गुजरात। गुजरात के उना में दलितों पर हुए अत्याचार के बाद से दलित समाज के लोग बंदूक के लिए आवेदन कर रहे हैं. गुजरात के सुरेन्द्र नगर में दलितों द्वारा किया गया अहिंसक हथियार आंदोलन ने जितना राष्ट्र की दृष्टि को अपनी ओर आकर्षित किया, उसके मुकाबले मोरवी के दलितों द्वारा बंदूकों के लिए किया गया आवेदन पूरी तरह से लोगों के सामने नदारद रहा. लेकिन इसमें दलित उत्पीड़न से निजात के जितने भरपूर तत्व हैं, उसे देखते हुए इसे बहस का बड़ा मुद्दा बनना चाहिए था. खैर! मोरवी के दलितों ने आग्नेयास्त्र की मांग उठा कर एक नयी जमीन तोड़ने का प्रयास किया है.
मोरवी के दलितों ने दलित परंपरा और सवर्णो का हथियार पर स्वामित्व जमाने की नीति को चुनौती दी है. आखिर दलित भी इंसान है. उन्हें भी अधिकार है अपनी रक्षा करने का. क्यों सवर्ण ही बंदूक रखें. दलितों को भी खतरा हो सकता है किसी से. मोरवी के दलितों का कहना है कि सवर्णों को किससे खतरा है, वो तो पहले से ही शक्तिशाली है, उन्हें हथियार की आवश्यकता क्यों है? जरूरत तो हमें है, क्या पता कब कोई सवर्ण आकर हम पर रोब झाड़ने लगे. हमें मारने पीटने लगे. जैसा उना में हुआ. आखिर कब तक हम ऐसे ही पिटते रहेंगें.
एक अन्य मोरवी दलित ने कहा कि हम पिट जाते, पुलिस आरोपियों कोई कार्रवाई नहीं करती. हम रिपोर्ट लिखवाने जाते है, तो उल्टा हमें ही मार कर भगा देती है. जब पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं करेगीं तो मामला अदालत में नहीं जाता. सरकार तो पहले से ही दलितों को हितेषी नहीं है. तो फिर, दलित किससे अपनी सुरक्षा की उम्मीद करें? हमें अपनी सुरक्षा के लिए हथियार चाहिए. और हर दलित को अपने पास एक हथियार रखना चाहिए, जिससे कोई भी सवर्ण दलितों का अनुचित फायदा न उठा सकें.
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