
हमारा समाज जातिवाद की सड़ी-गली प्रथाओं, कुरीतियों और अपनी कुंठित सोच के कारण समाजिक बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। इसी समाज की देन है कि आज भी दलितों के साथ होने वाली हिंसाए और उनके साथ होने वाले भेदभाव को लोग गंभीर रूप से नहीं लेते। हम ज्यादा पुरानी बात नहीं करेंगे, बल्कि हम जिस घटना की तरफ आपका ध्यान खींचना चाहते हैं वो कुछ दिन पहले की ही है।
ये शर्मनाक घटना उत्तराखंड के चंपावत की है जहां एक दलित को जातिगत भेदभाव के चलते तथाकथित सवर्ण जाति के लोगों की हिंसा का शिकार होना पड़ा।
द वायर के अनुसार, एक शादी समारोह के दौरान सवर्ण जाति के लोगों के बीच बैठकर, खाना खाने को लेकर 45 वर्षीय रमेश राम को बुरी तरह पीटा गया, जिसके चलते बाद में अस्पताल में उनकी मौत हो गई। मृतक, रमेश राम देवीधुरा के पास केदारथान में टेलर की दुकान चलाते थे। बीते 28 नवंबर को रमेश, दुकान मालिक के यहां शादी समारोह में गए थे, जिसके बाद वो देर शाम तक घर वापस नहीं लौटे।
उनकी पत्नी तुलसी देवी को अगले दिन फोन पर जानकारी मिली कि 108 आपातकालीन सेवा ने उनके पति को लोहाघाट अस्पताल में बेहोशी की हालत में भर्ती कराया है। जिसके बाद, हालत बिगड़ती देख उनके पति को लोहाघाट अस्पताल से एसटीएच हल्द्वानी रेफर कर दिया गया था लेकिन बीते मंगलवार को रमेश राम ने सुशीला तिवारी अस्पताल में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया।

अपने पति की मौत से हैरान-परेशान तुलसी देवी ने पाटी थाने में सवर्ण जाति के अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ तहरीर सौंप दी, जिसमें उन्होंने कहा है कि सवर्ण जाति के व्यक्ति ने उसके पति को खाना खाने के दौरान बेदर्दी से मारा-पिटा गया, जिससे उनकी मौत हुई है। तुलसी देवी ने ये भी बताया कि मरने से पहले उनके पति ने उन्हें ये बात बताई थी।
द वायर के अनुसार, इस मामले की जाँच कर रहे एसपी देवेंद्र पींचा ने बताया कि मृतक रमेश की पत्नी की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ आइपीसी की धारा 302 तथा एससी, एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है।
‘देवभूमि’ कहा जाने वाला उत्तराखंड, यहाँ फैले जातिगत भेदभाव और जाति-आधारित हिंसा के कारण अपनी गरिमा खोता जा रहा है। यहां की जातीय आबादी पर नजर डाले तो यहां दलित लगभग 19% हैं, जबकि राजपूत और ब्राह्मण राज्य की आबादी का 60% हिस्सा है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, जाति-आधारित हिंसा की घटनाएं 2018 में 58 से बढ़कर 2019 में 84 हो गईं, यानी एक वर्ष में इन घटनाओं में 45% की वृद्धि हुई। दूसरे शब्दों में कहे तो यह देश में पांचवीं सबसे अधिक वृद्धि है और 7% की वृद्धि के राष्ट्रीय औसत से काफी ऊपर है।
उत्तराखंड में ग्राम स्तर पर ‘सवर्ण जाति’ के शादी विवाह समारोहों में जातिगत भेदभाव देखा जाना नई बात नहीं है। इन शादियों में अगर दलितों को आमंत्रित किया जाता तो उन्हें अलग से खाना खिलाने का रिवाज बना हुआ है। पिछले कुछ सालों में ऐसे कई उदहारण सामने आए हैं जहां किसी सवर्ण जाति की नजरों के सामने, अगर किसी दलित को खाना खाते हुए देखा गया है तो गुस्से में आए सवर्ण ने दलित को सबक सिखाने के लिए हिंसा का सहारा लिया है।

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