डीडी डेस्क– कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी विधेयक सामने आने के बीच ईसाईयों पर उत्पीड़न के मामले बढ़ गये हैं लेकिन इसके साथ ही राज्य में दलित अत्याचार की वारदातें भी जोर पकड़ रही है।
ऐसी ही एक हैरान कर देनी वाली घटना मैसूरु ज़िले के एक लिंगायत वर्चस्व वाले गांव से सामने आई है जहां एक दलित युवक को महज इस बात के लिए पीटा गया क्योंकि उसने मंदिर के सामने बनी सड़क का इस्तेमाल किया था।
ये घटना अन्नूर होशाहल्ली गाँव की है। जहां के रहने वाले दलित युवक महेश अपने एक दोस्त के साथ बाइक पर जा रहे थे कि उन्हें कुछ लोगों ने शिव मंदिर के पास रोक लिया और उनकी कथित रूप से पिटाई कर डाली। जिन लोगों ने महेश को पीटा वो लिंगायत समुदाय के लोग थे।
कर्नाटक में लिंगायत को एक बड़ी और महत्वपूर्ण जाति के रूप में देखा जाता है। लिंगायतों का शिक्षा, राजनीति, खेती-बाड़ी, व्यवसाय समेत लगभग सभी क्षेत्रों पर दबदबा देखा जाता है।
कर्नाटक के जिस शिव मंदिर को लेकर ये घटना हुई है उस मंदिर को बनवाने में भी दलित और लिंगायत दोनों समुदाय के लोगों ने अपनी बराबरी की हिस्सेदारी दी थी।
पीड़ित महेश ने भी इस बार इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि ” इस गाँव के लिंगायतों व दलितों ने मिल कर पाँच साल पहले ही शिव मंदिर बनाया था, इसके लिए दोनों ने ही पैसे दिए, दोनों ने ही अपना श्रमदान किया और दोनों की इसमें बराबर की हिस्सेदारी थी।”
लेकिन मंदिर बनने के बाद ही लिंगायतों ने दलितों को मंदिर से दूर करना शुरू कर दिया। कुछ समय बाद उन्होंने दलितों की मंदिर में एंट्री भी बंद करा दी और जब दलितों ने इस पर सवाल उठाया तो उनकी पिटाई कर दी गई।
महेश ने ये भी बताया कि ‘दलितों को मंदिर से दूर करने के बाद ये भी कहा गया कि कोई दलित मंदिर के सामने की सड़क से नहीं गुजरेगा। ज्यादातर लोगों ने ये बात मान ली लेकिन मैंने नहीं मानी और मैं सड़क का इस्तेमाल करता रहा।’
बताते चले कि इस गांव में तीन सौ लिंगायतों के घर हैं जबकि दलितों के सिर्फ 35 घर हैं। बहरहाल, पुलिस ने आईपीसी और एसटी एक्ट 1989 के तहत मामला दर्ज कर लिया है और जनवरी में होने वाले गांव के खास उत्सवों को देखते हुए इलाके में पुलिस बल तैनात कर दिए गये हैं।
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।