अपने कैडर में मान्यवर कांशीराम एक बहुत दिलचस्प किस्सा बताते थे. और इस किस्से के जरिए तमाम लोग मान्यवर की बात को समझ जाया करते थे. असल में मान्यवर कांशीराम जिन लोगों के बीच काम कर रहे थे, जिन्हें जगा रहे थे उसका बहुसंख्यक हिस्सा गरीब और कम पढ़ा-लिखा था. उन्हें उनकी ही भाषा में समझाना जरूरी था, तभी वो कांशीराम जी की बात समझ पाते.
इस लिहाज से कांशीराम जी ऐसे-ऐसे किस्से ढूंढ़ लाते, जिससे बहुजन समाज के लोग उनकी बात आसानी से समझ जाते. जैसे बाबासाहेब को वह टाई वाले बाबा कहते थे तो ऐसे ही ज्योतिबा फुले को पगड़ी वाले बाबा कह कर संबोधित किया करते थे. जब वो बहुजन समाज को इनके बारे में बताते तो ऐसे संबोधन सुनकर सभी लोग तुरंत समझ जाते कि आखिर मान्यवर किसके बारे में बात कर रहे हैं.
इसी तरह से कांशीराम जी एक कलम के जरिए भी अपनी बात बताते थे. हाथ में कलम लिए उनकी वह फोटो काफी चर्चित है. कांशीराम जी यह पूछते कि कलम चलती कैसे है, लोग बताते कि स्याही या फिर लीड से कलम चलती है. फिर कांशीराम जी उनसे यह पूछते थे कि दिखता क्या है, जाहिर सी बात है मौजूद लोग पेन के कवर को बताते थे. मान्यवर लोगों को यह समझाते थे कि पेन का काम लिखना होता है और लिखने का काम पेन की लीड करती है. यानि कि अगर पेन का कवर न हो तो भी पेन लिखता रहेगा. वह समझाते कि असली ताकत दिखने वाले कवर में नहीं बल्कि लिखने वाली स्याही में है.
मान्यवर कांशी राम साहब ने कलम दर्शन समझाते हुए कहा था की कलम का बड़ा हिस्सा यानी पचासी परसेंट काम करता है. असली ताकत उसके पास है, ऊपर का 15 परसेंट सिर्फ दिखावे के लिए है. जब पचासी पर्सेंट काम करता है तो 15 परसेंट हिस्सा उसके सिर पर सवार हो जाता है और अपनी हुकूमत का एहसास कराता है.
इसे वह बहुजन समाज से जोड़ते हुए कहते थे कि देश के 85 फीसदी मेहनतकश लोग ही देश की असली ताकत हैं. ताकत होते हुए भी वह लाचार हैं, जबकि 15 फीसदी लोगों के पास सारी ताकत है और उनका सत्ता पर कब्जा है. मान्यवर की ऐसी ही परिभाषाओं ने बहुजन समाज को उसकी ताकत का अहसास कराया, जिसके बूते बहुजन समाज सत्ता के शिखर तक पहुंच सकी.
वर्तमान समय में बहुजन समाज अपनी उस ताकत को भूलता दिख रहा है. आखिर आज किस-किस को मान्यवर की “कलम” (Pen) वाली परिभाषा याद है? इसके जरिए मान्यवर समझाना चाहते थे कि लिखता कौन है (स्याही) यानि की असली ताकत किसके हाथ में है, और दिखता कौन है (कवर) यानि बिना मेहनत किए कौन राजा बना बैठा है. बहुजन समाज के हर व्यक्ति को मान्यवर द्वारा दी गई इस परिभाषा से सीख लेते हुए अपनी ताकत को पहचानना होगा. यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी. बहुजन महानायक को नमन.
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।