हमारी संचित नफरतें कोराना के कुदरती कहर के वक्त भी उसी तरह प्रकट हो रही है ,जैसे सामान्य दिनों में होती रहती है, वैसे भी जाति और धर्म आधारित घृणायें तात्कालिक नहीं होती है, यह हमारे देश में लोगों के दिल, दिमाग में व्याप्त है, उसे थोडा सी हवा मिले तो अपने सबसे शर्मनाक स्तर पर बाहर आ जाती है.
इन दिनों में कईं तबके कोराना जन्य नफरत से प्रताड़ित है, कोराना का वायरस तो फेफड़ों को इन्फेक्ट कर रहा है, पर साम्प्रदायिकता व जातिवाद का वायरस दिमाग को बुरी तरह से इन्फेक्ट किये हुए हैं. सामने भयावह मौत का खतरा होने के बावजूद भी लोग अपने जाति दंभ और मजहबी मूर्खताओं को बचाने में जी जान लगा रहे हैं, इससे यह साबित होता है कि लोगों को मरना मंजूर है पर सुधरना स्वीकार नहीं है.
क्या कोराना जैसी वैश्विक महामारी से भारतीय समाज कोई सीख ले रहा है या वह उतना ही अहमक बना हुआ है, जितना बना रहने की उसकी क्षमता है, क्या हम इस दौर में सोच पा रहे हैं कि कोराना जैसे अदृश्य दुश्मन के सामने विश्व की तमाम सत्ताओं ने घुटने टेक दिए हैं, राष्ट्रवाद व नकली सरहदों की फर्जी अवधारणायें भूलुंठित है, धर्मसत्ताओं ने अपनी प्रासंगिकता खोना प्रारम्भ कर दिया है, काबा हो या काशी, वेटिकन हो या बोधगया सबकी तालाबंदी हो गई है, कोई पोप, कोई पीर, कोई शंकराचार्य, कोई महामंडलेश्वर, कोई परमपूज्य, कोई पंडित, कोई मुल्ला, कोई पादरी कुछ भी करने की स्थिति में नहीं है. इन्सान को बरगलाने वाले इन लोगों के पास इन्सान को बचाने का कोई मैकेनिज्म नहीं है, फिर भी कुछ धर्मस्थल अज्ञान बाँट रहे हैं, जहालत परोस रहे हैं, लेकिन ये लोगों को कोराना से संक्रमित होने से नहीं बचा पा रहे है, अपने आपको सर्वशक्तिमान समझ बैठे मनुष्य को कोराना ने आईना दिखा दिया है कि उसकी औकात क्या है?
बावजूद इसके भी जिन लोगों के दिमाग में नफ़रत व भेदभाव का गोबर भरा हुआ है, वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे है, भारत का नरभक्षी मिडिया और उसके रक्तपिपासु एंकर अपना वही हिन्दू मुसलमान का भौंडा राग अलाप रहे है, प्रलय के क्षणों में भारत के जातिवादी और घनघोर मिडिया का यह प्रलाप स्वयं में ही एक महामारी है, जिसकी कोई वेक्सिन नहीं बन पायेगी, कईं बार तो लगता है कि इस मनुधारा (मनुस्ट्रीम) मिडिया में अधिकांश मनोरोगी घुस आये हैं और अब ये लाइलाज है.
कोराना के इस संकट काल में जिस भारतीयता व इन्सानियत की उम्मीद की जानी चाहिए, उसकी अनुपस्थिति चिंतित कराती है, जिस तरह की खबरें आ रही है, वे हैरान और परेशान करने वाली है. बस्ती के भानपुर सोनहा में जिन कोराना संदिग्धों को क्वार्न्टीन करके लाया गया, वहां का रसोइया अनुसूचित जाति का था, तो उच्च जाति के तुच्छ दंभ से ग्रसित जातिवादियों ने उसके हाथ का खाना खाने से इंकार कर दिया, हालाँकि कोराना को उनका उच्च वर्ण और उपरी जाति होना भी नहीं रोक पा रहा है, सब समान रूप से संक्रमित हो रहे हैं, पर जाति के वायरस से पहले से ही इन्फेक्टेड सवर्ण हिन्दू अब भी सुधरने की इच्छा नहीं रखते हैं, इसका ज्वलंत उदहारण कोराना के हॉटस्पॉट के रूप में उभरे भीलवाड़ा जिले के गंगापुर थाना क्षेत्र के जयसिंहपुरा गाँव में सामने आया है जहाँ पर एक दलित आंगनबाड़ी सहायिका और उसका किराणा व्यवसायी पति जातीय घृणा के शिकार हुए हैं, महिला को अनुसूचित जाति का होने की वजह से घर में घुसने व पोषाहार बनाने से मना किया गया है और उसके पति की दुकान पर जा कर उससे मारपीट की गई, दुकान में लगी डॉ आंबेडकर की तस्वीर को तोड़ा गया, जातिगत गाली गलौज किया गया. पीड़ित पारस सालवी ने बताया कि गाँव के सवर्ण लोग हम पर कोराना फ़ैलाने का आरोप लगा कर अत्याचार कर रहे है, घटना की रिपोर्ट दी गई है, पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है.
तब्लीग जमात के बहाने मिडिया और सत्ता तंत्र ने जो विमर्श खड़ा किया है, उसके नतीजे अब आम मुसलमानों को भुगतने पड़ रहे हैं, राजस्थान के विभिन्न इलाकों से आई खबरे वाकई शर्मनाक है, जहाँ पर मुस्लिमों के साथ भेदभाव व कोराना के कोरियर बन जाने का सरेआम आरोप लगाते हुए उनके उत्पीडन की घटनाएँ हो रही है. ऐसी घटनाओं के बढ़ने से चिंतित जन संगठनों ने राजस्थान सरकार को एक संयुक्त ज्ञापन दिया है, जिसमें बताया गया कि जयपुर के सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र की हाऊसिंग कालोनी तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर मुस्लिम व्यापारियों को फल व सब्जी बेचने से रोका जा रहा है, जोधपुर के नागोरी गेट इलाके में मुस्लिम मजदूरों पर उनके हिन्दू पड़ौसियों ने मध्य रात्रि में यह कहते हुए मारपीट व गाली गलौज किया कि वे कोराना संक्रमण फ़ैलाने में लगे हैं, हालाँकि तुरंत पुलिस आई और इन मजदूरों को अन्यत्र शिफ्ट किया गया है, लेकिन ऐसी घटनाओं का बढ़ते जाना कोराना की आड़ में मॉब लिंचिंग का खतरा पैदा कर देती है.
भरतपुर के जनाना हॉस्पिटल में परवीना नामक गर्भवती मुस्लिम महिला को एडमिट नहीं किया जाना और उसे जयपुर रेफर कर देने के बाद रास्ते में प्रसव हो जाने से नवजात की मौत जैसी शर्मनाक घटना पर तो राज्य सरकार के पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह खुद भी अफ़सोस जता चुके हैं, हालाँकि प्रशासन व जनाना अस्पताल के डॉक्टर्स इसे बेबुनियाद बता रहे हैं.
तब्लीग जमात की निंदनीय घटना के बाद से सोशल मिडिया पर जमातियों द्वारा थूंकने, अश्लील बर्ताव करने, मुस्लिम व्यापारी द्वारा कथित रूप से फलों के थूंक लगाकर बेचने और मेडिकल टीमों पर हमलों की अफवाहों को नियोजित तरीके से फैलाया जा रहा है, ताकि मुसलमानों के प्रति द्वेष का भाव और सघन हो तथा बहुसंख्यक आबादी उनका आर्थिक बहिष्करण शुरू कर दें, नफरत के कारोबारी इस तरह के प्रोपेगंडा करने में बहुत माहिर है, इस बीच इंदौर जैसी दुखद घटनाएँ भी हुई हैं, जहाँ स्वास्थ्यकर्मियों पर पथराव व उनको भगाने का शर्मनाक कृत्य हुआ है, अच्छी बात यह रही कि मुस्लिम समाज ने बड़े पैमाने पर पहल करते हुए सार्वजनिक रूप से इस घटना के प्रति शर्मिंदगी जाहिर की और बाकायदा विज्ञापन छपवा कर माफ़ी मांगी, इसका सुखद परिणाम रहा, अविश्वास का अँधेरा छंटा और मेडिकल टीम वापस उन इलाकों में जाकर अपना काम सुचारू कर पाई, लेकिन तब्लीग जमात और इंदौर जैसी घटनाओं की आड़ में कईं फर्जी वीडियो फैलाये गए है ताकि लोग एक दुसरे से नफरत करने लगे, यह स्थिति भयावह है.
कोराना से जंग बहुत महत्वपूर्ण लडाई है, जिससे केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया लड़ रही है, यह किसी एक देश अथवा एक धर्म या एक जाति संप्रदाय की वजह से नहीं फ़ैल रहा है, न ही कोई शुद्ध खून का दावा करने वाले कथित उच्च लोग इससे बच रहे है, इसकी चपेट में अमीर–गरीब, हिन्दू-मुसलमान, यहूदी, जैन बौद्ध, ईसाई, आस्तिक नास्तिक सब है, इसलिए किसी एक कौम, एक जगह, एक हॉस्पिटल, एक जाति, एक विचार या विश्वास पर आरोप प्रत्यारोप लगाकर अपने भीतर बसी नफरत का प्रकटीकरण मत कीजिये, कोराना के सामने इस वक्त सब निहायत ही निरे असहाय इन्सान मात्र है, बस इन्सान बने रहिये, एक दूसरे की मदद कीजिये, शायद मानव प्रजाति यह जंग जीत ले, इस जंग के फ्रंट पर लड़ रहे लोगों के प्रति और इसकी दवा खोज रहे वैज्ञानिकों के प्रति हिकारत, नफरत व भेदभाव का भाव मत लाइए, क्योंकि आपका अज्ञान आपको नहीं बचा सकेगा, अब भी अंतिम उम्मीद विज्ञान से ही है. देर सवेर वही बचायेगा.
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता व स्वतंत्र पत्रकार है.)