महोबा। बुंदेलखंड के महोबा में गरीबी के चलते एक मजदूर की भूख से मौत हो गई. वह डायबिटीज (मधुमेह) से पीड़ित था. पत्नी ने बताया कि आर्थिक तंगी के चलते इलाज तो दूर, घर में हफ्ते भर से खाना भी नहीं बना था. मजदूर के घर 7 दिन से चूल्हा नहीं जला था. मनरेगा में कई दिन से उसे काम नहीं मिल रहा था, इस वजह से परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उसके बच्चे कई दिन से भीख मांगकर अपना पेट भर रहे थे. हालात ऐसे थे कि परिवार के पास मृतक का अंतिम संस्कार करने के पैसे नहीं थे.
मामला महोबा जिले के खन्ना एरिया के घंडुआ गांव की है. जानकारी के मुताबिक, गांव में रहने वाले दलित मजदूर छुट्टन के पास कुछ बीघा जमीन थी, लेकिन आर्थिक तंगी की वजह से वो इस साल अपना खेत नहीं जोत सका. छुट्टन और उसकी पत्नी ऊषा अपने 3 बच्चों और बूढ़ी मां के पालन-पोषण के लिए मनरेगा में मजदूरी करते थे. दोनों ने मनरेगा में मजदूरी की थी, लेकिन उन्हें इसका न ही भुगतान मिला. इस वजह से छुट्टन बुरी तरह आर्थिक तंगी की चपेट में आ गया.
बीमार छुट्टन ने 5 दिन से कुछ भी नहीं खाया था और न ही उसका इलाज हो सका. इस कारण बीमारी के 15 दिन के अंदर ही उसकी मौत हो गई. पत्नी ऊषा ने बताया कि दो लाख रुपये कर्ज था, जो परिवार के लोगों से धीरे-धीरे लिया जा रहा था. परिवार के पास मजदूर के अंतिम संस्कार के लिए भी रुपए नहीं थे. इस कारण 24 घंटे तक उसका अंतिम संस्कार नहीं हो सका. इसी बीच भूख से मौत की खबर पता चलने पर प्रशासन हरकत में आया.
घटना के सामने आने के बाद प्रशासनिक अफसर मौके पर पहुंचे. उन्होंने अंतिम संस्कार के लिए 5 हजार रुपए और अनाज का इंतजाम करने के साथ ही पोस्टमार्टम के निर्देश दिए. जहां प्रशासन मौत की वजह बीमारी बता रहा है, वहीं मृतक के परिजन भूख से मौत होने की बात कह रहे हैं.
एडीएम ने बताया कि मृतक बीमारी से ग्रस्त था. परिवार की आर्थिक स्थिति जरूर खराब है, लेकिन मौत बीमारी के चलते ही हुई है. फिर भी मौत के सही कारणों का पता लगाने के लिए मृतक का पोस्टमार्टम कराया जा रहा है. मनरेगा की मजदूरी के रुपए नहीं मिलने की जांच कराई जा रही है.
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