दलित आदिवासियों को जीते जी तो न्याय नहीं मिलता, मरने के बाद भी उन्हें इंसाफ मयस्सर नहीं है. दलितों की लाशें कब तक श्मसान पहुंचने का इंतज़ार करेगी? घटना राजस्थान के जालोर जिले के भीनमाल तहसील के जूनी बाली गांव की है. शनिवार 2 मार्च को इस समाज के एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके अंतिम संस्कार के लिए इंतजार करना पड़ा. लाश कई घंटे तक सड़क पर रखी रही लेकिन जातिवादी गुंडों ने उसे श्मशान तक जाने का रास्ता नहीं दिया. इस मामले में प्रशासन से गुहार लगाने के बावजूद भी वंचितों को कोई मदद नहीं मिली, जिसके बाद थक कर परिवार वालों और संबंधियों को दूसरे रास्ते से श्मशान को लेकर जाना पड़ा.
जिंदा दलितों से नफरत तो समझ आती है,पर मरे हुए दलित आदिवासियों की लाशों से भी उतनी ही घृणा ? लानत है इस समाज पर? दरअसल, 2 मार्च को 5 बजे के करीब जूनी बाली के दलाराम भील की मौत हो गई. जिसके बाद उसके अंतिम संस्कार की तैयारी हुई. लेकिन जैसे ही घर और समाज वाले उसे लेकर श्मशान की ओर चलें, उनका रास्ता रोक दिया गया. इन रोते हुए गरीबों की आवाज़ कहीं नहीं पहुंची, न शासन तक, न प्रशासन तक, जबकि मीडिया, पुलिस तथा सामान्य प्रशासन सब वहां मौजूद था.
पीड़ित पक्ष ने बताया कि जूनी बाली के चौधरी परिवार द्वारा अतिक्रमण करके सौ साल से ज्यादा पुराने श्मशान भूमि के रास्ते को रोक दिया गया और प्रशासन उसके सामने लाचार है. अब प्रशासन लाचार है कि लचर या फिर पक्षपाती, यह तो सत्ता प्रतिष्ठान पर काबिज लोग तय करें. लेकिन खुले आम दलितों के मूलभूत मानवीय अधिकार का हनन किया जा रहा है,पर सुनने वाला कोई नहीं है.
इस बारे में पीड़ित पक्ष के मालाराम राणा ने बताया कि हमारी 2 हेक्टेयर जमीन है, जिसका इस्तेमाल हम श्मशान भूमि के लिए करते हैं. वहीं दूसरे पक्ष की जमीन है, जिस पर वो लोग खेती करते हैं. श्मशान तक जाने के लिए हम जिस रास्ते का इस्तेमाल करते हैं, उसको रोक दिया गया है और दीवार से घेर दिया गया है. हमने प्रशासन से गुहार लगाई है, लेकिन अभी तक सिर्फ आश्वासन मिला है. एडीएम साहब ने मंगलवार को रास्ता क्लियर कराने का आश्वासन दिया है, देखिए उस दिन क्या होता है. इस पूरे घटनाक्रम से सवाल उठता है कि आखिर दलित-आदिवासी समाज के लोगों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में भी प्रशासन क्यों नाकाम हो जाता है और सत्ता जातिवादियों के आगे क्यों झुक जाती है?
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