Monday, January 27, 2025
HomeTop Newsबहुजन विद्यार्थियों को आरक्षण के मुताबिक दाखिला नहीं दे रहा दिल्ली विश्वविद्यालय

बहुजन विद्यार्थियों को आरक्षण के मुताबिक दाखिला नहीं दे रहा दिल्ली विश्वविद्यालय

Delhi university

देश के बड़े विश्वविद्यालयों में से एक दिल्ली विश्वविद्यालय में इन दिनों दाखिले का दौर चल रहा है। देश भर से तमाम युवा दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन की चाह लिए अपने भविष्य के सपने बुन रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रों के सपने पूरे भी कर रहा है, लेकिन सिर्फ एक खास जाति वर्ग के। जबकि यही विश्वविद्यालय कमजोर वर्ग के युवाओं के डीयू में पढ़ने के सपने को कुचलने पर अमादा है।

8 जुलाई को एडमिशन की तीसरी कट ऑफ लिस्ट जारी होने के बाद विश्वविद्यालय के इंफर्मेशन बुलेटिन के मुताबिक दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिले में 61.11 फीसदी सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को प्रवेश दिया गया है, जबकि आरक्षण होने के बावजूद अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग का कोटा तक पूरा नहीं किया गया है।
इस खबर को समाचार पत्र द हिन्दू ने भी प्रकाशित किया है। उसकी रिपोर्ट के मुताबिक अब तक हुए दाखिले में दलित, आदिवासी वर्ग और पिछड़े वर्ग के साथ बहुत बड़ा धोखा सामने आया है। अनुसूचित जनजाति के लिए संविधान में 7.5 फीसदी आरक्षण दिया गया है लेकिन डीयू ने इस वर्ग के सिर्फ 3 फीसदी विद्यार्थियों को ही दाखिला दिया है।

Photo Courtesy: The Hindu

इसी तरह अनुसूचित जाति के लिए संविधान के तहत नौकरियों और विश्वविद्यालयों में दाखिले में 15 फीसदी आरक्षण दिया गया है, लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय ने नियमों को ताक पर रख कर इस वर्ग के सिर्फ 10.94 फीसदी विद्यार्थियों को ही मौका दिया है। पिछड़े वर्ग का हाल भी इससे जुदा नहीं है। नियम के मुताबिक पिछड़े वर्ग को मिलने वाले 27 फीसदी आरक्षण को भी विश्वविद्यालय ने नजरअंदाज किया है और इस वर्ग के सिर्फ 20.96 फीसदी छात्रों को दाखिला दिया है। यानि दिल्ली विश्वविद्यालय ने अनुसूचित जनजाति यानि शिड्यूल ट्राइब के हक का साढे चार (4.5) प्रतिशत, अनुसूचित जाति यानि शिड्यूल कॉस्ट का चार प्रतिशत (4.06) और पिछड़े वर्ग यानि ओबीसी समाज का 6 फीसदी आरक्षण हड़प कर दूसरे वर्ग को दे दिया है।

‘द हिन्दू’ की खबर में अनुसूचित जनजाति की खाली सीटों को लेकर जब डीन ऑफ स्टूडेंट वेलफेयर राजीव गुप्ता से पूछा गया तो उनका कहना था कि देश भर में कई विश्वविद्यालय हैं और तमाम तरह के प्रोफेशनल कोर्सेस हैं, इसलिए यह नंबर पूरा नहीं हो पाता। हालांकि अगर एक पल को उनकी बात पर यकीन कर भी लिया जाए तो अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग को लेकर उनकी यह दलील काफी कमजोर लगती है। क्योंकि इस वर्ग के तमाम छात्र डीयू में दाखिला न मिल पाने के कारण परेशान हैं।

आखिर आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों की अनदेखी की वजह क्या है, इसे वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल की उस प्रतिक्रिया से समझा जा सकता है जो उन्होंने अपने फेसबुक पर लिखा है, दिलीप मंडल कहते हैं-
दिल्ली यूनिवर्सिटी खास है क्योंकि इसी से देश भर के विश्वविद्यालयों की नीति तय होती है. ये देश की सबसे बड़ी सेंट्रल यूनिवर्सिटी है जिसमें रेगुलर कोर्स में हर साल 52,000 से ज्यादा सीटें आती हैं. यहां के ग्रेजुएट कोर्स से अक्सर तरक्की की राह खुलती है. कई कॉ़लेजों में शानदार प्लेसमेंट होता है. विदेश जाने का रास्ता भी यहां से आसान हो जाता है. इसलिए जातिवाद का सबसे निर्मम खेल यहीं होता है ताकि एससी-एसटी-ओबीसी के स्टूडेंट यहां न आ पाएं. ज्यादा खेल यहां के टॉप 10 कॉलेजों में है. वहां सबसे ज्यादा जातिवाद है.

दिलीप मंडल का सवाल जायज है। हालांकि इस खबर के सामने आने के बाद भी बहुजनों के खेमें में छाई चुप्पी और बड़े विरोध की कमी चिंता की बात है।

लोकप्रिय

संबंधित खबरें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Skip to content