Tuesday, February 4, 2025
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डॉ. आंबेडकरः फादर ऑफ मार्डन इंडिया

प्राचीन काल से लेकर आधुनिक भारत के निर्माण में विभिन्न युग-पुरुषों का योगदान रहा। लेकिन कुछ ऐसे युग-पुरुष भी हुए जिन्होंने प्रचलित व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आया हो। ऐसे ही युग-पुरुषों में बाबा भीमराव अंबेडकर का नाम महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत में प्रचलित सामाजिक बुराइयों के प्रति छठी शताब्दी ईसा पूर्व में गौतम बुद्ध से लेकर कई युग प्रवर्तको द्वारा विरोध का स्वर मुखर किया गया। प्राचीन काल का भक्ति आंदोलन हो या मध्यकाल का भक्ति काल चाहे वह सगुण धारा हो या वह निर्गुण लगभग सभी महापुरुषों के द्वारा भेदभाव वाली सामाजिक व्यवस्था का विरोध किया गया। इसके उपरांत 18वीं शताब्दी में भारत के सामाजिक धार्मिक पुनर्जागरण के काल में भी इन सामाजिक भेदभावपूर्ण व्यवस्था का विरोध किया गया। लेकिन इन सब में बाबासाहब भीमराव अंबेडकर ही एक ऐसे युग-पुरुष हुए जिन्होंने सदियों पुरानी भेदभाव पूर्ण भारतीय समाज के स्वरूप को काट कर अलग कर दिया एवं एक नए भारत के निर्माण की पृष्ठभूमि तैयार कर दी।

भारत के संविधान निर्माता, चिंतक और समाज सुधारक डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई रामजी सकपाल था। वे अपने माता-पिता की 14वीं और अंतिम संतान थे।  1907 में पास की मैट्रिक परीक्षा उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट हाई स्कूल में दाख़िला लिया। बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने अंबेडकर की प्रतिभा को देखते हुए उन्हें छात्रवृति की सुविधा दी। 1912 में राजनीति विज्ञान और अर्थशात्र में विषय में स्नातक की डिग्री हांसिल की। साल 2013 में वह कोलंबिया युनिवर्सिटी चले गए। इसके उपरांत 1915 में उन्होंने अपनी स्नातकोत्तर (एम॰ए॰) परीक्षा पास की और 1916 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी किया एवं 1923 में डॉक्टर ऑफ़ साइंस की डिग्री से भी नवाज़े गए।

1920 के दशक के में उन्होंने छुआछूत के विरुद्ध राजनीतिक क्रांतिकारी गतिविधियों को प्रखर करते हुए दलित वर्ग के उद्देश्यों के समर्थन के लिए ‘मूक नायक’ नाम से साप्ताहिक शुरू किया। उन्होंने भारत के राज्य सचिव एस मोंटग और विठलभाई पटेल से मुलाकात कर भारत में अछूतों की समस्या पर विचार विमर्श किया। 1926 में अंबेडकर को बम्बई विधानपरिषद के लिए मनोनीत किया गए। इन्होंने 1927 मे ‘बहिष्कृत भारत’ नाम का एक अखबार भी शुरू किया एवं साथ में ही 1927 में महार सत्याग्रह का भी आवाहन किया। इन्होंने तात्कालिक व्यवस्था रीति रिवाज, जाति व्यवस्था एवं परंपराओं का विरोध करते हुए मनुस्मृति का बहिष्कार किया। इसके साथ ही उन्होंने तात्कालिक शीर्ष क्रम के नेताओं को जाति व्यवस्था के मुद्दे पर उदासीनता के कारण उनकी आलोचना भी की। शीर्ष क्रम के नेताओं की उदासीनता के कारण बाबा भीमराव आंबेडकर का विरोध और भी मुखर होने लगा। इस बीच डॉ. आंबेडकर ने दोहरे निर्वाचन की मांग तेज कर दी, जिसे अंग्रेजी सरकार ने मान भी लिया। तब इसके विरोध में गांधीजी भूख हड़ताल पर चले गए। इससे बाबासाहब आंबेडकर पर चौतरफा दबाव बढ़ने लगा, जिसके फलस्वरूप 24 सितंबर 1932 को उन्होंने गांधीजी के साथ पूना पैक्ट समझौता किया। इसके अंतर्गत विधान मंडलों में दलितों के लिए सुरक्षित स्थान बढ़ा। इस समझौते में बाबासाहब आंबेडकर ने दलितों को कम्यूनल अवॉर्ड में मिले अलग निर्वाचन के अधिकार को छोड़ने की घोषणा की, बदले में कम्युनल अवार्ड से मिली 78 आरक्षित सीटों की बजाय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 148 करवा ली।

1940 के दशक में वो संविधान निर्माता के तौर पर सामने आए। 29 अगस्त 1947 को उन्हें नए संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। आज़ादी मिलने के बाद वो पहली सरकार में देश के पहले क़ानून मंत्री बनाए गए। सन् 1951 में उन्होंने संसद में हिन्दू कोड बिल पेश किया। हिन्दू कोड बिल के ज़रिए महिलाओं को सम्पति का अधिकार और तलाक जैसे अधिकार देने की डॉ आंबेडकर वक़ालत कर रहे थे लेकिन कई मामलों में असहमति होते देख कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया था। डॉ आंबेडकर ने ये इस्तीफ़ा अनुसूचित जातियों के प्रति सरकार की उदासीनता और हिन्दू कोड बिल पर मंत्रिमंडल के साथ मतभेदों के कारण दिया था। इंडिया आफ्टर गांधी’ में रामचंद्र गुहा लिखते हैं कि- जवाहरलाल नेहरू और डॉ भीमराव आंबेडकर हिंदुस्तान में यूनिफार्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू करवाना चाहते थे। लेकिन जब इस मुद्दे पर बहस छिड़ी तो संविधान समिति लगभग बिखर सी गई। बाद में उन्होंने प्रचलित जाति व्यवस्था के शोषण के स्वरूप विरोध प्रकट करते हुए अपने अनुयायियों के साथ 14 अक्टूबर 1956 को अपने कई अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया।

बाबासाहब आंबेडकर के सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विचार

राजनीतिक क्षेत्रः वे एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था के हिमायती थे, जिसमें राज्य सभी को समान राजनीतिक अवसर दे तथा धर्म, जाति, रंग तथा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए। उनका यह राजनीतिक दर्शन व्यक्ति और समाज के परस्पर संबंधों पर बल देता है।

समानता को लेकर विचारः डॉ. आंबेडकर समानता को लेकर काफी प्रतिबद्ध थे। उनका मानना था कि समानता का अधिकार धर्म और जाति से ऊपर होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।

सामाजिक क्षेत्रः डॉ. आंबेडकर का सम्पूर्ण जीवन भारतीय समाज में सुधार के लिए समर्पित था। उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का विशद अध्ययन कर यह बताने की चेष्टा भी की कि भारतीय समाज में वर्ण-व्यवस्था, जाति-प्रथा तथा अस्पृश्यता का प्रचलन समाज में कालांतर में आई विकृतियों के कारण उत्पन्न हुई है, न कि यह यहाँ के समाज में प्रारम्भ से ही विद्यमान थी। इन आधारों पर बाबासाहब आंबेडकर ने वर्ण व्यवस्था, जाति प्रथा तथा अस्पृश्यता का खुलकर विरोध किया।

महिलाओं से संबंधित विचारः डॉ. आंबेडकर भारतीय समाज में स्त्रियों की हीन दशा को लेकर काफी चिंतित थे। उनका मानना था कि स्त्रियों के सम्मानपूर्वक तथा स्वतंत्र जीवन के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने हमेशा स्त्री-पुरुष समानता का व्यापक समर्थन किया। यही कारण है कि उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि मंत्री रहते हुए ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में प्रस्तुत किया और हिन्दू स्त्रियों के लिए न्याय सम्मत व्यवस्था बनाने के लिए इस विधेयक में उन्होंने व्यापक प्रावधान रखे।

शिक्षा संबंधित विचारः उनका विश्वास था कि शिक्षा ही व्यक्ति में यह समझ विकसित करती है कि वह अन्य से अलग नहीं है, उसके भी समान अधिकार हैं। उन्होंने एक ऐसे राज्य के निर्माण की बात रखी, जहाँ सम्पूर्ण समाज शिक्षित हो। वे मानते थे कि शिक्षा ही व्यक्ति को अंधविश्वास, झूठ और आडम्बर से दूर करती है। शिक्षा का उद्देश्य लोगों में नैतिकता व जनकल्याण की भावना विकसित करने का होना चाहिए। शिक्षा का स्वरूप ऐसा होना चाहिए जो विकास के साथ-साथ चरित्र निर्माण में भी योगदान दे सके।

अधिकारों को लेकर विचारः डॉ. आंबेडकर अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों पर बल देते थे। उनका मानना था कि व्यक्ति को न सिर्फ अपने अधिकारों के संरक्षण के लिए जागरूक होना चाहिए, अपितु उसके लिए प्रयत्नशील भी होना चाहिए, लेकिन हमें इस सत्य को नहीं भूलना चाहिए कि इन अधिकारों के साथ-साथ हमारा देश के प्रति कुछ कर्त्तव्य भी है।

श्रमिक वर्ग के लिए कार्यः उन्होंने मजदूर वर्ग के कल्याण के लिए उल्लेखनीय कार्य किये। पहले मजदूरों से प्रतिदिन 12-14 घंटों तक काम लिया जाता था। इनके प्रयासों से प्रतिदिन आठ घंटे काम करने का नियम पारित हुआ।

इसके अलावा उनके प्रयासों से मजदूरों के लिए इंडियन ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम तथा मुआवजा आदि से भी सुधार हुए। उल्लेखनीय है कि उन्होंने मजदूरों को राजनीति में सक्रिय भागीदारी करने के लिए प्रेरित किया। वर्तमान के लगभग ज्यादातर श्रम कानून बाबासाहब के ही बनाए हुए हैं, जो उनके विचारो को जीवंतता प्रदान करते हैं।

इस प्रकार बाबासाहब भीमराव आंबेडकर ने ना केवल पिछड़े वर्ग के वंचित लोगों कि ना केवल आवाज बने बल्कि उन्हें उनका अधिकार दिलाने में भी महती भूमिका निभाई। उन्होंने अपना पूरा जीवन सामाजिक बुराइयों जैसे- छुआछूत और जातिवाद के खिलाफ संघर्ष में लगा दिया। इस दौरान बाबासाहब ने विशेषकर महिलाओं, गरीब, दलितों और शोषितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। इसके साथ ही उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण की रूपरेखा भी तैयार की।

क्या दुनिया के इतिहास में कोई ऐसा भी  छात्र होगा जो अपनी जाति के कारण क्लास के अंदर ना जा पाया  हो वो दुनिया का बेहतरीन स्कॉलर अपनी कड़ी मेहनत के बल पर  बनकर   उसी देश का संविधान लिखे। संभव नहीं लगता। चाहे अमानवीय मनुस्मृति को ध्वस्त करना, दुनिया में पानी पीने के लिए पहला सत्याग्रह करना हो, पैसे के अभाव में बच्चे तक का सही इलाज नहीं करा पाएं हो, पढ़ने के लिए पैसे के मोहताज हो लेकिन बाद में प्राबल्म ऑफ रुपी नाम से ऐसा शोध किया हो, जिस पर रिजर्व बैंक बन गया। नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने डॉ. आंबेडकर को अपना गुरु माना था। लेकिन सवाल यह है कि जिस व्यक्ति ने अपना सारा जीवन मानवता के लिए समर्पित कर दिया हो, उसके साथ इतिहास ने इतनी बेईमानी क्यों की? क्या यह डॉ. आंबेडकर की जाति के कारण नहीं किया गया?

आज कोरोना वायरस से लोग सोशल डिस्टेंसिंग कर रहे हैं, लोग तीन हफ्ते में ही ऊब गए हैं. वहीं समाज का एक बड़ा हिस्सा सदियों से सोशल डिस्टेंसिंग में जी रहा है, उसकी तकलीफ को कौन समझेगा। क्या अब भी महामानव डॉ. आंबेडकर को फादर ऑफ मार्डन इंडिया के रूप में जाना जाएगा? क्या इतिहास उनके साथ अब भी न्याय करेगा।

लेखकः मनोज कुमार, ADJ, Sitapur (UP)

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