सरकार और प्रशासन में जातिवाद किस कदर हावी है, इसका सबूत मध्य प्रदेश की एक हालिया घटना है. मध्य प्रदेश में एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी को उसके पद की गरिमा को नजरअंदाज करते हुए स्वीपर जैसा काम करने को दे दिया गया. इससे आहत आईएएस अधिकारी ने न्याय की मांग को लेकर आवाज उठाई है. अधिकारी का नाम रमेश थेटे है.
मध्य प्रदेश के चर्चित आईएएस अफसर रमेश थेटे ने अब अपर मुख्य सचिव आरएस जुलानिया पर आरोप लगाया है कि जुलानिया ने उन्हें जातिगत कारणों से सचिव के अधिकार नहीं दिए हैं. उन्होंने टॉयलेट बनवाने और साफ करने का काम देकर मुझे स्वीपर बना दिया है. रमेश थेटे ने पद की गरिमा को बचाने के लिए सरकार से भी गुहार लगाई है. उनकी मांग है कि उन्हें सचिव का अधिकार दिया जाए. हालांकि सरकार भी थेटे की मदद को आगे नहीं आ रही है. आलम यह है कि विभागीय मंत्री गोपाल भार्गव मामले से अंजान बने हुए हैं. उनका कहना है कि दोनों अफसरों के बीच किस बात को लेकर विवाद है इसकी मुझे जानकारी नहीं है. कार्य विभाजन में थेटे को कौन से काम देने हैं, यह जुलानिया ने मुझे नोटशीट पर लिखकर अनुशंसा की थी. इसे मैंने ओके कर दिया था. जुलानिया और थेटे दोनों आईएएस अफसर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में पदस्थ हैं.
इसी बीच दोनों अधिकारियों के बीच बातचीत का अंश भी सामने आया है, जिससे स्थिति को समझा जा सकता है.
थेटे- आप मुझे पूर्व में रहे सचिवों की तरह काम क्यों नहीं दे रहे हैं?
जुलानिया- मैंने जो किया, वह सही है. इससे ज्यादा नहीं मिलेगा.
थेटे- सर, मैं तो समता के सिद्धांत की बात कर रहा हूं.
जुलानिया- इस तरह बात मत करो.
थेटे- यह तो जातिवाद है.
जुलानिया- मुझे बहस नहीं करनी है. इसे मुद्दा मत बनाइए.
थेटे- मुद्दा तो आप बना रहे हैं. मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं?
जुलानिया- आपको जो करना है करो. ऊपर बात कर लो.
थेटे- ऊपर बात करने के लिए मैं आपसे कोई ऑर्डर नहीं लूंगा.
जुलानिया- इस तरह बात करोगे तो दोबारा मेरे पास मत आना.
थेटे- मैं अब आपके पास नहीं आऊंगा.
इस मामले में अब तक जुलानिया की कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है.
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