भारत के उत्तर में और देश की राजधानी दिल्ली से सटे प्रदेश है हरियाणा, जो अपने देसज ठेठ संस्कृति और खेलकूद के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। 2004-2005 से लगातार प्रदेश के खिलाड़ियों ने प्रत्येक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में बेहतर प्रदर्शन किया है और भारत के लिए कई पदक जीते हैं। परन्तु प्रदेश में मौजूदा भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार की भेदभाव पूर्ण नीति और नीयत से प्रदेश के दलित बहुजन खिलाड़ियों को नुकसान झेलना पड़ रहा है।
अभी हाल ही में रोहतक जिले के गांव सिसर खास की भारोत्तोलन की अंतरराष्ट्रीय स्तर की दलित बहुजन खिलाड़ी सुनीता देवी के साथ सरकार की अनदेखी और भेदभाव का मामला सामने आया है। सुनीता देवी राज्य स्तर पर कई बार गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं।
उन्होंने फरवरी 2019 में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल जीता, वहीं फरवरी 2020 में यूरोपियन वर्ल्ड चैम्पियनशिप जो कि थाईलैंड के बैंकॉक में संपन्न हुई थी में भी गोल्ड पदक जीत कर भारत का नाम रोशन किया। परंतु उनकी मौजूदा हालात प्रदेश और केंद्र में भाजपा सरकार की बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, जैसी अनेकों योजनाओं की पोल खोल रही है। अपने छोटे से जीवन में इतने मेडल जीतने वाली दलित बहुजन अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी सुनीता के साथ प्रदेश सरकार भेदभाव कर रही है। उनके पास ना तो ट्रेनिंग के लिए पैसे हैं ना ही अच्छे खाने (डाइट) के लिए पैसे है। जब वो युरोपियन वर्ल्ड चैंपियनशिप खेलने गई तो इसका खर्च उठाने के लिए इनके घर वालों ने ब्याज पर कर्ज लिया और इन्हे उम्मीद थी कि इतनी बड़ी खेल प्रतियोगिता में मेडल जीतने के बाद घर की स्थिति में सुधार आएगा और वो आगे अपने ओलंपिक के सपने के लिए ट्रेंनिंग कर पाएगी, परंतु ऐसा कुछ नहीं हुआ।
वो तब भी जोहड़ किनारे टूटे फूटे मकान में रहती थी जिसमें एक ही कमरे में खाना और सोना सब करना होता है। परिवार ने सुनीता को यूरोपियन वर्ल्ड चैंपियनशिप में भेजने के लिए जो कर्ज लिया था उसे चुकाने के लिए अब सुनीता समेत पूरा परिवार दिहाड़ी करता है। एक अंतरराष्ट्रीय स्तर की दलित बहुजन खिलाड़ी सुनीता को जब अपनी ट्रेनिंग करनी चाहिए तब वो लोगों के घरों में बर्तन साफ करती हैं। जब सुनीता को बढ़िया डाइट लेनी चाहिए तब उसे लोगों की शादियों में रोटी बनाने का काम करना पड़ता है। जब सुनीता को अपने खेल में सुधार के लिए कौशल सीखना चाहिए तब उसे घर के काम करने पड़ते हैं।
सुनीता जो की पास के ही सरकारी कॉलेज में बी.ए. द्वितीय वर्ष में पढ़ाई करती है, को अपने कॉलेज की तरफ से भी वो मान सम्मान और सहयोग नहीं मिला जो एक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को मिलना चाहिए। ग्राम पंचायत के द्वारा भी सुनीता की अनदेखी की गई, और किसी प्रकार की कोई सहायता या सहयोग नहीं किया गया। अब प्रश्न ये है कि क्या सुनीता एक सवर्ण जाति से होती तो भी उसके साथ ऐसा ही व्यवहार होता? शायद नहीं।
इसके अलावा क्षेत्र के निर्दलीय विधायक जो लड़कियों को कॉलेज तक सुरक्षित पहुंचाने के लिए परिवहन व लड़कियों के प्रोत्साहन के लिए कई योजनाओं का संचालन कर रहे हैं। परन्तु सुनीता जो एक दलित बहुजन परिवार से संबंध रखती है के लिए कुछ सहयोग नहीं किया,जबकि सुनीता को यूरोपियन वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड पदक जीते 15 महीनों से ज्यादा वक्त हो गया है। अब जब सुनीता की खबर चारों तरफ फैली तब क्षेत्र के विधायक ने सुनीता के घर दस्तक दी और उसे कुछ आर्थिक सहायता के साथ बढ़िया ट्रेनिंग व डाइट की व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है।
गांवों में सुनीता जैसी कई दलित बहुजन महिला खिलाड़ी हैं, जिन्हें सरकार की गलत नीयत और भेदभाव पूर्ण नीति का शिकार होना पड़ता है। यदि सरकार साफ नीयत और नीति से सुनीता जैसी विश्वस्तरीय खिलाड़ियों के लिए बढ़िया ट्रेनिंग और अच्छे खाने पीने की व्यवस्था करे तो ये दलित बहुजन महिला खिलाड़ी निश्चित रूप से अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारत का नाम रोशन करेंगी और हरियाणा को पदक तालिका में अव्वल रखेंगी।
हरियाणा प्रदेश में खेल मंत्री (संदीप सिंह, पूर्व भारतीय हॉकी कप्तान) जो खुद एक खिलाड़ी हैं उन्हे अच्छे से मालूम है कि एक खिलाड़ी किस स्तर पर किस प्रकार की मुसीबतों का सामना करता है और यदि किसी खिलाड़ी की आर्थिक स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब हो और खिलाड़ी महिला हो तो कैसी परिस्थितियों से उसे गुजरना पड़ता है। इस बारे में वो अच्छे से समझ सकते हैं,परंतु इस सबके बावजूद ना तो खेल मंत्रालय, ना ही प्रदेश सरकार और ना ही केंद्र सरकार द्वारा कुछ किया जा रहा है और दलित बहुजन खिलाड़ियों का भविष्य अंधकार में धकेला जा रहा है।
सुनीता जैसी अनेकों दलित बहुजन महिला खिलाड़ियों की अनदेखी के पीछे सरकार की संकीर्ण जातिवाद की सोच काम कर रही है और इस प्रकार की सोच को हावी होने से रोकने के लिए दलित बहुजन समाज को एकजुट होना होगा, अपने हितों को ध्यान में रखकर मतदान करना होगा और राजनीति में प्रवेश करके नीति निर्माण में अपना स्थान सुनिश्चित करना होगा क्योंकि जब तक दलित बहुजन समाज खुद मजबूत नहीं होगा और नीति निर्माता नहीं बनेगा, तब तक दलित बहुजन समाज के खिलाड़ियों और महिलाओं के साथ ऐसा भेदभाव होता रहेगा, इसलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि दलित बहुजन समाज अपने अधिकारों के लिए जागरूक हों और एक शक्ति के रूप में सामने आए ताकि हर क्षेत्र में दलित बहुजनों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। जब तक ये नहीं होगा, तब तक सामंती जातियां अपने हिसाब से दलित बहुजनों के लिए नीतियां बनाते रहेंगे, अपने हिसाब से उनका संचालन करते रहेंगे और उनकी नीतियों से सुनीता जैसी अनेकों दलित बहुजन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों का भविष्य बर्बाद होता रहेगा।

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र हैं।
Well analysis. 👏👏
Chintajanak vishay h aise Kai logo ko b yhi SB face krna pdta h ……
Very good
ये तो बुरा है, इसमें अच्छा क्या है??
आप द्वारा लिखा गया “भेदभाव की शिकार अंतरराष्ट्रीय दलित महिला खिलाड़ी”लेख मैंने पूरा पढ़ा है। आपने प्रतिभा को जातिगत भेदभाव के कारण अनदेखी पर बहुत अच्छा लिखा है। सामाजिक भेदभाव को मिटाने के लिए कलम से बढ़कर कोई हथियार नहीं है आप हमेशा समाज उत्थान के लिए अपनी कलम निरंतर चलाते रहो मेरी ओर से आपको शुभकामनाएं एवं आशीर्वाद ।”जय भीम जय गुरु”।