रियो ओलंपिक में दलित-आदिवासी भागेदारी

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ओलंपिक को खेलों का महाकुंभ कहा जाता है. 2016 का ओलंपिक खेल ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरो में हो रहा है. यह अब तक का 31वां ओलंपिक है. खेलों का यह महाकुंभ 5 अगस्त से शुरू हो गया है औऱ 21 अगस्त तक चलेगा. इसमें 206 देशों के खिलाड़ी हिस्सा ले रहे हैं. खिलाड़ियों की संख्या की बात करें तो इसमें 11 हजार खिलाड़ी हिस्सा लेंगे. भारत से रियो ओलंपिक में 122 खिलाड़ी हिस्सा लेंगे जो 14 खेलों में चुनौती पेश करेंगे. इसमें एथलेटिक्स में 38, हॉकी में 32, निशानेबाजी में 12, कुश्ती में 8, बैडमिंटन में 7, तीरंदाजी, टेबल टेनिस और टेनिस में 4-4 खिलाड़ी अपनी चुनौती रखेंगे.

खास बात यह है कि इस ओलंपिक में दलित/आदिवासी समाज के खिलाड़ी भी अपनी चुनौती पेश करेंगे, जिन्होंने लंबे संघर्ष और कठिन परिश्रम से ओलंपिक में अपनी जगह बनाई है. दलित दस्तक के पास जो सूचना है उसके मुताबिक झारखंड से निक्की प्रधान हॉकी में और लक्ष्मी रानी मांझी और दीपीका कुमारी तीरंदाजी टीम में शामिल हैं. दीपीका जाना-पहचाना नाम बन चुकी हैं, जबकि निक्की और लक्ष्मी रानी मांझी ओलंपिक के लिए नया चेहरा है. भारत की ओर से रियो ओलंपिक जाने वालों में देविंदर वाल्मीकि भी शामिल हैं. देविंदर पुरुष हॉकी टीम का हिस्सा हैं. उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ के रहने वाले देविंदर का पूरा परिवार मुंबई में रहता है. दलित दस्तक के पास ओलंपिक जाने वाले जिन दलित/ आदिवासी/ मूलनिवासी लोगों की जानकारी है, हम उसे साझा कर रहे हैं.

रियो में झारखंड की बेटियां करेगी “चक दे इंडिया”

रियो ओलंपिक में झारखंड से तीन बेटियां जा रही हैं. इसमें निक्की प्रधान हॉकी में जबकि दीपीका कुमारी और लक्ष्मी रानी मांझी तीरंदाजी प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगी.

निक्की प्रधान- (हॉकी)

झारखंड की राजधानी रांची से 30 किलोमीटर दूर हेसेल गांव के साधारण परिवार की असाधारण बेटी निक्की का चयन महिला ओलंपिक हॉकी टीम में हुआ है. निक्की प्रधान बचपन के दिनों में खेल के नाम से डरती थी. वहीं आज झारखंड राज्य की पहली महिला हॉकी ओलंपियन बनने जा रही है. निक्की के स्कूली जीवन के प्रारंभिक कोच और राजकीय मध्य विद्यालय पेलौल के शिक्षक दशरथ महतो बताते हैं कि प्रधान की बड़ी बहन शशि प्रधान हॉकी खेला करती थी, जबकि निक्की खेलने से बहुत डरती थी. उसे डर लगता था कि कही स्टिक से लगकर पैर न टूट जाए. लेकिन बाद में निक्की का मन हॉकी में ऐसा रमा कि वह ओलंपिक जा पहुंची है.

निक्की का कहना है कि मुझसे देश के सवा सौ करोड़ लोगों की अपेक्षाएं होंगी. मैं बेहतर से बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करूंगी. हर खिलाड़ी का सपना होता है कि देश के लिए पदक जीते. मेरा भी एक सपना है कि मैं देश के लिए पदक हासिल करूं और देश का नाम रौशन करूं. निक्की झारखंड से ओलंपिक में पहुंचने वाली छठी हॉकी खिलाड़ी है, हालांकि यह कारनामा 24 साल बाद हो पाया है. लेकिन अगर महिलाओं की बात करें तो वह झारखंड से ओलंपिक पहुंचने वाली पहली महिला हॉकी खिलाड़ी बन गई हैं. निक्की की इस सफलता से उसकी सहेली बिरसी मुंडू और शिक्षक सुजय मांझी सहित पूरा गांव खुश है.

निक्की पिछले दो साल से भारतीय महिला हॉकी टीम की नियमित सदस्य है. निक्की हटिया स्थित रेलवे के डीआरएम कार्यालय में नौकरी करती है. जानकारी के मुताबिक निक्की जनजाति समाज से ताल्लुक रखती हैं. एक तथ्य यह भी है कि ओलंपिक में जाने वाली प्रधान के गांव में कोई खेल का मैदान भी नहीं है. वह स्कूली समय में सुबह शाम गांव के खेत में स्टीक लेकर अभ्यास किया करती थी. निक्की की सहेली बिरसी बताती है कि प्रधान में एक जुनून है. वह हमेशा अपने गांव और देश का नाम रोशन करने की बात किया करती थी.

लक्ष्मी रानी मांझी- (तीरंदाजी)

भारतीय तीरंदाजी टीम में शामिल जमशेदपुर की रहने वाली लक्ष्मीरानी मांझी का मानना है कि रियो ओलंपिक में बेहद कड़ा मुकाबला होने की उम्मीद है. फिर भी वह यहां मेडल जीतना चाहती हैं. वह इससे पहले कोई भी भविष्यवाणी नहीं कर सकती. मांझी रियो ओलंपिक की तैयारी में दिन-रात जुटी रही. उसने दवाब से निपटने के लिए योग भी किया. मांझी पहली बार ओलिंपिक में शामिल होने जा रही हैं. उनका प्रदर्शन कंपीटिशन वाले दिन पर निर्भर करता है. वहां हर कोई मेडल जीतना चाहेगा. मांझी का मानना है कि ओलंपिक शुरू होने से 25 दिन पहले वहां जाने का फायदा मिलेगा. हमारा प्रदर्शन शानदार होगा.

दीपिका कुमारी (तीरंदाजी)

रियो ओलिंपिक में शामिल होने वाली झारखंड की राजधानी रांची की रहने वाली भारत की स्टार तीरंदाज दीपिका कुमारी का मानना है कि साल 2012 लंदन ओलिंपिक में किया गया उनका प्रदर्शन अब बीते दिनों की बात हो चुकी है. दीपिका ने शूटिंग और स्कोरिंग में काफी सुधार किया है. दीपिका ने मानसिक दबाव से किस प्रकार निबटा जाता है इसका गुर भी सीख लिया है. दीपिका ओलंपिक से 25 दिन पहले ही रियो पहुंच चुकी हैं, जिससे की वहां के मौसम के अनुकूल वह खुद को ढाल सकें.

देविंदर वाल्मीकि (हॉकी)

अलीगढ़ में ब्लॉक धनीपुर के गांव अलहादपुर के देविंदर वाल्मीकि का चयन रियो ओलंपिक में खेलने वाली भारतीय हॉकी टीम में हो गया है. टीम में मिड फिल्डर के तौर पर वे देश के लिए पसीना बहांएगें. देविंदर के पिता सुनील वाल्मीकि पेशे से ड्राइवर हैं. गरीब परिवार में जन्में देविंदर ने आर्थिक तंगी समेत कई समस्यओं से जूझते हुए रियो ओलंपिक तक का सफर तय किया है. देविंदर ने नौ साल की उम्र में हॉकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी अपने बड़े भाई युवराज से प्रेरित होकर स्टिक थामी थी.

मुंबई के चर्च गेट में प्रैक्टिस करते हुए 24 साल की उम्र में ओलंपिक में स्थान पक्का कर अपना लोहा मनवाया है. देविंदर ने 2014, 2015 व 2016 में हुए हॉकी इंडिया लीग में मिड फिल्डर के तौर पर हिस्सा लिया. 2015 में बेल्जियम में हुई हॉकी वर्ल्ड लीग राउंड थ्री में दो गोल दागे. इसमें टीम इंडिया टॉप-4 में रही. 2016 में चैंपियन ट्रॉफी में एक गोल दागकर रजत पदक जीता, फिर 2016 के छठी नेशनल हॉकी प्रतियोगिता में एक गोल किया.देविंदर के पिता सुनील वाल्मीकि काम की खोज में पांच दशक पहले मुंबई गए थे. वहां उन्होंने ड्राइविंग कर परिवार का पालन-पोषण किया. मां मीना ने मुंबई में ही 28 मई 1992 में देविंदर को जन्म दिया. खिलाड़ी के तीन भाई राकेश, रवि व युवराज यहां गांव अलहादपुर में ही पैदा हुए. देविंदर ने आर्थिक तंगी समेत तमाम समस्याओं से जूझते हुए रियो ओलंपिक तक का सफर तय किया है.

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