अंग्रेज़ों को जिसे सज़ा देनी होती थी, उसको वे काला पानी भेज देते थे. वर्धा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति श्री विभूति नारायण राय को जिससे दुश्मनी निकालनी होती थी, उसको वे यौन-उत्पीड़न के फ़र्जी केस में फंसा देते थे और वर्तमान कुलपति साहब को जिसे सबक सिखाना होता है, वे उसका ट्रांसफर मनमाने तरीके से कोलकाता केंद्र पर कर देते हैं. एक प्राध्यापक पिछले साल सज़ा के तहत कोलकाता भेजे गए थे, अब मियाद पूरी हो गई तो विश्वविद्यालय ने उनको वापस बुला लिया और मुझे भेजने का फरमान जारी कर दिया. लेकिन कुछ दरबारी टाइप चापलूस प्राध्यापकों के बहकावे में जातिगत दुर्भावना से प्रेरित होकर किए गए इस ट्रांसफर के ख़िलाफ मैंने प्रशासन को पत्र दिया है. अगर इस दुराग्रहपूर्ण अलोकतांत्रिक निर्णय को तत्काल वापस नहीं लिया गया तो विश्वविद्यालय एक बड़े प्रतिरोधी आंदोलन को झेलने के लिए फिर तैयार हो जाए….
फेसबुक पर चेतावनी देता यह पोस्ट है सुनील कुमार सुमन का. सुनील कुमार सुमन वर्धा युनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर है.
विश्वविद्यालय ने सुनील जी को कोलकाता सेंटर पर भेजने का फरमान जारी कर दिया है. यह विश्वविद्यालय का एकाधिकार हो सकता है कि वह अपनेअधीन आने वाले शिक्षक को किसी दूसरे सेंटर पर भेज दे. लेकिन सुमन का मामला थोड़ा अलग है. असल में सुनील साल 2009 में वर्धा पढ़ाने पहुंचे थे और तभी से वो विश्वविद्यालय के प्रशासन को खटकते रहे हैं. वजह शायद यह है कि सुनील कुमार सुमन अम्बेडकरवादी है. वजह यह भी है कि वह वहां के छात्रों को बाबासाहेब के संविधान, समानता के अधिकार और तथागत बुद्ध के मानवतावाद की बात सिखाते हैं. वजह यह भी है कि वह वहां के स्टॉफ और शिक्षकों से नमस्कार की बजाय जय भीम और हूल जोहार कहते हैं. क्योंकि प्रो. सुनील कुमार अंबेडरवादी विचारधारा पर विश्वास करते है और देश भर में होने वाले सेमिनार, सिंपोसियम और वर्कशॉप में अपने विचार देने जाते है.
ध्यान देने की बात यह है कि यह पहला मौका नहीं है जब विश्वविद्यालय सुनील कुमार के खिलाफ खड़ा हो गया है बल्कि उनकी नियुक्ति के बाद से ही वह विश्वविद्यालय आए कुलपतियों को चुभते रहे हैं. सुनील जी का घटनाक्रम विश्वविद्यालयी शिक्षा व्यवस्था में दलितों के साथ होने वाले भेदभाव को भी दर्शाता है. इससे पहले सुनील को घेरने के लिए उन पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगवाया गया और 2013 में उनको सस्पेंड कर दिया गया और 2014 में टर्मिनेट कर दिया गया. उनकी तनख्वाह रोक दी गई. इसके खिलाफ सुनील ने मुंबई हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अदालत में जब जिरह हुई तो झूठ की बुनियाद पर गढ़ा गया यह आरोप फर्जी साबित हुआ और सुनील पाक-साफ बाहर आ गए. अदालत ने सुनील सुमन के पक्ष में फैसला सुनाया और तात्कालिक कुलपति विभूति नारायण को फटकारते हुए उन पर दस हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया. अदालत में जीतने के बाद सुमन ने 31 जुलाई 2015 को फिर से ज्वाइंन किया.
इस आरोप से बरी होने के बाद एक लंबे समय बाद प्रो. सुनील कुमार सुमन फिर से विश्वविद्यालय में पढ़ाने गए. इस दौरान वर्धा विश्वविद्यालय के स्टूडेंट्स खासकर दलित, आदिवासी और ओबीसी के बीच उनकी लोकप्रियता पहले से ज्यादा बढ़ गयी. विद्यार्थी भी उनकी बातों से प्रभावित होने लगे. यह सब ब्राह्मणवादी कुलपति और सहकर्मी प्रोफेसरों को रास नहीं आया, इस कारणवश उनका तबादला मुख्य वर्धा विश्वविद्यालय से इसके कोलकाता सेंटर में कर दिया और यहां से रिलीविंग लेटर दे दिया गया. प्रो. सुनील कुमार इसको साजिश बता रहे है. उनका कहना है कि बुधवार से एम.फिल.-पी-एच.डी. में प्रवेश के लिए इंटरव्यू शुरू हुए और इसी दिन मुझे रिलिविंग लेटर जारी कर दिया गया. विश्वविद्यालय प्रशासन ने इंटरव्यू को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए आनन-फानन में मेरा रिलीविंग लेटर जारी कर दिया ताकि मैं तत्काल कोलकाता चला जाऊं और यहां इंटरव्यू बोर्ड में बैठ ही न सकूं.
प्रो. सुनील कुमार कहना है कि विश्वविद्यालय जातिगत आधार पर दलित प्रोफेसर और नॉनटीचिंग स्टाफ से भेदभाव व नफरत करता है. विश्वविद्यालय भेदभाव के चलते मेरा दो साल का वेतन और प्रमोशन रोके हुए है. अगर विश्वविद्यालय मेरे साथ ऐसे ही भेदभाव करता रहेगा और रिलीविंग लेटर को वापस नहीं लेगा तो मैं अनशन पर बैठूंगा. धरना प्रदर्शन करूंगा और इसमें मेरे कुछ सहयोगी भी समर्थन करेंगें.
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