कोलकात्ता। कोलकात्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के सात वरिष्ठ जजों को एससी-एसटी एक्ट के तहत अपने अपमान का दोषी करार दिया है. इसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं. यह कार्रवाई उन्होंने अपने उत्पीड़न का आरोप लगाकर स्वत: संज्ञान लेते हुए की है. जस्टिस कर्णन ने सजा सुनाने की तारीख 28 अप्रैल मुकर्रर करते हुए सभी सात जजों को उस दिन हाजिर होने का आदेश सुनाया है. देश के न्यायिक इतिहास में यह पहला मौका है जब हाईकोर्ट के किसी जज ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समेत सात जजों को ही दोषी करार दे दिया है.
जस्टिस कर्णन ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर, दीपक मिश्रा, जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, मदन बी लोकुर, पिनाकी चंद्र घोष और कुरियन जोसेफ के खिलाफ 13 अप्रैल को एक आदेश पारित किया है. इसमें उन्होंने कहा कि इन सभी ने मिलकर खुली अदालत में उनका अपमान किया है. इसलिए इन सभी को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून के तहत दोषी करार दिया जाता है. उन्होंने इन सातों जजों को देश से बाहर न जाने का आदेश सुनाते हुए सबको 15 दिनों के भीतर अपने पासपोर्ट दिल्ली पुलिस के पास जमा कराने का भी फैसला सुनाया. इतना ही नहीं, जस्टिस कर्णन ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के ये सातों जज उनके फैसले के खिलाफ देश की किसी भी अदालत में अपील नहीं कर सकते. हालांकि उन्होंने इन जजों को इन फैसलों को संसद में चुनौती देने की छूट दे दी है.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के खिलाफ न्यायपालिका की अवमानना करने का मामला शुरू करने का फैसला लेते हुए उनके खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था. शीर्ष अदालत ने इसके लिए सात वरिष्ठ जजों की एक खंडपीठ गठित की है. जस्टिस कर्णन ने इस कदम को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट पर आरोप लगाया कि दलित होने के चलते वरिष्ठ जजों द्वारा उनका उत्पीड़न किया जा रहा है. हालांकि जस्टिस कर्णन बीते 31 मार्च को इस खंडपीठ के सामने पेश हुए थे.
गौरतलब है कि यह पूरा मामला तब शुरू हुआ जब जस्टिस कर्णन ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर आरोप लगाया कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कई जज भ्रष्टाचार में लिप्त हैं इसलिए उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच कराई जाए. उन्होंने कोर्ट के बजाय संसद से ऐसी जांच करने की मांग सरकार के समक्ष रखी थी. सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के इन आरोपों की जांच कराने की बजाय उनके खिलाफ अवमानना का मामला चलाने का फैसला लिया. केंद्र सरकार की ओर से अटॉनी जनरल ने भी उनके खिलाफ मामला चलाने की वकालत की थी.
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