दिल्ली के प्रगति मैदान में इन दिनों किताबों का मेला लगा है। विचारों का मेला लगा है। यह मेला 5 मार्च तक चलेगा। विश्व पुस्तक मेले का यह 50वां साल है। इस लिहाज से यह महत्पूर्ण है। भांति-भांति के प्रकाशक, भांति-भांति की पुस्तकों के साथ मौजूद हैं। नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा आयोजित इस विश्व पुस्तक मेले में कहा जा रहा है कि यहां तकरीबन 2000 प्रकाशक स्टॉल लगे हैं। कोविड के कारण यह पुस्तक मेला तीन सालों बाद आयोजित हो रहा है। पुस्तक मेले में हर दिन कोई न कोई ख्याति प्राप्त लेखक पहुंचता है और उनको सुनने जुटती है भारी भीड़।
पुस्तक मेले में हर विचारधारा की पुस्तकें और लेखकों को आसानी से टहलते देखा जा सकता है। अंबेडकरी-फुले आंदोलन के प्रकाशकों की बात करें तो इस साल बहुजन वैचारिकी वाले छह बुक स्टॉल लगे हुए हैं। उसमें दलित दस्तक के स्टॉल के साथ-साथ जयपुर के प्रकाशक एम.एल. परिहार की बुद्धम पब्लिकेशन, फारवर्ड प्रेस सहित जाने माने प्रकाशक सम्यक प्रकाशन और गौतम बुक सेंटर का स्टॉल लगा हुआ है। ये सभी स्टॉल हाल नंबर 2 में आस-पास ही मौजूद हैं। हॉल नंबर दो में दलित दस्तक का स्टॉल नंबर- 378 है। इसके आस-पास ही बाकी सभी प्रकाशकों के स्टॉल भी मौजूद हैं। इसके अलावा आदिवासी साहित्य के साथ इस बार वंदना थेटे भी अपने प्रकाशन के साथ मौजूद हैं।
खास बात यह भी है कि बीते दिनों में दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर तमाम बड़े-बड़े प्रकाशक भी पुस्तकें प्रकाशित करने लगे हैं। चाहे राजकमल हो, वाणी प्रकाशन हो या फिर पेंग्विन और अन्य प्रकाशन संस्थान, प्रकाशकों में बाबासाहेब के साहित्य को प्रकाशित करने की होड़ मची है। इस बारे में दलित दस्तक के संपादक अशोक दास का कहना है कि भले ही तमाम प्रकाशक दलित साहित्य प्रकाशित कर रहे हों, कोई भी पुस्तक खरीदने से पहले पाठकों को यह भी देखना होगा कि उसको लिखा किसने है। क्योंकि लिखने वाला अगर अंबेडकरी विचारधारा की बजाय किसी अन्य विचारधारा से प्रेरित है तो फिर वह दलित साहित्य के साथ न्याय नहीं कर पाएगा, बल्कि वह पाठको को और भ्रम में ही डालेगा।
फिलहाल पुस्तक मेला अपने अंतिम चरण में है। साहित्य प्रेमियों का आना लगातार जारी है। खास बात यह भी है कि इस मेले में स्कूली छात्र भी खूब पहुंच रहे हैं। तो तमाम पुस्तक प्रेमी अपने बच्चों के साथ पुस्तक मेले में शिरकत कर रहे हैं। इस उम्मीद के साथ कि न्यू मीडिया और ट्विटर और इंस्टा के इस दौर में उनके बच्चे किताबों से भी जुड़े रहें और बेहतर इंसान बन सकें। इस दौरान पाठकों में अपने प्रिय लेखकों के साथ तस्वीरें लेने की होड़ भी देखी जा रही है।