धर्मयुद्ध के समक्ष दिग्विजय सिंह!

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सत्रहवें लोकसभा का चुनाव अपना आधे से ज्यादा का सफ़र पूरा कर चुका है. अबतक चार चरणों के चुनाव पूरे हो चुके हैं और विपक्ष का हौसला बुलंद है. किन्तु हौसला बुलंद होने के बावजूद इन तीन चरणों में इवीएम जिस तरह से काम कर रहा है, उससे विपक्ष कुछ खौफजदा भी चला है. उसके खौफ को प्रधानमंत्री उसकी हार का डर बता रहे हैं. बहरहाल जिन बाकी सीटों पर चुनाव होना है, उनमे भोपाल की सीट पर पूरी दुनिया की निगाहें टिक गयी हैं. इस प्रतिष्ठित सीट पर किसी कांग्रेसी के जीते 35 साल हो गए हैं. कांग्रेस इस बार 35 साल का सूखा दूर करने की रणनीति के तहत एक दशक तक मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री और दो बार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे दिग्विजय सिंह को यहाँ से उतारने का मन बनाई. प्रायः सोलह साल तक चुनावी राजनीति से दूर रहे दिग्विजय सिंह एक ऐसे नेता हैं, जिनकी पकड़ पूरे प्रदेश में है. अतः उनकी सर्वस्वीकार्य छवि का लाभ उठाने के लिए कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें भोपाल से उतारने का मन बनाया. लेकिन इस वरिष्ठ नेता की एक खासियत यह भी है कि वे समय-समय पर विवादों को जन्म देते रहे हैं. खासतौर संघी आतंकवाद और भाजपा को लेकर सोशल मीडिया पर जारी उनके आक्रामक ट्विट संघ परिवार को काफी विचलित करते रहे हैं . इसलिए संघ परिवार उन्हें हिन्दू –विरोधी साबित करने में बराबर प्रयासरत रहा. उसके अनवरत प्रयास को व्यर्थ करने लिए उन्होंने 2017-18 में तीन हजार किलोमीटर से ज्यादा दूरी की नर्मदा परिक्रमा किया था. बावजूद इसके संघ परिवार उन्हें हिन्दू विरोधी साबित करने की मुहीम से पीछे नहीं हटा. ऐसे में जब लम्बे अन्तराल के बाद दिग्विजय सिंह चुनावी राजनीति में उतरे, तब संघ परिवार ने इसे एक अवसर के रूप में लिया.

प्रत्येक व्यक्ति के खाते में 15 लाख रूपये जमा कराने, हर साल युवाओं को दो करोड़ नौकरियां देने, किसानों की आय दो गुनी करने इत्यादि जैसे जिन लोकलुभावन वादों के सहारे नरेंद्र मोदी 2014 में जोर-शोर से सत्ता में आये, प्रधानमंत्री के रूप में उन वादों को पूरा करने में बुरी तरह विफल रहे. ऊपर से नोटबंदी और जीएसटी से भी उनके प्रति लोगों का बड़े पैमाने पर मोहभंग हुआ. इससे भी आगे बढ़कर जिस तरह 2019 में उनकी पारी के स्लॉग ओवर में सवर्ण आरक्षण और विभागवार आरक्षण लागू होने के साथ 10 लाख आदिवासी परिवारों को जंगल से दूर धकेलने का आदेश जारू हुआ, उससे बहुसंख्य वंचित वर्गों के मतदाताओं में एक तरह से उनके खिलाफ विद्रोह की भावना पनप उठी. ऐसे में सत्रहवीं लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए अवसर काफी कम हो गए.इस स्थिति में संघ परिवार इन मुद्दों से लोगों का ध्यान हटाकर चुनाव को हिंदुत्व जैसे भावनात्मक मुद्दे पर केन्द्रित करने की जुगत भिड़ाने लगा. ऐसे में जब भोपाल की प्रतिष्ठित सिट से दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी की घोषणा हुई, उसने इसे पूरे चुनाव को हिंदुत्व पर केन्द्रित करने के एक स्वर्णिम अवसर के रूप में देखा और इसके लिए उसने ऐसा प्रार्थी उतारने का मन बनाया जिसे सामने देखकर वह संघी आतंकवाद का पुराना राग अलापना शुरू कर दें. कहा जा रहा है कि इसके लिए संघ परिवार ने उमा भारती, नरेंद्र सिंह तोमर, शिवराज सिंह चौहान इत्यादि कई नामों पर विचार-विमर्श करने के बाद मालेगांव ब्लास्ट को लेकर चर्चा में आयीं साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का नाम आगे बढाया और आनन-फानन में उनको भाजपा ज्वाइन कराकर टिकट दे दिया गया. कथित डिवाइन पॉवर से लैस वही प्रज्ञा ठाकुर 23 अप्रैल को पूरे लाव-लश्कर और शक्ति प्रदर्शन के साथ भोपाल से भाजपा के आधिकारिक प्रार्थी के रूप में अपना नामांकन पत्र दाखिल कर दीं. इन पंक्तियों के लिखने के दौरान उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगानेवाली याचिका भी ख़ारिज हो चुकी हैं.

वैसे तो साध्वी प्रज्ञा सिंह 23 अप्रैल को आधिकारिक तौर पर भाजपा की प्रार्थी बनीं, लेकिन पार्टी ने उनके नाम की घोषणा सप्ताह भर पहले ही कर दिया था. और भाजपा की ओर से प्रार्थी घोषित होते ही वह दिग्विजय को उकसाने के मोर्चे पर सक्रिय हो गयीं. उम्मीदवारी की घोषणा होते ही उन्होंने एलान कर दिया कि यह चुनाव दिग्विजय सिंह के खिलाफ नहीं है, यह धर्मयुद्ध है. प्रज्ञा सिंह और उनके सहयोगियों के आतंकवादी घटनाओं में शामिल होने के मामलों की जांच मुंबई पुलिस के जिस आला अधिकारी हेमंत करकरे ने की थी, उनसे दिग्विजय के निजी और मधुर सम्बन्ध थे. इसलिए प्रज्ञा ने दिग्विजय सिंह को उकसाने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं के मध्य हेमंत करकरे पर एक ऐसा बयान दे दिया जिसे लेकर देश में तूफ़ान खड़ा हो गया. उन्होंने करकरे की भूमिका पर कई सवाल उठाते हुए कहा था ,’मैंने कहा था कि तेरा सर्वनाश होगा. जिस दिन मैंने कहा था, उस दिन उसको सूतक लग गया था. ठीक सवा महीने बाद आतंकवादियों ने उसे मार दिया. उस दिन सूतक का अंत हो गया.’ शहीद हेमंत करकरे पर साध्वी के उस पागलपन भरे बयान को भाजपा के प्रवक्ताओं ने तो पहले बचाव करने का प्रयास किया. किन्तु उसे लेकर पूरे देश में जो आक्रोश पैदा हुआ उसे देखते हुए भाजपा के लोगों ने उसे साध्वी का निजी बयान बताकर पल्ला झाड़ लिया. प्रज्ञा सिंह के पागलपन भरे बयान पर देश भर में जो उग्र प्रतिक्रिया हुई, उसे देखते हुए कोई और दल होता तो उनकी उम्मीदवारी वापस ले लेता , किन्तु भाजपा ने वैसा नहीं किया.उलटे उसी दिन बहुत ही दृढ़ता के साथ मोदी ने कह दिया,’मालेगांव विस्फोट में आरोपित साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को भोपाल से भाजपा प्रत्याशी बनाया जाना उन लोगों को सांकेतिक जवाब है, जिन्होंने समृद्ध हिन्दू संस्कृति पर आतंकी का ठप्पा लगाया.यह प्रतीक कांग्रेस पर भारी साबित होगा.’

अब प्रधानमन्त्री के उपरोक्त बयान को पकड़कर कहा जा सकता है कि भाजपा ने भोपाल संसदीय क्षेत्र से हिन्दू संस्कृति के एक उग्र प्रतीक को चुनाव में उतारकर दिग्विजय सिंह को धर्मयुद्ध के समुख खड़ा कर दिया है.और अपना कर्तव्य निर्वहन के लिए साध्वी प्रज्ञा ने अपने आग उगलते बयानों से भोपाल को धर्मयुद्ध के एक समर क्षेत्र में परिणत कर दिया. जिस तरह कोई खौफनाक फ़ास्ट बॉलर हरियल पिच पर अपने बाउंसर और बीमर से किसी बैट्समैन पर हमला बोल देता है, वही काम प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने किया है. किन्तु चतुर सुजान दिग्विजय सिंह ने एक कुशल बैट्समैन की भांति प्रज्ञा के बीमर- बाउंसरों को डक करते या छोड़ते गए हैं. उत्तेजना में आकर कोई ऐसा शॉट नहीं खेला है, जिसे भाजपा लपक कर शेष बचे चुनाव को हिन्दू-मुस्लिम पर केन्द्रित कर सके. लगातार बाउंसर और बीमर फेंककर खिलाडी को आउट नहीं कर पाने से जिस तरह फ़ास्ट बॉलर थक जाते हैं, कुछ वही हाल साध्वी प्रज्ञा का हो गया है. अब वह नपा-तुला भाषण देने लगी हैं, समझ गयी हैं दिग्विजय सिंह उकसावे में नहीं आने वाले हैं. साध्वी को थकाने के बाद अब दिग्गी राजा धर्मयुद्ध की पिच पर स्कोर करना शुरू कर दिए हैं. इस क्रम में उन्होंने भोपाल विजन डाक्यूमेंट जारी कर कर एक जबरदस्त शॉट लगाया है.

इसमें कोई शक नहीं कि दिग्विजय सिंह ने गत 21 अप्रैल,2019 को जो ‘भोपाल विजन’ जारी किया है, वह एक शब्द में असाधारण है. उसमे भोपाल को टूरिस्ट हब बनाने, त्वरित हवाई सेवा शुरू करने, उत्कृष्ट शिक्षा, उत्तम रोजगार इत्यादि के साथ ज्ञान, विज्ञानं, अनुसन्धान केंद्र विकसित करने सहित अन्य कई जो बाते शामिल की गयी हैं, वह सामान्य स्थिति में चुनाव जीतने के लिए काफी कारगर हो सकती हैं. लेकिन मोदी राज में जिस तरह लोगों को हिन्दू धर्म के नशे में मतवाला बनाने का बलिष्ठ प्रयास हुआ है, उसे देखते हुए ‘भोपाल विजन’ साध्वी प्रज्ञा द्वारा छेड़े गए ‘धर्मयुद्ध’ का सामना करने में पर्याप्त रूप से कारगर होगा, इसमें संदेह है. संघ परिवार द्वारा फैलाये गए राष्ट्रवाद और धर्मोन्माद की गिरफ्त में लोग इस कदर फंस गए हैं कि भूख, बेरोजगारी, विकास की बात भूलकर मोदी-मोदी किये जा रहे हैं. ऐसे में यदि दिग्विजय सिंह धर्मयुद्ध से पार पाना चाहते हैं तो उन्हें 2002 की 13 जनवरी को जारी डाइवर्सिटी केन्द्रित ऐतिहासिक भोपाल घोषणापत्र को हथियार के रूप में इस्तेमाल करना पड़ेगा.

दिग्विजय सिंह भूले नहीं होंगे कि नयी सदी में जब नवउदारवादी अर्थनीति से बहुजन समाज त्रस्त था, उसी दौर में 12-13 जनवरी, 2002 को खुद उन्होंने ही मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दलितों का ऐतिहासिक ‘भोपाल सम्मलेन’ आयोजित किया था, जहां से डाइवर्सिटी केन्द्रित 21 सूत्रीय दलित एजेंडा जारी हुआ,जिसे ऐतिहासिक भोपाल घोषणापत्र कहते हैं. उसी भोपाल घोषणापत्र से दलित, आदिवासियों के साथ परवर्तीकाल में पिछड़ों में नौकरियों से आगे बढ़कर सप्लाई, डीलरशिप, ठेकेदारी, फिल्म-टीवी इत्यादि अर्थोपार्जन की समस्त गतिविधियों में अमेरिका के तर्ज पर सर्वव्यापी आरक्षण की चाह पनपी. आज दलित-आदिवासी और पिछड़े समूह के तमाम जागरूक लोग अपने-अपने तरीके से सभी क्षेत्रों में आरक्षण की अगर मांग बुलंद कर रहे हैं, तो उसके पीछे भोपाल घोषणापत्र का ही बड़ा योगदान है. दिग्विजय सिंह ने भोपाल घोषणापत्र के जरिये न सिर्फ सर्वव्यापी आरक्षण वाली डाइवर्सिटी की आइडिया को सिर्फ विस्तार दिया, बल्कि 27 अगस्त ,2002 को समाज कल्याण विभाग में एससी/एसटी के लोगों को 30% आरक्षण लागू कर रास्ता दिखाया कि सरकारें यदि चाह दें तो बहुजनों को नौकरियों से आगे बढ़कर उद्योग-व्यापार में आरक्षण दिलाया जा सकता है. हालांकि 2004 में भाजपा की उमा भारती सरकार ने विजय सिंह के उस आरक्षण को ख़त्म कर दिया. लेकिन उसके कारण ही यूपी-बिहार सहित अन्य कई राज्यों में नौकरियों से आगे बढ़कर ठेकों,आउट सोर्सिंग जॉब इत्यादि में आरक्षण मिला. सत्रहवें लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के साथ ही कांग्रेस पार्टी ने सामाजिक न्याय केन्द्रित जैसा घोषणापत्र जारी किया है, वैसा आजाद भरात में इससे पहले कभी नहीं हुआ. राजद-कांग्रेस ने निजी क्षेत्र में आरक्षण, प्रमोशन में आरक्षण, निजीक्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों, सप्लाई, ठेकों इत्यादि में संख्यानुपात में आरक्षण देने की बात अपने घोषणापत्र में शामिल किया है, तो उसकी जड़ें भोपाल घोषणापत्र में ही निहित है.जब भोपाल घोषणापत्र का यह असर है, तब बेहतर होगा दिग्विजय सिंह ‘भोपाल विजन’ के साथ ‘भोपाल घोषणापत्र’ की सर्वव्यापी आरक्षण वाली बात को जोर-शोर उठाते हुए मतदाताओं को आश्वस्त करें कि जीतने पर हमारी पार्टी संख्यानुपात्त में सभी सामाजिक समूहों को सभी क्षेत्रों में हिस्सेदारी देगी. हाँ, इसके लिए सवर्णों के रोष को नजरअंदाज करने का मन बनाना पड़ेगा. वैसे यह अप्रिय सच्चाई है कि सवर्णों ने अपना भविष्य भाजपा के साथ जोड़ लिया है. ऐसे में कांग्रेस को सत्ता पाने के लिए अब पूरी तरह वंचित वर्गों पर निर्भर रहना पड़ेगा और वंचित वर्गों का वोट पाने के लिए उन्हें संख्यानुपात में हर क्षेत्र में आरक्षण अर्थात शेयर सुनिश्चित कराने का उपक्रम चलाना होगा. इसके लिए भोपाल घोषणापत्र को विस्तार देने से श्रेयस्कर कुछ हो ही नहीं सकता.

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