लखनऊ। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी ने जिस दलित-मुस्लिम गठबंधन के भरोसे सत्ता में आने की रणनीति तैयार की थी, वह एकजुट होने लगा है। निकाय चुनाव में और खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह दोनों तबका बसपा के समर्थन में पूरी तरह एकजुट दिखा। यही वजह है कि बसपा अलीगढ़ और मेरठ में मेयर सीट जीतने में कामयाब रही।
बीते दो चुनाव जिसमें 2014 के लोकसभा चुनाव और 2017 का विधानसभा चुनाव शामिल है, दलित भाजपा तो मुस्लिम सपा के पक्ष में दिखे थे। लेकिन दोनों दलों से छले जाने के बाद दलित और मुस्लिम अब बसपा के पक्ष में आ खड़े हुए हैं। निकाय चुनाव में दलितों ने पूरी तरह भाजपा से किनारा कर लिया है। निकाय चुनाव के नतीजों में ज्यादातर सीटों पर बीएसपी दूसरे नंबर पर रही और भाजपा को कड़ी टक्कर दी है। अब बदले हालात में सपा और भाजपा में साफ तौर पर बेचैनी की खबरें आ रही है। 14 मेयर सीटों पर कब्जे के साथ भाजपा भले ही अपनी पीठ थपथपा रही हो, उसे पता है कि जमीन पर उसकी हालात खराब है।
यहां एक पहलू यह भी है कि विधानसभा चुनाव के दौरान बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती दलित-मुस्लिम एकता की रणनीति के साथ काम कर रही थीं। तब तमाम विश्लेषक यह दावा कर रहे थे कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ के साथ बसपा यूपी की सत्ता में आ सकती है। लेकिन चुनाव के नतीजे बिल्कुल उल्टे रहे थे। मायावती ने इसका ठीकरा ईवीएम से हुए चुनाव पर फोड़ा था। निकाय चुनाव के नतीजों ने मायावती द्वारा ईवीएम पर उठाए गए सवाल को औऱ मजबूत किया है।