- संजीव खुदशाह
वैसे तो दलितों में विभिन्न जातियां होती है। विभिन्न जातियों के पेशे भी भिन्न भिन्न होते है। लोकिन पूरी दलित जातियों के बड़े समूह को दो भागों में बांट कर देखा जाता रहा है। पहला चमार दलित जातियां जो मरी गाय की खाल निकालती और उसका मांस खाती थी। दूसरा सफाई कामगार जातियां जो झाड़ू लगाने से लेकर पैखाना सिर पर ढोने का काम करती रही है। यदि अंबेडकरी आंदोलन के पिरप्रेक्ष्य में देखे तो चमार दलित जातियां आंदोलन के प्रभाव में जल्दीं आयी और तरक्की कर गई। वही़ सफाई कामगार दलित जातियां अंबेडकरी आंदोलन में थोड़ी देर से आयी या कहे बहुत कम आई और पीछे रह गई। आइये आज इसके विभिन्न पहलुओं की पड़ताल करते हैं।
क्या है अंबेडकर का प्रभाव (आंदोलन)
सन् 1930 में डॉ. आंबेडकर ने देखा की दलितों के साथ बेहद भेदभाव हो रहा है। उनका शोषण नहीं रूक रहा है। तो उन्होंने दलितों से दो अपील की (1) अपना गांव या मुहल्ले छोड़ दो, शहर में बस जाओं (2) अपना गंदा पुश्तैनी पेशा छोड़ कोई दूसरा पेशा अपनाओ। इन दो अह्वान का असर यह हुआ की शोषण की शिकार दलित जातियों के कुछ लोग अपने गांव को छोड़ कर शहर में आ बसे। इसके लिए उन्हें उच्च जाति के लोग उन्हें गांव छोड़कर जाने नहीं देना चाहते थे। इससे उनकी सुविधाओं और आराम पसंद जिदगी के खलल पैदा हो सकती थी। उनके घर बेगारी कौन करेगा? कौन उनके मरे जानवरों को फेकेगा?
दूसरा काम यह हुआ की दलित जातियां मरे जानवरों को फेकने चमड़े निकालने का काम करने से इनकार कर दिया। इसका असर यह हुआ की गांव में दलितों के साथ मार पीट की गई। दलितों की भूखे मरने की नौबत आ गई। बावजूद इसके बहुसंख्यक दलितों ने अपना रास्ता नही छोड़ा। डॉ. आंबेडकर के आह्वान पर कायम रहे। गौरतलब है ऐसा करने वाली दलित जातियां चमार वर्ग की थी। सफाई कामगारों ने डॉ. आंबेडकर के दोनों आह्वान का पालन नहीं किया। न वे आज भी कर रहे है। आज भी वे अपनी जातिगत गंदी बस्तियों में रहते हैं और अपना वही पुराना गंदा पेशा अपनाए हुये हैं।
इसके क्या कारण हैं यह ठीक-ठीक बताना बेहद कठिन है, लेकिन तत्कालीन परिस्थितियों को देखकर कुछ निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। उन्होंने डॉ. आंबेडकर के आह्वान को नहीं माना इसके निम्न कारण हो सकते हैं।
1) सुविधा- उन तक बात नहीं पहुची होगी की अपने शोषणकारी गांव को छोड़ दिया जाय। उस समय (1930) सफाई कामगार जातियां ज्यादातर शहरों में निवास करती थी। वैसा कष्टकारी जीवन उन्हें देखने को नहीं मिला जैसा गांव में दलितों को मिलता है। इसलिए उनको शहर में रहने के करण गांव छोड़ने का प्रश्न नहीं उठता। रही बात उनकी गंदी बस्तियों को छोड़ने की तो उन्होंने इसलिए नहीं छोड़ा होगा क्योंकि उन्हें गांव के बनिस्पत कष्ट या शोषण कम रहा होगा। बात जो भी हो यह एक सच्चाई है कि सफाई कामगारों ने अपनी गंदी बस्तियों को नहीं छोड़ा।
2) आत्म-सम्मान नहीं जगा– गंदे पेशे को छोड़ने का आह्वान भी सफाई कामगारों ने अनसुना कर दिया। इसका कारण था उनकी आर्थिक स्थिति, अंग्रेजों/ अफसरों से निकटता जो उन्हें सुविधाभोगी बनाती थी। वे अफसरों की तिमारदारी से लेकर सभी गंदे काम करते थे। वे झाड़ु लगाते, नाली साफ करते, मैला ढोते, उनकी जूठन खाते। उन्हें कभी अपना आत्म-सम्मान खोने का, अपना अपमान होने का एहसास नहीं हुआ। यही सब बाते उन्हें पुश्तैनी पेशे पर एकाधिकार रखने हेतु प्रेरित करती थी। इसलिए उन्होंने डॉ. आंबेडकर के इस आह्वान को भी नहीं माना।
3) सामाजिक नेतृत्व– शुरू से आज तक सफाई कामगार जातियों में जो सामाजिक नेतृत्व मिला चाहे वो जाति पंचायत के रूप में रहा या किसी धार्मिक नेता के रूप में, उन्होंने हमेशा सफाई कामगारों का शोषण किया। उन्हे डॉ. आंबेडकर के विरुद्ध भड़काया। कहा कि वे सिर्फ चमारो के नेता हैं। इस काम में हिन्दूवादी लोग/ राजनीतिक पार्टियां मदद करती रही। सामाजिक नेता अपनी राजनीति चमकाने के लिए नये-नये गुरूओं की पूजा करने लगे, जैसे वाल्मीकि, सुदर्शन, गोगापीर, मांतग, देवक ऋषि आदि आदि। वे सारे काम इन समाजिक नेताओं द्वारा किये गये जो इन्हे अंबेडकरी आंदोलन से दूर रखे जाने के लिए किए जाने जरूरी थे। इसका एक बड़ा कारण गांधी का प्रभाव भी रहा है।
4) गांधी का प्रभाव- इसी दौरान (1932) गांधी ने हरिजन सेवा समिति का गठन किया। वे हरिजन नामक अंग्रेजी पत्र प्रकाशित करते थे। इसके केन्द्र में उन्होंने सफाई कामगारों को रखा। वे हिन्दूवादी थे और वे नहीं चाहते थे कि दलित इस पेशे को छोड़े। उन्होंने उल्टे यह कहा कि ‘यदि मेरा अगला जन्म होगा तो मै एक भंगी के घर जन्म लेना पसंद करूगा।‘’ इसका प्रभाव यह पड़ा की सफाई कामगार अपने पेशे के प्रति झूठे उत्साह से भर गये। आत्मसम्मान के उलट अपने आपको फेविकोल से इस पेशे से जोड़ लिया।
अब प्रश्न उठता है कि सफाई कामगारों में आत्मसम्मान कब जागेगा। कब वे अपना पुश्तैनी पेशा एवं गंदी बस्तियां छोड़ेगे। कब अंबेडकरी आंदोलन से जुड़ेगे?
1) सफाई कामगारों के बर्बादी का कारण सामाजिक नेता- सफाई कामगारों का सबसे बड़ा नुकसान उनके ही समाजिक नेताओं ने किया। इतिहास गवाह है कि किसी भी सामाजिक नेता ने डॉं. आंबेडकर के दोनों आह्वान को पूरा करने में कोई रूची नहीं दिखाई। उल्टे वे पार्टी का टिकट पाने और पद पाने के निजी लालाच में डॉ. आंबेडकर के विरुध लोगों को भड़काते रहे। यह प्रकिया आज भी जारी है।
2) धर्मान्धता– यह देखा गया है कि जो दलित जातियां पिछड़ेपन या गरीबी का शिकार रही हैं वे अति धार्मिकता से ग्रसित रही है। सफाई कामगारों के साथ भी यही हुआ। जातीय शोषण से परेशान होकर यदि कोई धर्मांतरण करना चाहता तो उसे किसी काल्पनिक गुरू के सहारे धर्माधता में ढकेल दिया जाता। वे गरीब होने के बावजूद सारे कर्म काण्ड कर्ज लेकर करते। भले ही बच्चों को शिक्षा देने के लिए पैसे न हो। आज भी धर्मांधता सफाई कामगारों के पिछड़ेपन का एक बड़ा करण है।
3) नशा- सफाई कामगार के परिवार ज्यादतर नशे के गिरफ्त में होते है। नशे के कारण वे अपने पेशे आत्म-सम्मान के बारे में सोच नहीं पाते है। नशा करना, घर की महिलाओं से या आपस में झगड़ना उनकी दैनिक दिनचर्या का अहम हिस्सा है।
4) आलस– आमतौर पर सफाई कामगारों द्वारा यह सुना जाता है कि अपना वाला काम करो बड़े मजे हैं। रोज सुबह एक दो घंटा काम करों। दिन भर का आराम। यह देखा गया है कि इस काम में मेहनत कम होने के कारण लोग इस काम को छोड़ना नहीं चाहते। दूसरा कारण यह है कि घरों में सेफ्टी टैक साफ करने के ऊंचे दाम मिलते हैं। अगर एक दिन में दो घरों का काम मिल गया तो इतने पैसे आ जाते है कि एक हफ्ता काम करने की जरूरत नहीं पड़ती। शहरकरण ने आम लोगों को इस काम के ऊंचे दाम देने के लिए मजबूर किया है।
तो प्रश्न यह उठता है कि सफाई कामगार कब अपनी गंदी बस्ती और गंदे पेशे को छोड़ेगा?
यह तभी होगा जब वह अंबेडकरी आंदोलन से जुड़ेगा। सामाजिक नेता, धर्मांधता, नशे के गिरफ्त से बाहर निकलेगा और आलस को त्यागेगा। उसे खुद सोचना होगा कि क्यों वह आज तक इतना पिछड़ा है। पेरियार कहते हैं कि जिस समाज का आत्मसम्मान नहीं होता वह कीड़ों के एक झुण्ड के बराबर है। इसलिए आत्मसम्मान जगाना होगा। इस काम में समाज के ही अंबेडकरवादी पेरियार वादी बुद्धिजीवियों सामाजिक कार्यकर्ताओं को आगे आना होगा तभी इस समाज में आत्म-सम्मान जागेगा और सफाई कामगार समुदाय अंबेडकरी आंदोलन से जुड़ेगा।
- लेखक संजीव खुदशाह अम्बेडकरी आंदोलन से जुड़े हैं। सफाई कर्मचारियों पर उनकी लिखी पुस्तक काफी चर्चित है।
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