नई दिल्ली। देश में अक्सर वंचित तबके में कम होती शिक्षा पर बहस होती है. वंचित वर्ग के बच्चे प्राथमिक शिक्षा में तो मिल जाते हैं लेकिन उच्च शिक्षा की तरफ जाते-जाते उनकी संख्या काफी कम हो जाती है. यह मामला 19 मार्च को देश की संसद में भी उठा. जिसमें यह सामने आया कि पढ़ाई को बीच में छोड़ने वालों में अनुसूचित जाति, जनजाति और मुस्लिम समुदायों के छात्रों की संख्या सबसे ज्यादा होती है.
लोकसभा में यह मामला राजू शेट्टी ने उठाया था, जिसका जवाब मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने दिया. कुशवाहा के मुताबिक एकीकृत जिला शिक्षा सूचना प्रणाली के अनुसार, मुस्लिम और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों का ड्राप आउट देश के औसत ड्राप आउट से अधिक है.
इस संदर्भ में एचआरडी राज्य मंत्री कुशवाहा की ओर से दिए गए आंकड़ों के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर देश के सभी वर्गों के बच्चों की औसत ड्रॉप आउट दर 4.13 फीसदी है. जबकि अनुसूचित जाति के बच्चों की ड्रॉप आउट दर 4.46 फीसदी, अनुसूचित जनजाति का 6.93 फीसदी और मुस्लिम समुदाय के बच्चों का ड्रॉप आउट दर 6.54 फीसदी है.
इसी तरह उच्च प्राथमिक शिक्षा में सभी श्रेणियों की औसत ड्रॉप आउट दर 4.03 फीसदी है तो अनुसूचित जाति की 5.51 फीसदी, अनुसूचित जनजाति की 8.59 फीसदी और मुस्लिम समुदाय की ड्रॉप आउट दर सबसे ज्यादा 9.49 फीसदी है.
माध्यमिक स्तर की बात करें तो इसमें सभी श्रेणियों की औसत ड्रॉप आउट दर 17.06 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जाति की 19.36 फीसदी, जनजाति की 24.68 फीसदी और मुस्लिम समुदाय की 24.12 फीसदी है. समाज के एक बड़े वर्ग की शिक्षा से जुड़ा यह तथ्य इस समाज के पिछड़ेपन की कहानी भी कहता है.
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