1. अनुसूचित जातियों के छात्रों की छात्रवृत्ति में कटौती- अनुसूचित जातियों के छात्रों की प्री-मैट्रिक (हाईस्कूल से पहले) छात्रवृत्ति के लिए आवंटित धनराशि को 510 करोड़ रुपये से घटाकर सिर्फ 50 करोड़ रुपये कर दी गई है. इस सरकार ने हर वर्ष लगातार इसमें कटौती किया है. 2013-14 के बजट में यह धनराशि 882 करोड़ रुपया थी जो 2017-18 के बजट में 50 करोड़ कर दी गई.
हम सभी जानते हैं कि अनुसूचित जातियों के छात्रों के बीच से छात्रों को उच्च शिक्षा में जाने के लिए स्कूली शिक्षा को मजबूत बनाना बुनियादी आवश्यकता है. उपर्युक्त छात्रवृति इसी से जुड़ी हुई है. कहाँ यह बात हो रही थी कि प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति को सार्वभौमिक बनाया जाए यानी अनुसूचित जाति के सभी छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाए, लेकिन यह करने की जगह आवंटन को ही न्यूनतम कर दिया गया. अनुसूचित जाति के छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की योजना बाबासाहेब की विरासत से जुड़ी हुई है. उन्होंने जोर-शोर से इसकी मांग उठाई थी.
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2. दो वर्षों की 11 हजार करोड़ छात्रवृत्ति बकाया- केन्द्र सरकार का दलित-आदिवासी छात्रों के शिक्षा और उन्नति के प्रति कितना निर्मम रवैया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2015-16 की 70 प्रतिशत छात्रवृत्ति और 2016-17 की 100 प्रतिशत छात्रवृत्ति अनुसूचित जातियों के छात्रों का बकाया है, जिसे केंद्र सरकार ने जारी ही नहीं किया. यह राशि लगभग 11 हजार करोड़ रुपये है.
3. मल-मूत्र की सफाई करने वालों की मुक्ति और पुनर्वास के लिए चलाई जाने वाली स्वरोजगार की योजनाओं के व्यय में 552 करोड़ रुपये की भारी कटौती- हम सभी जानते हैं कि हाथों से मल-मूत्र की सफाई करने वाले लोग अनुसूचित जातियों के हैं. अनुसूचित जातियों की यह जनसंख्या 10 प्रतिशत है. इन दस प्रतिशत लोगों का पेशा ही गंदगी साफ करना घोषित कर दिया गया है. इनको हजारों वर्षों से समाज में सबसे घृणास्पद घोषित कर दिया गया था, और उनका अपराध सिर्फ यह था कि वे पूरे समाज द्वारा की गई गंदगी साफ करते थे. इनमें से कुछ हिस्सा मुसलमान बन गया था, बावजूद इसके वे अभी भी इस पेशे में लगे हैं. यह योजना इस समूह की मुक्ति के लिए बनी थी, जिसके बजट को इस सरकार ने 5 करोड़ रुपया कर दिया, जबकि 2013-14 में इसके लिए 557 करोड़ रुपया आवंटित किया गया था.
4. अनुसूचित जाति बहुल गांवों के संरचनागत विकास के लिए आवंटित होने वाली धनराशि में 60 करोड़ की कटौती- 2013-14 में इस मद में 100 करोड़ का आवंटन हुआ था, जिसे 2016-17 में 50 करोड़ और 2017-18 में 40 करोड़ कर दिया गया. इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जातियों के टोले के लिए इंसानों के रहने योग्य घर, पीने का साफ पानी, जलनिकासी, घरों और सड़कों का बिजलीकरण, आवासों को जोड़ने वाली पक्की गलियाँ, स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों, स्थानीय बाजार, स्टैंड और श्मशान घाट को इन टोलों से जोड़ने के लिए पक्की सड़कें बनवाना है. इन मदों में आवंटन को 50 करोड़ करना सरकार की किस मानसिकता का सूचक है?
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5. नेशनल शेडयूल्स कास्ट फाइनेंस डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के लिए आंवटित धनराशि में 10 करोड़ की कटौती- इस कार्पोरेशन की स्थापना का उद्देश्य दलित उद्यमिता को बढ़ावा देना था, जिस पर इस सरकार का सर्वाधिक जोर है. इस मद में पिछली बार जितना (138 करोड़) आवंटन हुआ था, उसका पूरा का पूरा खर्च हुआ था. फिर भी इस वर्ष इस मद में बजट बढ़ाने के बजाय 10 करोड़ रुपये कम कर दिया गया और 128 करोड़ रुपया ही आवंटित किया गया.
6. डॉ. भीमराव अम्बेडकर अंतरराष्ट्रीय केन्द्र के लिए आवंटन में 60 करोड़ की कटौती- पिछले तीन वर्षों की तुलना में इस बार सबसे कम आवंटन किया गया है, और इस कटौती का कोई कारण नहीं बताया गया.
7. राज्यों के लिए अनुसूचित जाति स्पेशल कंपोनेन्ट प्लॉन के तहत आवंटित होने वाली राशि में 230 करोड़ की कटौती- इस मद में किया जाने वाला आवंटन अनुसूचित जातियों के विकास की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है. इस मद में केंद्र सरकार जितना आवंटित करती है, राज्य अपने प्रदेशों में अनुसूचित जातियों के जनसंख्या के अनुपात में धनराशि आवंटित करके, इस धनराशि को केवल अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए खर्च करते हैं. 2013-14 में इसके लिए आवंटन 1030 करोड़ रूपये था, जिसे घटाकर 2017-18 में 800 करोड़ कर दिया गया यानी सीधे तौर पर 230 करोड़ की कटौती की गई. आवंटति धनराशि पूरे बजट का केवल 0.04 प्रतिशत है. इस मद की धनराशि सभी राज्यों के अनुसूचित जातियों के कल्याण और प्रगति से जुड़ी है.
8. बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर फाउंडेशन के आवंटन में 62.75 करोड़ की कटौती- 2015-16 में इस मद में 63.75 करोड़ रूपये का आवंटन किया गया था, 2016-17 में 1 करोड़ और इस वर्ष के बजट में सिर्फ 1 करोड़ रूपया आवंटित किया गया. इस फाउंडेशन को नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी और राजीव गांधी फाउंडेशन की तरह का बनाने का उद्देश्य था, लेकिन सरकार ने जब इसका बजट ही 63.75 करोड़ से कम करके 1 करोड़ कर दिया है तो इतने कम बजट में क्या होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
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9. वन बंधु कल्याण-योजना में लगभग 200 करोड़ रुपये की कटौती- 2014-16 में इस मद में 200 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था, जिसे 2016-17 के बजट में 1 करोड़ कर दिया गया और इस बार के बजट में लगभग नहीं के बराबर आवंटन करते हुए, इसे 0.01 प्रतिशत कर दिया गया.
10. अनुसूचित जातियों को वेंचर कैपिटल फण्ड और ऋण गारंटी के मद में क्रमशः 160 करोड़ और 199.9 करोड़ की कटौती- इस योजना का उद्देश्य अनुसूचित जातियों के उन उद्यमियों के लिए लघु और मझौले उद्योग लगाने के लिए प्राथमिक पूंजी और बैंकों से दिए जाने वाले ऋण की सरकार द्वारा गारंटी लेना और उनके लिए पूंजी जुटाने में मदद करना है. बावजूद इसके अनुसूचित जातियों को वेंचर कैपिटल फण्ड और ऋण गारंटी के मद में क्रमशः 160 करोड़ और 199.9 करोड़ की कटौती कर दी गई.
11. महिलाओं के लिए आवंटित कुल बजट में से केवल 0.99 प्रतिशत दलित-आदिवासी महिलाओं के लिए आवंटित किया गया है.
12. दलितों के लिए चल रही 294 योजनाओं में से 38 योजनाओं को खत्म कर दिया गया है.
13. आदिवासियों के लिए चल रही 307 योजनाओं में से 46 योजनाओं को खत्म कर दिया गया है.
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के हक में सिर्फ इस वर्ष 1 लाख 53 हजार 547.94 करोड़ रुपये की कटौती और दो वर्षों में 2 लाख 29 हजार 622.86 करोड़ की कटौती इन समुदायों की आर्थिक रीढ़ तोड़ने वाली है. यह प्रक्रिया साल दर साल चल रही है. अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ किए जाने वाले इतने बड़े अन्याय पर चारों तरफ चुप्पी गंभीर चिन्ता और विश्लेषण का विषय है. आखिर हम अपने लगभग 33 करोड़ लोगों के बारे में कब सोचेंगे. बाबासाहेब ने अकूत कुर्बानियों और अनथक संघर्षों से अपने लोगों की जीवन स्थितियों को सुधारने के लिए जो संवैधानिक प्रावधान कराये थे, वे एक-एक कर छीने जा रहे हैं, आखिर हम कब तक चुप्प रहेंगे, कब जागेंगे?
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