बिहार में दलितों के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अत्याचार के मामले बेहद चिंताजनक हैं। लेकिन उससे बड़ी चिंता की बात यह है कि ऐसे मामलों में एससी-एसटी एक्ट होने के बावजूद उनको न्याय नहीं मिल पा रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते 23 दिसंबर को एससी-एसटी अधिनियम मामलों की समीक्षा बैठक की थी। इस बैठक में एससी-एसटी के ऊपर अत्याचार के मामलों और न्याय मिलने को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वो चौंकाने वाले हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस समीक्षा बैठक से पता चला है कि
- वर्तमान में राज्य में एससी-एसटी अधिनियम से जुड़े कुल मामलों की संख्या 1,06,893 है
- इनमें से 44,986 मामलों में न्याय नहीं मिला है
- बीते 10 सालों में 44,150 मामलों में से सिर्फ 872 मामलों में ही फैसला
बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक एससी-एसटी अधिनियम के तहत सबसे अधिक
- एससी-एसटी एक्ट में 2020 में 7,574, 2018 में 7,125 और 2017 में 6,826 मामले दर्ज
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नहीं मिल पा रहा है न्याय
रिपोर्ट के मुताबिक उत्पीड़न की घटनाओं में न्याय नहीं मिल पाने की वजह मामलों की संख्या ज्यादा होने का हवाला दिया जा रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि मामलों का निपटारा होने पर पीड़ितों को मुआवजा देना पड़ेगा, जिसकी वजह से भी न्याय मिलना दुभर होता जा रहा है। दरअसल हत्या के मामले में पीड़ित परिवारों को 8.5 लाख रुपये का मुआवजा मिलने का प्रावधान है।
ऐसे मुआवजे के मामले में
- 8,108 मामलों में अब तक सिर्फ 2,876 मामलों का ही निपटारा किया गया है और 5,232 मामले लंबित हैं।
इसका कारण फंड का नहीं होना बताया जा रहा है।
क्या कहते हैं नियम
इन आंकड़ों के सामने आने के बाद बिहार में दलितों और आदिवासियों की दयनीय स्थिति की तस्वीर सामने आ जाती है। तो बिहार की सत्ता पर लंबे समय से बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी दलितों को न्याय दिलाने के बारे में रवैया सवालों के घेरे में है। क्योंकि नियम के अनुसार एससी-एसटी की स्थिति पर हर छह महीने में समीक्षा बैठक होनी चाहिए जो आमतौर पर नहीं हुई। 4 सितंबर 2020 को समीक्षा बैठक के बाद मुख्यमंत्री की भी नजर इसपर पंद्रह महीने बाद गई और 23 दिसंबर 2021 को एससी-एसटी अधिनियम मामलों की समीक्षा बैठक हुई। इससे साफ है कि बिहार की सरकार, प्रशासन और आय़ोग दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार रोकने और उनको न्याय दिलाने के लिए गंभीर नहीं है।

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