पुणे के येरवडा की मूलनिवासी दलित समाज की शैलजा पाइक को 7 करोड़ रुपये के ‘मैकआर्थर फ़ैलो प्रोग्राम’ की ‘जीनियस ग्रांट’ फ़ैलोशिप के लिए चुना गया है। यह पहली बार है जब दलित समाज के किसी व्यक्ति को इतनी बड़ी धनराशि की फैलोशिप मिली है। शैलजा एक आधुनिक इतिहासकार हैं जो जाति, लिंग और सेक्सुअलिटी के नजरिये से दलित महिलाओं के जीवन का अध्ययन करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने अपने लेखन के ज़रिए बताया है कि लिंग और सेक्सुअलिटी ने दलित महिलाओं के आत्मसम्मान और उनके व्यक्तित्व के शोषण को कैसे प्रभावित किया है।
शैलजा की कहानी गरीबी से निकलकर अमेरिका में प्रोफेसर बनने तक के शानदार सफर की कहानी है। उनका जीवन पुणे के येरवडा की झुग्गी-झोपड़ी में बहुत अभाव और चुनौतियों के बीच बीता। लेकिन आगे बढ़ने और सफल होने की जिद्द और सपने ने उनके पैर न तो रुकने दिये और न ही थकने दिये। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो शाम को 7:30 बजे सो जाती थी और आधी रात को 2-3 बजे उठकर सुबह के छह सात बजे तक पढ़ती थीं, फिर स्कूल जाती थी।”
पढ़ाई के इस संघर्ष में उन्हें माता-पिता का भी बखूबी साथ मिला, जिन्होंने तमाम अभाव के बावजूद उन्हें अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाया। शैलजा ने एमए की पढ़ाई 1994-96 के दौरान सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से पूरी की। एम.फिल के लिए वह साल 2000 में इंग्लैंड चली गईं। एम.फिल के लिए शैलजा को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) से फ़ैलोशिप मिली थी।
Eklavya India Foundation’s Founder, Raju Kendre Wins the Prestigious ‘International Alum of the Year’ Awardhttps://t.co/dKICVy7G4u pic.twitter.com/uAOYWF83bE
— Dalit Dastak | दलित दस्तक (@DalitDastak) October 2, 2024
शैलजा पाइक का सफर यहीं नहीं रूका, उन्होंने 2007 में इंग्लैंड के वारविक विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की। उन्होंने यूनियन कॉलेज में इतिहास के विज़िटिंग सहायक प्रोफेसर और येल विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई इतिहास के पोस्ट डॉक्टरल एसोसिएट और सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है। शैलजा साल 2010 से ‘सिनसिनाटी विश्वविद्यालय’ से जुड़ गई। यहां वह ‘महिला, लिंग और सेक्सुअलिटी अध्ययन और एशियाई अध्ययन’ की शोध प्रोफेसर हैं।
दरअसल शैलजा पाइक ने अपने शोध अध्ययन के माध्यम से दलित महिलाओं के जीवन को गहराई से प्रस्तुत किया है, जिसके लिए आज उन्हें दुनिया के तमाम हिस्सों में जाना जाता है।
उनका यही काम मैकआर्थर फाउंडेशन की ओर से उन्हें मैकआर्थर फेलोशिप मिलने का आधार बना। जॉन डी. और कैथरीन टी. मैकआर्थर फाउंडेशन की ओर से ‘मैकआर्थर फ़ैलो प्रोग्राम’ की ‘जीनियस ग्रांट’ फ़ैलोशिप अमेरिका में अलग-अलग क्षेत्रों के 20 से 30 शोधकर्ताओं और विद्वानों को हर साल दी जाती है। इस साल यह फैलोशिप 22 लोगों को मिली है। इसमें लेखक, कलाकार, समाजशास्त्री, शिक्षक, मीडियाकर्मी, आईटी, उद्योग, अनुसंधान जैसे विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोग शामिल हैं। चयनित उम्मीदवारों को पांच साल के लिए कई चरणों में 8 लाख डॉलर यानी तकरीबन 7 करोड़ रुपये की राशि मिलती है।
शैलजा पाइक के लेखन की बात करें तो उनके संपूर्ण लेखन के केंद्र में दलित और दलित महिलाएं हैं। उन्होंने भारतीय भाषाओं के साहित्य के अलावा समकालीन दलित महिलाओं के इंटरव्यू के दौरान मिले अनुभवों को जोड़कर वर्तमान संदर्भ में एक नया दृष्टिकोण तैयार किया है। ‘आधुनिक भारत में दलित महिला शिक्षा: दोहरा भेदभाव’ (2014) और ‘जाति की अश्लीलता: दलित, सेक्सुअलिटी और आधुनिक भारत में मानवता’ नाम से उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
शैलजा पाइक को इससे पहले फोर्ड फाउंडेशन की फेलोशिप भी मिल चुकी है। ‘रचनात्मकता’ मैकआर्थर फ़ैलोशिप का एक मूलभूत मानदंड है। इस फ़ैलोशिप का उद्देश्य नवीन विचारों वाले उभरते इनोवेटर्स के काम में निवेश करना, उसे प्रोत्साहित करना और उसका समर्थन करना है। खास बात यह है कि इस फ़ैलोशिप के लिए कोई आवेदन या साक्षात्कार प्रक्रिया नहीं है, बल्कि फ़ैलोशिप के लिए विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा नामित विद्वान उम्मीदवारों की स्क्रूटनी के बाद नामों को फाइनल किया जाता है। शैलजा पाइक को मिली यह उपलब्धि पूरे भारत के लिए गर्व की बात है। साथ ही अंबेडकरवादी समाज को आत्मविश्वास से भरने वाला है।
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।