पीलीभीत, यूपी। भारत में सिस्टम में बैठे हुए तमाम अधिकारी इतने घटिया और अमानवीय हैं कि उन्हें सजा के तौर पर नौकरी से निकाल कर सालों जेल में यातना दी जानी चाहिए। मामला पीलीभीत का है जहां दलित समाज की एक 14 वर्षीय लड़की का रेप कर दिया गया। पीड़ित बच्ची के पिता आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज करने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन पुलिस वाले समझौता करवाना चाहते थे, जिससे तंग आकर और बेटी को न्याय न दिलाने की कसक के साथ पिता ने 17 मई को अपनी जान दे दी।
घटना 9 मई की है और मामला उत्तम प्रदेश और राम राज्य वाले उत्तर प्रदेश का है। पीलीभीत जिले के अमरिया थाना क्षेत्र के एक गांव में तीन लड़कों ने दलित समाज की 14 साल की एक लड़की को खेत से जबरन उठा लिया। फिर उसे ले जाकर अपने साथी को सौंप दिया, जिसने उसके साथ रेप किया। जब मामला सामने आया और पीड़िता ने जब पूरी बात पुलिस और घरवालों को बताई तो मामला थाने पहुंचा। पीड़ित लड़की के पिता चारों दोषियों के खिलाफ केस दर्ज करवाने की मांग कर रहे थे। लेकिन अमरिया थाना क्षेत्र की पुलिस मामला दर्ज करने की बजाय मामले में समझौता करवाने पर अड़ी रही। इससे परेशान होकर पीड़ित लड़की के पिता ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी।
दैनिक भास्कर की वेबसाइट पर 23 मई को प्रकाशित खबर में कहा गया है कि पिता के आत्महत्या के बाद राहुल, होति, शेखर और मनोज नाम के युवक के खिलाफ मामला दर्ज हो गया है, लेकिन मुख्य आरोपी बताए जा रहे हरेन्द्र का नाम शामिल नहीं किया गया है। पीड़ित परिवार का कहना है कि आरोपियों की प्रशासन में पहुंच है। वो धमका रहे थे कि समझौता कर लो नहीं तो मार दिये जाओगे। पीड़ित के पिता ने थक हार कर मौत का रास्ता चुन लिया। हालांकि मामला के तूल पकड़ने के बाद 18 मई को सीओ ने अमरिया थाने के एसओ मुकेश शुक्ला को सस्पेंड कर दिया है,लेकिन इससे मामला खत्म नहीं हो जाता।
पीड़ित लड़की के भाई के बयान को समझना होगा और भारत में दलितों को इंसाफ पाना कितना मुश्किल है, यह भी समझना होगा। पीड़िता के भाई का कहना है कि जब हम और हमारे पिताजी थाने गए तो हम चाहते थे कि इस मामले में कार्रवाई हो, लेकिन पुलिस ने हमारी एक न सुनी। अमरिया थाने के एसओ मुकेश शुक्ला ने हम लोगों को गाली देकर भगा दिया। उन्होंने कहा कि भाग जाओ वरना जेल में डाल दूंगा। जिसके बाद अपनी बेटी के बलात्कार के बाद शर्म से दबे लड़की के पिता ने अपनी जान दे दी। ऐसे मामलों को अक्सर समय बीतने के साथ दबा दिया जाता है।
लेकिन इस मामले में मानवाधिकार आयोग, अनुसूचित जाति आयोग, महिला आयोग और यूपी के मुख्यमंत्री क्या कार्रवाई करते हैं और पीड़ित परिवार को क्या न्याय दिलाते हैं, यह देखना होगा। सवाल उठता है कि अगर पीड़ित बच्ची किसी राजपूत और ब्राह्मण की बेटी होती तो क्या एसओ मुकेश शुक्ला पीड़िता के पिता और भाई को गाली देकर भगा पाता, क्या वह समझौता करने का दबाव बनाता, क्या वह कहता कि भाग जाओ नहीं तो जेल में डाल दूंगा।
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