बिहार के नेताओं को एक बार फिर दलित याद आने लगे हैं. क्योंकि अब इन लोगों को लगने लगा है कि दलितों को अपने साथ किए बगैर 2019 का चुनावी बैतरनी पार कर पाना संभव नहीं है. तभी तो जेडीयू के दो बड़े नेता श्याम रजक और उदय नारायण चौधरी के बागी तेवर अपनाये जाने के बाद. नीतीश सरकार भी आउट सोर्सिंग में आरक्षण नीति लागू कर दलित की सियासत में कूद गई है.
लेकिन जेडीयू के दलित नेता श्याम रजक का इरादा कुछ और ही बयां कर रहा है. उन्होने कहा है कि एक नया मोर्चा बन गया है और इसके लिए बकायदा उन्हे बिहार सहित गुजरात और राजस्थान से भी आमंत्रण मिल रहा है. वैसे बिहार में लोक जन शक्ति पार्टी के अध्यक्ष राम विलास पासवान और हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी भी दलितों के सबसे बड़े नेता होने का दावा करते नहीं थकते है.
इधर आरजेडी के दलित नेता शिवचंद्र राम की माने तो लालू प्रसाद ने ही दलितों के लिए सबसे ज्यादा काम किया है. वैसे कांग्रेस ने भी दलित के नाम पर राजनीति करने का कोई मौका नहीं छोड़ा है. यानि कुल मिलाकर बिहार में दलित सियासत. आने वाले चुनाव में सभी पार्टियों की मुश्किलें बढ़ाने वाली है. अब देखना ये है कि दलितों को खुश करने के लिए सियासी थाल में कौन कौन से वादे परोसे जाएंगे. लेकिन इतना तो तय है कि कोई भी पार्टी दलितों को दरकिनार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगी.

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