प्रा यः हर वर्ष दीपावली आते ही दीपावली और दीपदानोत्सव को लेकर चर्चा शुरू हो जाती है। कुछ लोगों का मानना है कि महाराजा अशोक ने इसी दिन 84 हजार स्तूपों का अनावरण किया था, जिसकी सजावट दीपों से किया गया था, इसलिए इसे दीपदानोत्सव कहते हैं।
प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या अशोक प्रतिवर्ष अनावरण दिवस पर दीपदानोत्सव करते रहे? अशोक ने जिस दिन पाटलीपुत्र में स्तूपों का अनावरण किया था उसी दिन धम्म दीक्षा भी ग्रहण की थी, उस महान दिवस को अशोक धम्म विजय दशमी के नाम से जाना जाता है, अर्थात वह दिन कार्तिक मास की आमावस्या नहीं दसमी का दिन था, फिर आमावस्या के दिन दीपदानोत्सव क्यों?
कुछ लोगों का मत है कि इसी दिन तथागत गौतम बुद्ध संबोधि प्राप्ति के 7वें वर्ष बाद कार्तिक अमावस्या को कपिलवस्तु पधारे थे, यहाँ भी प्रश्न उतपन्न होता है कि कपिलवस्तु आगमन के 38 वर्ष बाद तथागत का महापरिनिर्वाण हुआ, क्या कपिलवस्तु के लोगों द्वारा तथागत बुद्ध के आगमन के पावन स्मृति में पुनः कभी दीपोत्सव जैसा आयोजन किया गया?
उत्तर स्पष्ट है कि कभी नहीं।
तो आज क्यों तथागत बुद्ध के कपिलवस्तु आगमन को दिवाली के रूप में मनाया जा रहा है?
मैंने जितना भी प्राचीन बौद्ध साहित्य या त्रिपिटक साहित्य को पढ़ा है, दीपदानोत्सव के बारे कोई जानकारी नहीं मिलती। मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि महाराजा अशोक ने अनावरण के समय दीपदानोत्सव कराया था, लेकिन प्रति वर्ष ऐसा उत्सव देखने को नहीं मिला जबकि वह कई वर्ष जीवित रहे।
आज भी जब लोगों द्वारा कोई नया विहार या आवास बनाया जाता हैं तब उसके उद्घाटन या अनावरण के अवसर पर साज-सज्जा किया जाता हैं। लेकिन प्रति वर्ष इस प्रकार का उत्सव देखने को नहीं मिलता। यदि दीपदानोत्सव का संबंध तथागत बुद्ध या अशोक के जीवन से संबंधित होता तो तथागत बुद्ध के अनुयायी जिन-जिन देशों में गये वहा “बुद्ध पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा, आषाढ़ पूर्णिमा” आदि की भांति यह पर्व भी धूम-धाम से मनाया जाता। लेकिन किसी भी बौद्ध देश में दीपदानोत्सव नहीं मनाया जाता है। इसलिए मै इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि दीपावली का संबंध बुद्ध-धम्म से नहीं है। इसलिए मेरा मत है कि सांस्कृतिक घालमेल करने से अच्छा है कि दीपदानोत्स का आयोजन इन प्रमुख दिवस पर किया जा सकता हैं-
वैशाख पूर्णिमा
आषाढी पूर्णिमा
कार्तिक पूर्णिमा
अशोक धम्मविजय दसमी तथा 14 अप्रैल
श्रद्धालु उपासकगणों को चाहिए कि वह प्रत्येक अमावस्या की भांति इस अमावस्या को भी उपोसथ दिवस के रूप में ही मनाते हुए आठ शीलों का पालन करें। सायं त्रिरत्न वंदना, परितपाठ, ध्यान- साधना तथा धम्म चर्चा करें।
घनसारप्पदित्तेन दीपेन तमधंसिना। तिलोकदीपं सम्बुद्धं पूजयामि तमोनुदं।
इन गाथाओं के साथ भगवान बुद्ध के सम्मुख दीप प्रज्वलित करें। स्मरण रहे कि बुद्धत्व देवत्व से बढ़ कर है। बुद्ध के समकक्ष कोई देव नहीं है। जिसने बुद्ध की पूजा कर ली उसको और किसी को पूजना शेष नहीं रह जाता।
इस आलेख के लेखक भिक्खु चन्दिमा हैं। वह धम्म लर्निंग सेंटर, सारनाथ के फाउंडर हैं। सारनाथ में रहते हैं और धम्म के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं।

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