”अपने भाई के सामने मैं गिड़गिड़ाती रही, मगर मेरा भाई रॉड से और दूसरा आदमी चाकू से मेरे पति नागराजू पर लगातार वार करते रहे। मेरे पति को कोई नहीं बचा पाया। हमने प्रेम विवाह किया था।”
यह कहना है अपने पति की हत्या आँखों के सामने होते देखने वालीं अशरिन सुल्ताना का।
अशरिन सुल्ताना के भाई सैय्यद मोबीन अहमद और एक रिश्तेदार मसूद अहमद ने उनके पति दिल्लीपुरम नागराजू को 4 मई की रात को हैदराबाद में बीच सड़क पर मार दिया। इस निर्मम हत्या ने सभी को चौंका दिया। पुलिस के मुताबिक अशरिन का भाई हैदराबाद के बालानगर में फलों का ठेला चलाता है। जबकि नागराजू के माता-पिता विकाराबाद में कुली का काम करते हैं और नागराजू हैदराबाद में मारुती शोरूम में काम करता था।
दरअसल इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम का रंग दिया जा रहा है। लेकिन यहां बात हिन्दू-मुस्लिम की नहीं है। दरअसल सुल्ताना का परिवार अपनी बेटी के दलित युवक से शादी से नाराज था। और दलित समाज के भीतर ही तमाम लोग इस मामले पर चुप्पी साधे सिर्फ इसलिए बैठे हैं क्योंकि इससे उनके #बहुजन_फार्मूले को धक्का लगेगा। माफ करिएगा लेकिन मुस्लिम हो, चाहे पिछड़े… सबने दलितों को रौंदा है। लेकिन हैदराबाद की घटना को हमें अनदेखा नहीं करना चाहिए। आंकड़े उठा कर देखिए। जहां भी दलितों पर अत्याचार हो रहे हैं, ज्यादातर मजबूत पिछड़ी जातियों के लोगों के नाम आ रहे हैं। इसे आखिर क्या समझा जाए। इसे कब तक अनदेखा किया जाए?
फिर दलित समाज के लोग एक जातिवादी ठाकुर एवं ब्राह्मण और एक जातिवादी ओबीसी में क्या फर्क देखें? मुस्लिम समाज को भी इस बारे में अपनी राय बतानी चाहिए। कई लोग इसे सैय्यद और पठान समाज के लोगों द्वारा दलितों पर अत्याचार की बात कह कर इसे ढकने की कोशिश करते हैं। इसे भी मनुवादी जाति व्यवस्था करार देते हैं। अगर ऐसा है तो मुस्लिम समाज डंके की चोट पर माने की उसके भीतर जातिवाद है और वह खुद को हिन्दु जातिवादियों से अलग दिखाने की कोशिश करना बंद करे। सवाल है कि क्या अगर नागराजू दलित न होकर सवर्ण होता तो भी सुल्ताना के घर वाले उसे सरेआम कत्ल करते??
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।