भाटला। 30 July भाटला गांव में हम 3 साथी अमन, अनवर और मै भाटला में हुए दलित उत्पीड़न और उसके बाद सवर्णों द्वारा लगाया गया सामाजिक प्रतिबंध के मौजूदा हालात जानने के लिए एक टीम के रूप में गए. वहां पर कुछ विश्वसनीय साथियों से हमने मुलाकात की और मौजूदा हालात की जानकारी ली. मौजूदा हालात बहुत ही अमानवीय बने हुए है.
भाटला गांव में पिछले महीने नलकूप से पानी भरने को लेकर चमार जाति के युवक और ब्राह्मण जाति के युवक के झगड़े ने बड़ा रूप ले लिया. जिसमें चमार जाति के लड़कों को ब्राह्मण जाति के लड़कों ने इकठ्ठा होकर मारपीट की व जातिसूचक गालियां दी. उसके बाद मारपीट के आरोपियों पर SC/ST एक्ट में मुकदमा दर्ज हुआ. गांव के सवर्णों ने दलितो पर समझौता करने का दबाव बनाया जब दलितो ने समझौता नहीं किया तो जाटों और ब्राह्मणों ने दलित जातियों पर सामाजिक प्रतिबंध लगा दिया था.
पूरे गांव में सामाजिक प्रतिबंध की मुनादी करवाई गई. जिसके बाद दलित समाज ने एडवोकेट रजत कल्सन के नेतृत्व में एकजुटता दिखाते हुए हांसी में प्रदर्शन किया और अनिश्चितकालीन धरना देना शुरू किया. धरने पर लोगों की संख्या हर दिन बढ़ती ही गई. ये धरना एडवोकेट रजत कल्सन के नेतृत्व में चल रहा था. लेकिन कुछेक छद्म दलित नेताओं ने अहम के कारण व कुछ नेताओं द्वारा सिर्फ नेतागिरी चमकाने के चक्कर में धरने पर शुरू दिन से ही विवाद होने लग गया था. कुछ दलित नेता इस धरने को हाईजैक करने की फ़िराक में रहे इसके लिए उन्होंने बहुत गड़बड़ भी की और प्रयास भी किये. इस आपसी खींचतान के चक्कर में प्रशासन ने भी बहुत फायदा उठाया. प्रशासन ने दलितों के पक्ष में कार्रवाई का आश्वसन देकर धरने को खत्म करवा दिया.
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आज हमारी टीम ने भाटला गांव का दौरा किया. टीम ने दलित बिरादरी के विश्वनीय साथियों से मुलाकात की और गांव के बारे में जानकारी ली. प्रशासन जो दावा कर रहा है कि हमने सामाजिक प्रतिबंध को खत्म करवा दिया है. लेकिन हालात इसके एकदम विपरीत है. आज भी सामाजिक प्रतिबंध जारी है. जाटो और ब्राह्मणों ने दलितो में फूट डालने के लिए अब सिर्फ चमार जाति पर प्रतिबंध जारी रखा हुआ है. बाकी की दलित जातियों से सामाजिक प्रतिबंध खत्म कर दिया गया है. क्योंकि सवर्ण जातियों को अपने खेत में मजदूर भी चाहिए है. मजदूर सिर्फ दलित ही है. इस चाल में सवर्ण कामयाब भी हो गए है. दलितों की एकता टूट गयी है. इसका एक कारण ये भी है कि 8 दिन जब धरना चला तो भाटला गांव की सभी दलित जातियों ने धरने में मजबूती से भागीदारी की थी. लेकिन छद्म दलित नेताओ ने पूरे धरने को सिर्फ चमार जाति से और बसपा का प्लेटफार्म बना दिया. इस कारण भी दूसरी दलित जातियां नाराज थी. जिसका फायदा सवर्णों को मिला.
आज भाटला में चमार जाति पर सामाजिक प्रतिबंध जारी है. न कोई दुकानदार सामान दे रहा है, न कोई मजदूरी पर लेकर जा रहा है, खेतों में घुसने पर रोक अब भी जारी है, न दूध दे रहे है. न चमार बिरादरी के ऑटो में कोई सवर्ण सवारी बैठ रही है. हालात यहां तक है कि दलित आंदोलन की अगुवाई करने वाले एक साथी के पिताजी ने भेड़ रखे हुए थे. अब इस सामाजिक प्रतिबंध के कारण वो भेड़ कहां चराए. इसलिए उन्होंने अपनी सारी भेड़ आधी कीमत पर बेचनी पड़ी.
प्रशासन ने भी जो मांगे मानने का आश्वसन दिया था वो अभी तक पूरा नही किया गया है. पूरे गांव में अफवाहों का दौर जारी है. कुछ अज्ञात सूचनाओं से ये भी खबर आ रही है कि सवर्ण जाति के नौजवान दलित आंदोलन की अगुवाई करने वाले नौजवानों पर हमला कर सकते है. भाटला में आज जो माहौल बना हुआ है वो बहुत ही अमानवीय है. आज के समय भाटला के दलितों को आप सभी प्रगतिशील, बुद्विजीवियों, कलाकारों, क्रांतिकारी साथियों के साथ की मजबूती से जरूरत हैं. आइये मिलकर भाटला के दलितों का साथ दें.
-उदय चे की रिपोर्ट
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