना ही था कि जब वह होलिका दहन की आग में गेहूं की बालियां सेंक रहा था, तब वहां राजपूत दंपत्ति खड़ी थी। इस घटना में पीड़ित बरसाती अहिरवार, जिनकी उम्र करीब 45 साल बतायी जा रही है, साठ फीसदी से अधिक जल गया।
जितेंद्र मेघवाल की निर्मम हत्या के बाद बरसाती अहिरवार को मार डालने की कोशिश की इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि दलित कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। फिर चाहे कहीं भाजपा की सरकार हो या फिर कांग्रेस की। वहीं इस घटना देश भर के बुद्धिजीवियों को उद्वेलित कर दिया है।
प्रसिद्ध बहुजन लेखक चंद्रभूषण सिंह यादव ने इस घटना के आलोक में फेसबुक पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा है– “इन घटनाओं पर जो नित्य जाति के नाते देश भर में घटित हो रही हैं कोई कश्मीर फाइल बनेगी,कोई सिम्पैथी इन पर भी कथित बुद्धिजीवियों की होगी तो जबाब मिलेगा नहीं क्योकि इनमें हिन्दू-मुसलमान का मसाला व मसला नहीं है।यह हिन्दू-हिन्दू का मामला है जिस पर आंसू बहाने से सत्ता आएगी नहीं बल्कि चली जायेगी इसलिए कश्मीर फाइल चाहिए,अनुसूचित फाइल नहीं।”
वे आगे लिखते हैं कि “सागर के सिहोरा क्षेत्र के फुटेरा गांव में होलिका दहन के समय बरसाती अहिरवार 45 वर्ष गेहूं की बालियां भून रहे थे कि पास खड़े राजे राजपूत ने इस पर आपत्ति की कि वह उसके बराबरी में कैसे खड़ा हो गया है?बात बढ़ने पर राजे राजपूत ने बरसाती अहिरवार को होलिका की आग में धकेल दिया जिससे वह 60 प्रतिशत तक जल गया।”
इस तरह की अमानवीयता पर चंद्रभूषण सिंह यादव कहते हैं कि “अजीब नशा है जाति का जिसके जागृत होने पर प्रतीकात्मक रुप में जलाई जा रही होलिका में वास्तविक रुप में एक अनुसूचित बरसाती अहिरवार को जला दिया जाता है।यह जाति और इस जाति के पोषकों और समाज के शोषकों को इस जड़ व्यवस्था से कोई परहेज नहीं हैं,उन्हें परहेज गैर हिंदुओ से है और वे गैर हिंदुओ से लड़ने हेतु सबको हिन्दू बना देते हैं लेकिन ज्यों ही गैर हिन्दू से संघर्ष खत्म होता है वे अपने असल रूप में आ देश के बहुजन जमातों पर जातिगत कहर ढाने लगते हैं क्योकि यहां धर्म नहीं जाति बलवती है।”

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