
उत्तराखंड के टिहरी में एक 23 साल के दलित युवक को मनुवादी जातिवादी गुंडों ने इसलिए मार डाला क्योंकि वो एक शादी में खाने के लिए ब्रह्मा के मुंह और जांघो से पैदा हुए लोगों के बगल वाली कुर्सी पर बैठ गया. महज 23 साल की उम्र में एक युवक ने जातिवाद के कारण अपनी जान गवां दी. अपने परिवार को देखने वाला वो अकेला था.
क्या खुद को दलितों की रहनुमा बताने वाली बसपा और उसके नेता इस परिवार को न्याय दिलवाएंगे? क्या बाबासाहेब के नाम पर वोट मांगने वाली भाजपा अपने शासन वाले उत्तराखंड राज्य में अपनी सरकार से कह कर इस परिवार को इंसाफ दिलवाएगी? क्या उत्तराखंड में मौजूद सैकड़ों दलित संगठन जातिवाद की भेंट चढ़ने वाले जितेंद्र दास को इंसाफ और न्याय दिलवाने के लिए सड़क पर आएंगे?
क्या ऐसी घटनाओं पर सवर्ण समाज के सजग लोगों को शर्म आएगी? क्या वो अपने समाज के ऐसे दोगले लोगों द्वारा की गई इस अमानवीयता के खिलाफ जितेंद्र को इंसाफ दिलाने सड़क पर उतरेंगे? शायद ऐसा नहीं होगा. लेकिन सवाल यह उठता है कि जितेन्द्र न मारा जाता अगर पहाड़ के लोगों ने समारोहों में एक-दूसरे के यहां खाने की परंपरा न डाली होती. दरअसल पहाड़ के कई क्षेत्रों में दलित और कथित सवर्ण शादी समारोहों में एक-दूसरे के यहां खाना खाने जाते हैं. हालांकि यह भी भेदभाव पूर्ण ही होता है. दोनों एक-दूसरे के यहां जाते तो हैं लेकिन उनके भोजन और बैठने का प्रबंध अलग होता है. जितेन्द्र किसी दूसरे के घर नहीं गया था, बल्कि शादी उसके अपने परिवार में ही थी. शायद इसी लापरवाही में वह जातिवादियों के बगल में बैठ गया. और उसी के परिवार का नमक खा रहे मनुवादियों ने नमक का भी लिहाज नहीं किया और युवक को मार डाला.
लेकिन सवाल यह है कि आखिर समरसता या फिर सद्भावना के नाम पर दलित समाज को ऐसी प्रथाओं और चलन को क्यों ढोना चाहिए, जहां उनका अनादर होता हो या फिर उन्हें सामने वाले से कमतर महसूस होता हो. टिहरी-गढ़वाल के दलितों को अब इस प्रथा के बारे में फिर से सोचना चाहिए, जिसके चलते युवक की जान गई.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।