पंजाब में चुनाव के पहले कांग्रेस के जीतने का पूरा माहौल था। चरणजीत सिंह चन्नी की देश में बड़ी छवि बन गई थी। पूरे देश से आवाज आ रही थी कि कांग्रेस पंजाब में वापसी करेगी।आम आदमी पार्टी टक्कर में तो थी जरूर लेकिन 2017 के मुकाबले में नहीं, देश में एक आवाज़ गई कि गांधी परिवार में दिल है कि एक दलित को अहम सूबे का सीएम बनाया। राष्ट्रपति या राज्यपाल बनना बड़ी बात नहीं रह गई , समय अंतराल इनकी शक्तियां कम हुई हैं।
जैसे चन्नी सीएम बने सिद्धू उनसे ऐसा व्यवहार किए जैसे कि कोई जूनियर हो । यह दलितों को बर्दास्त नहीं हुआ। जब तक चन्नी संभलें तब तक कुछ क्षति हो चुकी थी। माना कि दलितों की आबादी करीब 36 % है लेकिन ये बटे हुए हैं। इनका ही वोट पड़ जाता तो भी कांग्रेस जीत जाती। सवाल बनता है दूसरी जातियां तो अपने नेता के साथ फौरन चली जाती हैं तो दलित क्यों नही? सदियों से हुकुम मानने वाले जल्दी से अपनों को नेता नहीं मानते। बहुजन आंदोलन से दलितों में विभाजन बढ़ा है और पंजाब में रामदासिया बनाम मुजहबी का फैसला बाध्य। दूसरी बात अब वो दलित नहीं रह गए की जब चाहो भेड़ की तरह पीछे लगा लो। कैप्टन अमरिन्दर सिंह के समय में दलितों के साथ न्याय नहीं हुआ था।कैप्टन अमरिन्दर सिंह मंत्रियों और विधायकों तक से नही मिलते थे । राज-काज नौकरशाही चला रही थी।
सबसे ज्यादा क्षति नवजोत सिंह सिद्धू ने किया। बाहर की आलोचना से जनता इतनी जल्दी यकीन नहीं करती लेकिन जब प्रदेश का मुखिया ही ऐसा करे तो क्यों यकीन न करें? जो भी सरकार घोषणा करती थी विपक्ष से पहले प्रदेश अध्यक्ष ही हवा निकाल देते थे।उनकी बेटी ने भी चन्नी पर प्रहार किया। इससे यह भी संदेश गया कि चन्नी दलित हैं, वे क्या करेगें? जातिवादी मानसिकता उभारने में सिद्धू के बयान सहयोगी सिद्ध हुए । सवर्ण जातियों ने सोचा कि पहले चन्नी को निपटा लो और भगवंत सिंह मान , जो जट सिख से थे उन्हें वोट दिया ।
सुनील जाखड़ जब अध्यक्ष थे तो कभी भी पार्टी ऑफिस आते नही थे। संगठन के स्तर पर स्थिति बड़ी खराब थी। दूसरे प्रदेश से आए कार्यकर्ता चुनाव लड़ा रहे थे। उम्मीदवार गलत चुने गए। बाहर से प्रचार करने गए उनका वहां के समाज से जुड़ाव नही था।जिनका वहां के समाज से लेना देना न था वो प्रचार किए और मीडिया को संबोधित किए। देखकर आश्चर्य हुआ था ।पंजाब के प्रभारी मिलते ही नही थे।दिल्ली के हजारों ऑटो – ट्रांसपोर्ट पंजाब में जाकर आप के झूठों का पर्दाफाश करना चाहते थे लेकिन पंजाब प्रदेश के नेतृत्व का सहयोग नही मिला।वे इतना ही चाहते थे कि पंजाब में किससे समन्नव स्थापित करें और कहां प्रचार करें।
बीएसपी को अच्छा वोट मिला है और प्रदेश स्तर पर वोट की क्षति इसलिए भी हो सकी कि जहां वो नही लड़ी अकाली दल को वोट दिला सके। राजनैतिक बयानबाजी तो हुई लेकिन अंबेडकरी दलित से संवाद न किया जा सका। उनको सही संदेश न दिया जा सका कि यह चुनाव संविधान, आरक्षण और बाबा साहब डॉ अंबेडकर की विरासत बचाने का है। पब्लिक मीटिंग न करके कर्मचारी-अधिकारी और आंबेडकरी दलित से आमने सामने संवाद करना चाहिए था।
चरणजीत सिंह चन्नी को हराने के लिए न केवल पार्टी के नेताओं ने प्रयास किया बल्कि बाह्य शक्तियां भी पूरा जोर लगा रहीं थी। जिस दिन से दलित को राहुल गांधी जी ने मुख्यमंत्री बनाया तो पूरा कांग्रेस निशाने पर आ गई। चन्नी की सफलता से राहुल गांधी जी का नेतृत्व मजबूत होता जो हर हाल में बीजेपी को मंजूर नही है। कुछ कांग्रेस के बड़े नेताओं को भी मंजूर नही था।कभी-कभी जनता के भोलेपन पर आश्चर्य होता है कि क्यों मोदी जी और बीजेपी राहुल गांधी पर ही बार-बार हमला करते हैं? जनता क्या देख नहीं रही है कि राहुल गांधी ही ऐसे नेता हैं जो गत 8 साल से प्रत्येक मुद्दे पर बीजेपी को घेरते हैं। बेरोजगारी, कोरोना की मार , महंगाई और आर्थिक असमानता की बात करते रहे। चीन के अतिक्रमण पर कोई और नेता नहीं बोला।विकास की समझ मोदी जी या बीजेपी के किसी नेता में राहुल गांधी के करीब भी नहीं है। इनका कोई नेता भी राहुल गांधी से दस मिनट तक संवाद नही कर सकता। इन्हे आता क्या है हिंदू -मुस्लिम , झूठ बोलना और चालाकी के अलावा। बीजेपी को परेशानी ज्यादा हुई कहीं दलित सीएम का मॉडल सफल हुआ तो पूरे देश में मांग बढ़ेगी कि इनको भी ऐसा करना चाहिए , हो सकता है बड़े राज्य जैसे उप्र में ऐसी मांग उठ जाए। इससे काग्रेस का विस्तार होना शुरू हो जाए। किसानों को नीचा दिखाना और अपने निर्णय को सही साबित करने के लिए कांग्रेस को हराना और आप को जिताने से ऐसा संदेश भेजा गया कि किसान आंदोलन से कुछ फर्क नहीं पड़ा। उप्र का चुनाव बीजेपी के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण था और पंजाब में हेरा-फेरी करते तो लोग शक करते, इसलिए आम आदमी पार्टी की जीत कराने में मदद किया। अरविंद केजरीवाल कह चुके हैं कि उनका खान दान संघी रहा है और वे भी हैं। कौन नहीं जानता कि अन्ना हजारे के आंदोलन के पीछे बीजेपी का हाथ रहा। आप के मजबूत होने से मोदी का कांग्रेस मुक्त लक्ष्य की प्राप्ति का एजेंडा छुपा हुआ है। बीजेपी आम आदमी पार्टी से कांग्रेस को कमजोर करवा रही । आम आदमी पार्टी को मीडिया के माध्यम से चर्चा करा रही है कि कांग्रेस का विकल्प आम आदमी पार्टी है। मुसलमान और दलित दोनो कांग्रेस का राष्ट्रीय स्तर पर जनाधार हैं कुछ राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश , बिहार और बंगाल छोड़कर। चन्नी को हराकर यह भी संदेश देने की कोशिश है कि दलित नैया पार नहीं लगा सकते। वास्तव यह मनोवैज्ञानिक खेल है और कांग्रेस को फिर से जोड़ने का प्रयास तेज करना चाहिए।जब बीएसपी खत्म हो रही है तो इससे अच्छा अवसर क्या हो सकता है। कुल मिलाकर चन्नी हारे नही बल्कि हराया गया।
(लेखक उदित राज पूर्व लोकसभा सदस्य हैं)

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