गुस्सा सबको आता है। गुस्सा हमें भी आता है, जब कोई बाबासाहेब की प्रतिमाएं तोड़ देता है। गुस्सा हमें भी आता है जब कोई जाति के आधार पर हमारे मान-सम्मान को ठेस पहुंचाता है। हम आए दिन किसी न किसी के द्वारा अपमानित होते हैं, तो हमें गुस्सा आता है। गुस्सा इस घटना पर भी आया जिसमें दिल्ली से सटे सिंधु बार्डर पर किसान आंदोलन के बीच शुक्रवार को दलित समाज के एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। तस्वीरों और वीडियो में साफ दिखा कि उस शख्स का हाथ काट दिया गया, उसे बेरहमी से उल्टा लटकाया गया। साफ दिख रहा था कि उसे बेदर्दी से पीटा गया।
जिस व्यक्ति की हत्या कर दी गई है, उसका नाम लखबीर सिंह है जो कि पंजाब के तरन-तारन जिले के चीमा खुर्द गांव का रहने वाला था। मृतक दलित समाज से ताल्लुक रखता है। इस मामले की जिम्मेदारी निहंग सिखों ने ली है और निहंग सरबजीत सिंह ने अपना जुर्म कबूल कर लिया है, जिसके बाद उसे शनिवार को गिरफ्तार कर लिया गया, मामला अब कोर्ट में है।
हत्या की जो वजह सामने आई है, उसके मुताबिक निहंग सिखों का कहना है कि लखबीर सिंह सेवादार के रूप में जुड़ा था। हत्या की बात कबूल करने वाले सरबजीत का कहना है कि लखबीर सिंह सुबह 3.30 बजे श्री गुरु ग्रंथ साहिब को चोरी कर भाग रहा था। मैं उसके पीछे भागा और उसका हाथ काट दिया। मुझे हत्या का कोई पछतावा नहीं है।
यानी सिखों की भाषा में कहें तो कुल मिलाकर लखबीर सिंह ने सिखों के पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी की थी। वह पकड़ा गया, और फिर उसे पुलिस बैरिकेट से बांध कर पहले उसकी बेदर्दी से पिटाई की गई, फिर हाथ की कलाई काट दी गई और उसकी जान ले ली गई। इस तरह वह दर्द से तड़प कर मर गया।… लेकिन यहां कुछ सवाल उठते हैं। अगर मृतक ने गुरु ग्रंथ साहब के साथ बेअदबी की थी तो निश्चित तौर पर उसकी निंदा होनी चाहिए। उसे सबक सिखाने के लिए उसके साथ मार-पीट करने की बात भी समझ में आती है। लेकिन सवाल उठता है कि इस अपराध के लिए लखबीर सिंह की हत्या कर देना कितना जायज है?
निहंग सिख के गुस्से को समझा जा सकता है। लेकिन जब सैकड़ों किसान इस किसान आंदोलन की भेंट चढ़ गए, तब इनका गुस्सा क्यों नहीं दिखा? सिख धर्म कहता है कि हर नस्ल, धर्म या लिंग के लोग समान हैं। सिख काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार इन पाँच दोषों से बचने की कोशिश करते हैं, क्योंकि यह उनके जीवन के ईश्वरीय मार्ग में बाधाएँ पैदा करते हैं। निहंग सिख तो सबसे ज्यादा धार्मिक होते हैं, फिर आखिर वह गुरु ग्रंथ साहिब में लिखी बातों को ही क्यों भूल गए? उनका क्रोध काबू में क्यों नहीं रहा?
गुरु ग्रंथ साहिब की इज्जत हम भी करते हैं, क्योंकि उसमें हमारे गुरु रविदास महाराज की बाणी भी है। जब गुरु ग्रंथ साहिब को तैयार करते समय सिख गुरुओं ने सतगुरु रैदास महाराज के साथ भेद नहीं किया, तो आखिर उसे छू लेने भर से लखबीर की हत्या क्यों कर दी गई। लखबीर ने गलत किया, लेकिन क्या उसकी गलती इतनी बड़ी थी कि इतनी बेदर्दी से उसकी जान ले ली जाती?? लखबीर के खून के छीटे दलितों के मन से जल्दी नहीं मिटेंगे।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।